आयेगा ,हां , आयेगा पुनः सवेरा आयेगा


केंचुये शिखर पर तने हुये बैठे हैं
कायर लोलुप नीच दर्प से ऐंठे हैं
अपमान राष्ट्र का कोई भी कर जाता है
भारत बांग्ला देश से भी डर जाता है
अरे पतन की और भला क्या सीमा होगी?
सोचो कितनी दुखी आज भारत मां होगी?
पग -पग पर षडयंत्र - कुटिलता के जाले हैं
कैसे कहें हमारे लीडरान भोले -भाले हैं ?
अब नहीं हजारों -लाखों की बातें होती हैं
अब तो अरबों खरबों की घातें होती हैं
सैनिक से लेकर सेनापति तक अपमानित हैं
दो-दो कौडी के नेता अति विग्यापित हैं
है किसे यहां परवाह राष्ट्र-गौरव की
आ रही विकट दुर्गंध नरक रौरव की
पीढियों भेंट चढ जायेंगी लगता है
मरते मूल्य देख विश्वास नहीं जगता है
तुम समझ रहे तुम पर न आंच आयेगी
तुम्हारी मक्कारी भी लिखी ज़रूर जायेगी
सिर घुटनों में दबा लेने से क्या होगा?
अपराध तुम्हारा किसी तरह ना कम होगा
मैं तुम्हे बताने और जगाने आया हूं
अपने हाथों मे आइने भी लाया हूं
पर अंधो बहरों को फर्क कहां पडता है?
मुर्दों को कोई शूल नहीं गडता  है
ये आत्ममुग्ध अभिमानी पीढी मरने दो
इसको अपने खोदे गड्ढे मे गिरने दो
कह रहा क्षितिज से अदृश्य से भवितव्य न टल पायेगा
संवेदन के हिम युग में सब कुछ ही गल जायेगा
फिर आदत से लाचार आवाज लगाता हूं
बची हुई हर चिनगारी को फूंक जगाता हूं
एक बार जलो तुम प्रखर ज्वाल बन जाओ
गलना है तो भारत की खातिर गल जाओ
ये देश कृतग्य रहेगा जागो बलिदानी
आ जाओ पुनः हुंकार भरो तुम अभिमानी
ये देश तुम्हारे बलिदानों से ही बच पायेगा
आयेगा ,हां , आयेगा पुनः सवेरा आयेगा
     अरविंद पथिक

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