दिसंबर माह और बिस्मिल जी की याद


मित्रों दिसंबर का महीना आते ही जहां एक ओर काकोरी कांड के अमर शहीदों की के बलिदान याद आने लगते हैं वहीं दूसरी ओर अपनी नालायकी पर ग्लानि भी होती है।महानगरीय जीवन की जोड-तोड में जहां जीवनयापन हेतु ही हर कोई हर कोई घटिया से घटिया समझौते को विवश है वहां देश पर सबकुछ न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों के लिये एक अदद स्तरीय कार्यक्रम ना कर पाना यों कोई ताज़्ज़ुब की बात नहीं।यों भी हमने अपने  मित्र से जो संभवतः कांग्रेस के पोस्टर में ही लिपटकर पैदा हुए थे  अपनी व्यथा बांटी तो उन्होने ने हमारी सोच पर तरस खाते हुये कहा कि पं० रामप्रसाद बिस्मिल न तो राहुल गांधी हैं और नही देखने आने वाले हैं कि उनकी स्मृति में आपने क्या किया? कुल मिलाकर इन मरे हुओं पर समय और धन खर्चना मूर्खता और बरवादी के सिवा कुछ नहीं----
मैं उन्हे बस देखता रहा।घर आकर बिस्मिल जी की आत्म कथा के पन्ने पलटने लगा तो फांसी से कुछ दिन पूर्व का बिस्मिल जी की लिखी पंक्तियों को पढकर हिल गया।वे पंक्तियां जस की तस आप की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं-----------"-------------उदयकाल के सूर्य का सौंदर्य डूबते हुये की छटा कभी नहीं पा सकता।और -प्रेम का पंथ कितना कठिन है संसार की सारी विपत्तियां मानों प्रेमी के लिये ही बनी हैं।"
उफ़ ,कैसा व्यापार है कि हम सब कुछ दे दें-----और हमें कुछ नहीं।
लिकिन फिर भि हम मानें नही-------

१९ तारीख को जो कुछ होने वाला है उसके लिये मैं अच्छीतरह तैयार हूं।यह है ही क्या? केवल शरीर का बदलना मात्र है।मुझे विश्वास है कि मेरीआत्मा मातृभूमि तथा उसकी दीन संतति के लिये के लिये नये उत्साह और ोज से काम करने के लिये शीघ्र ही लौट आयेगी।

यदि देश हित मरना पडे मुझको सहस्रों बार भी
तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी'
हे ईश ,भारतवर्ष मे शत बार मेरा जन्म हो
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो
मरते 'बिस्मिल',रोशन ,लहरी,अशफाक अत्याचार से
होंगे पैदा सैकडों उनके रूधिर की धार से
उनके प्रबल उद्योग से उद्धार होगा देस का
तब नाश होगा सर्वथा दुख शोक के लवलेश का।

      सबसे मेरा नमस्ते कहिये।कृपा करके इतना कष्ट और उठाइये कि मेरा अंतिम नमस्कार पूजनीय जगत नारायण मुल्ला जी की सेवा तक भी पहुंचा दें। उन्हें हमारी कुर्बानी और खून से सने हुये रूपये  की कमाई से सुख की नींद आवे।बुढापे में भगवान पं०जगतनारायण को शांति प्रदान करें।

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