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याद कर लेना कभी हमको भी भूले -

आज दिन भर घर की साफ सफाई के बाद तमाम ब्लाग देख डाले पर निराशा ही हाथ लगी।सिर्फ ब्लाग ही क्यों तमाम समाचार पत्र संचार के समस्त साधन यहां तक कि सभी तथाकथित संस्थाएं और संस्थानों मे सन्नाटा दिखा जो देशभक्त होने का ढिंढोरा पीटते हैं।स्वयं लज्जा का बोध से भर गया कि मैं जोकि स्वयं को पं० रामप्रसाद बिस्मिल के भक्त मानता हूं।आज ग्यारह जून को उनके जन्मदिन को कैसे मना रहा हूं? कोई सफाई नहीं सिवाय इसके कि बिस्मिल जी फायदे का सौदा नही रहे शायद ।उनके नाम पर चंदा भी तो नही मिलता ।बिसमिलजी की एक नज़्म के कुछ अंश दे रहा हूं‍‍;; हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर हमको भी मां बाप ने पाला था दुख सह सहकर वक्त-ऐ-रुखसत उन्हे इतना भी ना आए कहकर गोद में अश्क जो टपकें कभी रूख से बहकर तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को। नौजवानों जो तबीयत में तुम्हारी खटके याद कर लेना कभी हमको भी भूले -भटके आपके अज़्बे-बदन होवें ज़ुदा कट-कट के और सद चाक हो जाता हो कलेजा फट के पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को अपनी किस्मत में अजल से ये सितम रक्खा था किसको परवाह थी और किसमे ये दम रक्खा था हमने जब वादिए -गुर्बत मे कदम रक्खा था दूर तक