पं०जगतनारायण 'मुल्ला' पं० मोतीलाल नेहरू के सगे साले अर्थात पं०जवाहरलाल नेहरू के सगे मामा थे।


मित्रों कल मैनें अपनी पोस्ट में बिस्मिल जी की आत्मकथा से कुछ पंक्तियां उदधृत की थीं।उन पंक्तियों मे अमर शहीद ने पं० जगतनारायण तक नमस्ते पहुंचानेका जो संदेश भिजवाया है उसकी पृष्ठभूमि जाने बिना नमस्ते का निहितार्थ समझ नही पायेंगे अतः कुछ तथ्य आपकी जानकारी में लाने का प्रयास कर रहा हूं----
१-   पं०जगतनारायण 'मुल्ला' पं० मोतीलाल नेहरू के सगे साले अर्थात पं०जवाहरलाल नेहरू के सगे मामा थे।
२-बिस्मिल जी का केस लडने के लिये स्वयं पं० मोतीलाल नेहरू ने जगतनारायण से आग्रह किया था पर जगतनारायण ने सरकार की ओर से ही केस लडा।
३-पं० जगतनारायण का तर्क था कि सरकारी वकील रहते हुये वे क्रांतिकारियों का ज़्यादा भला कर पायेंगे।
४-पं० जगतनारायण को प्रति पेशी ५००रूपये(वर्ष १९२५ में) दिये गये।
५-पं० जगतनारायण के सुपुत्र तेजनारायण ने भगतसिंह के विरूद्द सरकारी की पैरवी की।
६-जगतनारायण शायर थे।मुल्ला उनका तखल्लुस था। देश की आज़ादी के बाद उर्दू साहित्य में योगदान अथवा------के लिये उन्हे साहित्यअकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

    सवाल किसी व्यक्ति या परिवार की निष्ठा या सोच का नहीं है।ना ही प्रश्न यह है कि शहीदों ने निज़ी हित या स्मारक बनवाने के लिये बलिदान दिये थे।सवाल यह है कि आज हम सही काम करने के लिये छोडिये सही बात कहने के लिये भी कुत्तों को बिस्किट खिलाने को विवश क्यों हैं?
कुत्ते बिसकुट खायें या तेल के कुओं में नहायें इससे शहीदों को कोई फर्क नहीं पडता पर अगर हम को और आपको भी नहीं पडता है तो सोंचने का विषय अवश्य है-------

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