बिस्मिल जी की जन्म गाथा प्रस्तुत कर रहा हूं----------------

वह नगर शाहजहांपुर है धन्य ,वह धरती कितनी पावन है
अन्यायी लोभी सासन से लडने को प्रस्तुत जन - जन है
रुहेलखंड की धरती मे अतुलित इतिहास समाया है
बिस्मिल को जनने का गौरव ,इस धरती ने ही पाया है

छोटी - चोटी दो नदियां हैं गर्रा , खन्नौत कहाती हैं
कल-कल करती बहती जाती बिस्मिल की याद दिलाती हैं
हिन्दु-मुस्लिम अशफाक और बिस्मिल की भांति ही रहते हैं
वे ईद मनायें या होली, दुख-दर्द वे मिलकर सहते हैं

ग्वालियर राज्य से चलकर के बिस्मिल के बाबा आये थे
कुछ खट्टी - मीठी स्मृतियां,अपने संग लेकर आये थे

उन दिनो देश मे था अकाल ,दुर्भिक्ष बडा भयकाररी था
शासन सोया था निद्रा मे अमला सब अत्या चारी था
थी मिली नौकरी मुश्किल से रूपये बस तीन ही मिलते थे
बच्चों के कोमल भाव देख ,पंडितजी अक्सर डिग जाते थे

आ लौट चलें अपने घर को ,कहते कहते रुक जाते थे
श्रम धैर्य देखकर पत्नी का , दुख दर्द सभी सह जाते थे

वह उच्च -वर्ण कुल की बाला,हर संकट दूर झटकी थी
नारायण लाल की गृह लक्षमी , मजदुरी हेतु भटकती थी-

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