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आयेगा ,हां , आयेगा पुनः सवेरा आयेगा

केंचुये शिखर पर तने हुये बैठे हैं कायर लोलुप नीच दर्प से ऐंठे हैं अपमान राष्ट्र का कोई भी कर जाता है भारत बांग्ला देश से भी डर जाता है अरे पतन की और भला क्या सीमा होगी? सोचो कितनी दुखी आज भारत मां होगी? पग -पग पर षडयंत्र - कुटिलता के जाले हैं कैसे कहें हमारे लीडरान भोले -भाले हैं ? अब नहीं हजारों -लाखों की बातें होती हैं अब तो अरबों खरबों की घातें होती हैं सैनिक से लेकर सेनापति तक अपमानित हैं दो-दो कौडी के नेता अति विग्यापित हैं है किसे यहां परवाह राष्ट्र-गौरव की आ रही विकट दुर्गंध नरक रौरव की पीढियों भेंट चढ जायेंगी लगता है मरते मूल्य देख विश्वास नहीं जगता है तुम समझ रहे तुम पर न आंच आयेगी तुम्हारी मक्कारी भी लिखी ज़रूर जायेगी सिर घुटनों में दबा लेने से क्या होगा? अपराध तुम्हारा किसी तरह ना कम होगा मैं तुम्हे बताने और जगाने आया हूं अपने हाथों मे आइने भी लाया हूं पर अंधो बहरों को फर्क कहां पडता है? मुर्दों को कोई शूल नहीं गडता  है ये आत्ममुग्ध अभिमानी पीढी मरने दो इसको अपने खोदे गड्ढे मे गिरने दो कह रहा क्षितिज से अदृश्य से भवितव्य न टल पायेगा संवेदन के हिम

मंगल पांडे का बलिदान दिवस

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आज १८५७ की क्रांति का उद्घोष और प्रथम बलिदान देने वाले अमर शहीद मंगल पांडे का बलिदान दिवस है।आज की राजनीतिक सामाजिक परिस्थीतियां भी कुछ ज्यादा भिन्न नहीं हैं ।कुछ अर्थों में ज्यादा विषम ही हैं ।मैं कोरा आशावादी नहीं हूं।उस महान बलिदानी को एक कविता समर्पित करता हूं।यह कविता ही मेरा मूल स्वर है ------- पतवारों का तूफानों से समझौता है जयचंदों ने गोरी को भेजा न्योता है सारे रक्षक मस्त पडे बेसुध सोये हैं कर्णधार सब सुरा सुंदरी में खोये हैं कलमकार सत्ता के चारण बन ऐंठे हैं लोकतंत्र की शाखाओं पर उल्लू बैठे हैं केवल क्रिकेट ही है कहानी घर-घर की कुंठित-अवसादित है जवानी हर घर की देशभक्ति की बातें फिल्मी माल हुईं प्रतिभा हीन नग्नतायें वाचाल हुईं भारत का अस्तित्व मिटा जाता है इंडिया-शाइनिंग करता मुस्काता है आज नहीं गांधी , न जवाहरलाल यहां खोये प्यारे बाल-पाल औ लाल कहां नहीं गर्जना करते ,    प्यारे नेताजी करते हैं नेतृत्व फिल्म अभिनेता जी रोज आंकडे हमे   बताये जाते हैं सेंसेक्सी कुछ ग्राफ दिखाये जाते हैं बतलाते हैं अंतरिक्ष में पहुंच गये हैं हमन

महावीर जयंती

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जब मनुष्यता घायल होती पशुता हंसती है दानवता के अट्टहास से धरती धंसती है नही बांटता दीन दुखी की जब कोई भी पीर स्मित अधरों पर लेकर के आ जाते महावीर महावीर जयंती की कोटि -कोटि बधाइयां