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मित्रों,यह पोस्ट लिखने से पूर्व मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ना तो मेरा संघ-परिवार से कोई संबंध है ना उनकी विचारधारा से सहमति अपितु मुझे जानने व

मित्रों,यह पोस्ट लिखने से पूर्व मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ना तो मेरा संघ-परिवार से कोई संबंध है ना उनकी विचारधारा से सहमति अपितु मुझे जानने वाले इस बात की तसदीक करेंगे कि मैने सदैव मुखर होकर उनकी कई बात काविरोद्ध किया और नुकसान भी उठाया है।परंतु स्वामी अग्निवेश ने अमरनाथ को लेकर जो टिप्पणी की और फिर नित्यानद ने जो उनकी प्राकृतिक चिकित्सा की उससे यही सिद्ध होता है कि अग्निवेश को भी वही बीमारी है जिसके लक्षण कभी दिग्विजय सिंह कभी मुलायम सिंह कभि मायावती मे दिखाई देते हैं।यदि आप स्वयं को इतना ही प्रगतिशील मानते है तो एक बार यह भी बताइये कि मक्का का संगे असवद काले पत्थर के सिवा कुछ नहीं सिर्फ अग्निवेश ही क्यों ?तमाम तथाकथित प्रगतिशीलों को चुनौती है कि हज़रत मुहम्मद का चरित्र-चित्रण तो छोडिए एक रेखाचित्र ही बनाकर दिखाएं।पश्चिम जोकि स्वयं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अलंबरदार मानता है वहां भी हज़रत ईसा के एक कुंआरी के गर्भ से पैदा होने की प्रक्रिया पर बात नही होती। इस पोस्ट के माध्यम से मैम महंत नित्यानमद को बधाई देते हुए उन्होने जुता मारने वाले को जो ५१००० की राशि घोषित की है उसम
जब भी गले मिलते हैं खंजर भोंक देता है, लाहौर वाली बस को करगिल रोक देता है, हम भाई समझते हैं, तू दुश्मन समझता है हमारी नेकनीयती को तू उलझन समझता है, अगर लडने की हसरत है तो लड ले सामनेआकर कुछ ना पा सकेगा पीठ पर यो जोर आजमाकर तेरे पाले हुए कुत्ते ,ये अलकायदा-लश्कर पागल हो चुके हैं अब झिझोडेंगे तुझे कसकर पापोंका घडा तेरे यकायक फूट जायेगा हमारे देखते ही देखते तू टूट जायेगा------ अरविंद पथिक ९९१०४१६४९६

सौ करोड जनता भारत कीदे ज़बाव

लोकमंगलपर योंतो चहलपहल है विशेष विपिन चतुर्वेदीजी के गीतों की ।अफज़लको फांसी ना दिये जाने के कारणजोभाव मन मे उठे वे ही प्रस्तुत कर रहा हूं।कविताका दावा नही है फिर भी आपकी राय मेरे लिए अर्थवान है। आज स्वर्ग मे तडपे होंगे फिर शेखर , अशफाक झुकाये शीश मौन बैठे होंगे बिस्मिल जी ने क्या क्या न आज सोचा होगा? लहरी,रोशनने कैसे-कैसे सवाल पूंछे होंगे? क्यों चूमा फांसी का फंदा हमने असैंबली मे बम नाहक ही फोडे थे गुस्से में मुठ्ठियां भींच कह रहे,भगत ऐसी आज़ादीके लिए प्राणना छोडे थे, संसद पर हमला करने वालों को फांसी देने मे इतनी घबराहट क्यों? क्योंराजनीतिके गलियारे हैं डरे हुए घाटी मे बिला वजहइतनी चिल्लाहट क्यों? क्या चंद वेश्याजंतर -मंतर पर चीख पुकार मचा कर धमका जायेंगी क्या ओछी-राजनीति के हाथोंअपमानित हो रूहें अमर शहीदोंकीफिर अश्रु बहायंगी संसद की खातिर प्राण गवाने वालों ने हतप्रभ हो जब धरती पर झांका होगा सोचा होगा बेकार ही प्राणगंवाये थे हमभावुक थे ,मन कच्चा था जैसे पाखंडी ,मक्कार आज हैकर्णधार उनसे तोअंग्रेजी राज़हीअच्छा था जहांअफजलोंको बिरियानी मिलती हो शेखर ,बिस्मिल की मां भूखी ही सो जाये उस देस की