अग्रज सम्मान दिवस


कल अमर शहीद भगतसिंह का बलिदान दिवस है।सारा देश भारतमाता के इस महान  सपूत को अपने प्रणाम निवेदित कर रहा है।इस अवसर पर मैं नया कुछ न कहकर उस महानायक के व्यक्तित्व के एक अनछुये पहलू की ओर आप सभी राष्ट्रभ्क्तों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा।वह पक्ष है अपनी अग्रज पीढी के प्रति भगतसिंह का आदर-सम्मान प्रकट करने का भाव जो उन्होनें अपनी अग्रज पीढी से ही सीखा था।इस का एक ऊदाहरण आपके समक्ष रख रहा हूं।पं०रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान के बाद जब क्रांतिकारी संगठन बिखर सा गया था तो सर्वप्रथम'किरती'पत्रिका में जनवरी १९२८ में भगतसिंह ने विद्रोही के छद्म नाम से "शहीदे वतन श्री रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम संदेश " नाम से प्रकाशित कराया।इस लेख से पूर्व जो टिप्पणी शहीदे आजम ने शहीदे वतन के लिये की वह ध्यान देने योग्य है,उन्होने लिखा---"आपने एक लेख'निज जीवन की एक छटा' लिखा था जो गोरखपुर के स्वदेश ' अखबार में छपा था।उसी का संक्षेप हम पाठकों की सेवा में रख रहे हैं,ताकि वे जान सकें कि उन क्रांतिकारी वीरों के शहादत के समय क्या विचार थे।"
जब मैं बिस्मिल चरित के लेखन के लिये इतिहास के पन्नों को खंगाल रहा था तो इस तथ्य से रूबरू हुआ कि महान सेनानी गेंदालाल दीक्षित के मूक बलिदान को सर्वप्रथम पं० रामप्रसाद बिस्मिल ने सितंबर १९२४ में कानपुर से प्रकाशित 'प्रभा' में एक लिखकर रेखांकित किया। अपनी अग्रज पीढी के प्रति सम्मान व्यक्त करने की कला पं० रामप्साद बिस्मिल से सीखने वाले शहीदे आज़म भगतसिंह के बलिदान दिवस को अग्रज सम्मान दिवस के रूप में मनाने की अपील करता हुआ मैं पं० सुरेश नीरव,मदनलाल वर्मा ,क्रांत,राजशेखर व्यास,श्रीकांत मिश्र 'कांत' जैसे अपने तमाम अग्रज पीढी के क्रांति-चेता रचनाकारों को भी प्रणाम निवेदित करता हूं जो अपनी कलम से भगतसिंह की जलायी लौ को निरंतर प्रखर कर रहे हैं।

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