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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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धनुर्वाण या वेणु लो श्याम रूप के संग मुझ पर चढने से रहा राम दूसरा रंग गीत कविता कुछ भी लिख लूं,मन तो बिस्मिल चर्चा मे ही रमता है।तो आज से बिस्मिल चरित की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करने का शुभारंभ करता हूं पित्र भूमि वह वीर प्रसविनी धरती है,कण कण मे शौर्य समाया है चंबल के खडे उठानों ने , वीरों को सदा लुभाया है विद्रोह वहां के कण कण मे , अन्याय नही वे सहते हैं लडते हैं अत्याचारो से , खुद को वे बागी कहते हैं ग्वालियर राज्य की वह धरती अन्याय नही सह पाती है अपने बीहडों- कछारों मे, बेटों को सहज छिपाती है है इसी भूमि पर तंवरघार, जो बिस्मिल की है,पित्रभूमि मिट्टी का कण कण पावन है,ये दिव्य भूमि ये पुण्यभूमि इसके निवासियों के किस्से अलबेले हैं ,मस्ताने हैं द्रढनिश्चय के ,निश्छल मन के , जग मे मशहुर फसानें हैं। है सत्ता की परवाह नही, शासन का रौब न सहते हैं ये हैं मनमौजी लोग सदा , अपनी ही रौ मे बहते है निज गाथा मे बिस्मिल जी ने किस्से बतलाये हैं अनेक इनकी मस्ती बतलाने को ,कहता हूं मैं भी आज एक तंवरघार के लोगों ने सोचा-----कुछ अद्भ
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हमारी निकल आयी तोंद तुम्हारे दांत हो गये कम मगर एक-एक बात न तुम भूले ,न हम आप राम के हो गये हम रम के अपने तो सहारे भी हैं आपसे एक मात्रा कम
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जीवन ---------------------------------------------------------------------- जीवन को निस्प्रह भाव से चुकते नही महज़ बीतते देखने में भी आनंद होता है किसी ने कहा, मैं सन्नाटा बुनता हूं तो किसी के जीवन का अंतिम सत्य सिर्फ जीवन होता है, क्या हो सकते थे ? पर, क्या हो सके? हम के बीच ही कहीं निराशा, हताशा,विरक्ति,वैराग्य,हार और जीत का संतुलन बिंदु होता है सच पूछिए तो जीवन स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए तय की गयी शर्तों - सीमाओं के बीच किए गए कर्म के फल को भाग्य के अंक से गुणन कर प्राप्त की गयी संख्या का गुणनफल होत