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पं० सुरेश नीरव आप विद्वान भी हैं और कवि भी हैं

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कविता को स्थूल कविता,वैचारिक कविता,छंद मुक्त कविता,छंदबद्ध कविता,अकविता ,नई कविता और ना जाने किन किन सांचों और वादों में बांधने और बांटने के दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों के बीच जो कविता कहीं खो सी गयी थी वह अपनी पूरी गरिमा और तेवर के साथ २२ नवंबर २०१२ को पं० सुरेश नीरव की वाणी से साहित्य अकादमी के सभागार में झंकृत हुई। नई दिल्ली के फीरोजशाह मार्ग स्थित रवींद्र भवन,साहित्य अकादमी परिसर में सायं ६०० बजे ७३० तक अनवरत कविता की रस वर्षा के पश्चात आधा घंटे तक चले प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विमलेश कांति वर्मा की पं० सुरेश नीरव आप टिप्पणी--"----सामान्यतया  ये देखा गया है कि कवि विद्वान नही होता और विद्वान कवि नहीं होतापं० सुरेश नीरव आप विद्वान भी हैं और कवि भी हैं ।विद्वान भी हैं और कवि भी हैं अतः प्रणम्य हैं।"स्वयं ही कार्यक्रम की गुणवत्ता -महत्ता को रेखांकित करने के लिये काफी है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बुद्धिजीवी श्रोताओं-साहित्यकारो-जिनमे जो नाम मुझे तुरंत याद आ रहे हैं उनमे नमिता राकेश,सुषमा भंडारी,अनुभूति चतुर्वेदी,रिचा सूद,दयावती,स्नेह लता,रेखा

सिंह ,सिंह ही रहता है,

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सिंह ,सिंह ही रहता है,     जीवन या जीवन के पार विस्मित,चकित,कुपित होता है ,उसके कृत्यों पर संसार लिख जाता है निज पौरूष से समय वक्ष पर ऐसे लेख जिनका वाचन युग करता है अरि करता है हाहाकार

दीप पर्व का आगमन आसन्न है -------------

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दीप पर्व का आगमन आसन्न है पर कोई उल्लास नही है,उत्साह नही है।परिदृश्य ही ऐसा है।भ्रष्टाचार विरोधी बयार अपनी लय खो चुकी है।सत्ता ने बेशर्मी के लबादे तले अपने स्याह दागो को ढक लिया है और प्रतिपक्ष जिस सिद्धांत और आदर्श के घोडे पर सवार हो सत्तारूढ हुआ था उन्ही से गिरकर मेरूदंड गंवा पक्षाघात का शिकार हो चुका है। मेरे जैसा आम नागरिक किंकर्तव्यविमूढ और ठगा सा हतप्रभ अंधी, सुरंग में घुट-घुट कर मरने की आशंका से बदहवास हो रहा है।राम को कोसना गालियां देना समीक्षा करना इतना आसान पहले कभी ना था। वैल्यू से भी ज़्यादा ताकतवर न्यूसेंस वैल्यू हो गयी है। कवीन्द्र रवीन्द्र को दोयम दर्जे का बताने वाले,राम को बुरा पति और लक्ष्मण को और भी बुरा कहने वाले भी पहले इतने बेलगाम नही थे।नारी को शहरी -ग्रामीण,आकर्षक-अनाकर्षक,दुर्घटना और बरवादी का ज़िम्मेदार इस तरह तो पहले कभी किसी राजनेता ने नही कहा था।जैसे पहले पेट्रोल पर ५ पैसे की वृद्धि पर हाय-तोबा हो जाती थी पर अब ५ रूपये पर भी रस्मी आह तक नहीं होती वैसे ही स्वामियों और वकीलों के भेष में ही रावण सीता हरण करते रहें पर हम  सूर्पणखाओं के नाक-कान काटने के औचित्