इन तीन घटनाओं को यहां याद दिलाने का मकसद

मैं बिस्मिल जी की गिरफ्तारी के बाद का किस्सा बताना चाहूगा।गिरफतारी के तुरंत बाद बिस्मिल जी को थाने लाया गया ।उस समय थाने के हेड मुहरिर् अमर शहीद रोशनसिह के फूफा थे ।उन्होने बिस्मिल जी को पास पडी कुर्सी पर बिठा लिया ।इस बीच बिस्मिल जी ने लघुशंका की इच्छा जाहिर की तो एक सिपाही उन्हें टायलेट जोकि थाने के दूसरे छोर पर था । सिपाही बाहर ही खडा हो गया।यहां थाने चारदिवारी चार फीट से ज्यादा ऊंची न थी ।वे चाहते तो बडे आराम से चारदिवारी फांदकर भाग सकते क्योंकि तब तक तो उन्हें हथकडी भी नहीं लगी थी।पर सिर्फ ,यह सोचकर कि बेचारे सिपाही और हेडमुहर्रिर की नौकरी चली जायेगी वे भागे नहीं।
दूसरी घटना उन दिनों की है जब लोअर कोर्ट सजा सुना चुका था और सेशन मे केस चल रहा था लखनऊ जेल के जेलर ने बिस्मिल जी के आचरं से प्रभावित होकर उन्हें जेल कहीं भी घूमने फिरने की आजादी दे रखी थी ।वे चाहते तो बडे आराम से जेल से भाग सकते पर यह सोचकर कि इससे जेलर महोदय का विश्वास टूट जायेगा और बुढापा खराब हो जायेगा
।एक घटना दूसरे क्रांतिकारियों के बारे में भी बताता हूं।सांडर्स को गोली मारे के बाद जब सारे क्रांतिकारी इकठ्टा हुए तो सब एक दूसर को मिशन की सफलता के लिए बधाई दे रहे थे पर राजगुरू जिनके अचूक निशाने ने सांडर्स का भेजा उडा दिया था ।बिल्कुल खामोश थे जब सबने ऊनसे खामोशी का राज पूछा तो वे एकाएक फूटफूटकर रोने लगे और रोते हुए बोले कैसा खूबसूरत जवान था सांडर्स आज उसकी मां पर क्या बीत रही होगी?इन तीन घटनाओं को यहां याद दिलाने का मकसद है उस संवेदनशील ता को रेखांकित करना है जो सिर्फ क्रांतिकारियों मे होती है आतंकवादियों और डकैतों मे नहीं।

अब अंत मे बिस्मिल जी की इन पंक्तियो के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं------------

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर
हमको भी मां बाप ने पाला था दुखसह-सहकर
वक्ते-रुखसत उन्हें इतना भी न आए कहकर
गोद में अश्क जो टपकें कभी रूख से बहकर

तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को

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