संदेश

दिसंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
चित्र

नववर्ष की पूर्वसंध्या

चित्र
मित्रों कल ' राइटर्स डेस्क ' नोएडा के तत्वावधान में एक खूबसूरत शाम का आयोजन  किया गया।अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के साहित्यकारों और मशहूर संगीतकारों ने नववर्ष की पूर्वसंध्या पर आयोजित इस कार्यक्रम में अपनी रचनाओं और प्रस्तुतिओं से चार  चांद लगा दिये।उन अविस्मरणीय क्षणों में से कैमरे में कैद कुछ पल फोटो और क्लिपिंग्स के रूप मे आपको सौंप रहा हूं।ज्यादा सामग्री के लिये हमारे ब्लाग्स का अवलोकन  करें।इस कार्यक्रम कि उपलब्धि रहे पाकिस्तान से आये मशहूर संगीतकार ' विलायत खां ' के भतीजे एवं संगीतकार मदनमोहन के निकट सहयोगी रहे उस्ताद रईस खां। कार्यक्रम में हिंदी साहित्यकार विष्णुनागर , दूरदर्शन के पूर्व निदेशक शरददत्त , डी०डी०भारती के निदेशक कृष्ण कल्पित , प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडे , साहित्य सारथि के संपादक मुकेश परमार समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अनेक जाने माने व्यक्तित्व शामिल थे। कार्यक्रम का अद्भुत संचालन पं० सुरेश नीरव ने किया।कार्यक्रम की शुरूआत मुझ नाचीज की तुकबंदी से और समापन मशहूर संगीतकार पं० ज्वाला प्रसाद के गायन से हुआ।धन्यवाद  रायटर्स डे

गजेसिंह त्यागी की कविता

गत दिनों आदरणीय गजेसिंह त्यागी की कविताओं से गुज़रने का मौका मिला ।उनके कुछ बेहतरीन दोहों को आपको सौंप रहा हूं--- १-        पिता मेरे परमात्मा सब   पितरों की खान           त्यागी उनकी कृपा से बढे भक्ति औ ग्यान २-       अच्छे कर्मों के लिये कभी न करिये देर          ना जाने किस बात से मौका मिले न फेर ३-       जाति-पाति के भेद को रखे जो मन से दूर          सच्चा पूत भी है वही,वही है सच्चा   सूर ४-         धोखा ,बेईमानी कर, चले चाल पे चाल            त्यागी ऐसे मूढ का सदा बुरा हो   हाल ५-        ध्यान बंटा हो आपका मन भीतर हो चोर           भूल जायेंगे आप फिर मन-मंदिर का मोर ६-        सोच -समझ कर बोलिये, रंच न करो गुमान           रावण जैसों का यहां बच न सका अभिमान ७-        अफसर-नेता में लगी धन कमाने की होड           खाली पेट जनता फिरे,मन में उठे  मरोड ८-       युद्ध आये तो युद्ध कर   ,बनकर सेवादार         पुण्य कर्म से ही    तेरा होना है ,उद्धार ९-       त्यागी इस संसार में सब पैसे का  खेल          निर्धन से भगवान भी करते नहीं हैं मेल १०-     कविता तो यक भाव है,जिसका ओर न छोर       

प्रीति का गीत प्रिय यह नवल वर्ष हो

ज़िदगी में सदा हर्ष ही हर्ष हो  प्रेम करूणा दया का ही उत्कर्ष हो संभावनायें खुलें भावनायें खिलें - प्रीति का गीत प्रिय यह नवल वर्ष हो

जाओ यार दो हजार ग्यारह

चित्र
जाओ यार दो हजार ग्यारह तुम भी सिद्ध हुये लाचार,बेकार,मक्कार,  आवारा दिखाते रहे सपने हमसे बिछुडते रहे अपने सारी दुनिया में होता रहा रक्तपात मनुष्यता के ज़िस्म पर रोज नया आघात कहीं परिवर्तन  तो कहीं उन्माद के नाम पर और हमारे यहां भ्रष्टाचार के विरूद्ध शंखनाद के नाम पर अराजकता के बीज बो कर तुम जा रहे हो पूरी बेशर्मी के साथ हंस रहे हो  मुस्करा रहे हो पर,तुम शायद यह भूल गये कि तुम भी सिर्फ घटना बन पाये हो इतिहास नहीं अब किसी को तुमसे कोई आस नहीं तुम तो यह भी भूल गये कि जब तुम आये थे सारी रात जगे थे हम हमने रात भर स्वागत गीत गाये थे पर,जाते हुये शिकवा-शिकायत  करने की हमारी रिवायत नहीं है किसी अहसानफरामोश याद रखना हमारी आदत नहीं है अतः चले जाओ बिना मुडे बिना पलटे चुपचाप क्योंकि हम सुन रहे हैं सुंदर -सलोने दो हजार बारह की पदचाप अब हम दो हजार बारह के स्वागत गान गायेंगे उम्मीद है हम एक -दूसरे को याद नहीं आयेंगे ----------अरविंद पथिक

प्रेम

चित्र
कभी पहुंच जाऊं तुम्हारे घर  तो क्या चौंकोगी नहीं, शायद तुम घबरा जाओ अपने उनसे चचेरा,ममेरा या तयेरा भाई  या, भाई की तरह के 'कलीग' कहकर मिलवाओ बिठा जाओ उस व्यकि्त को बात करने जो सबसे अप्रिय हो  और उसी से करनी पड जाये मुझे राजनीति या साहित्य पर वह अनचाही बहस जिसे करते करते अक्सर मैं उलझ जाया करता था तुमसे क्योंकि गुस्से तुम कभी खिले गेंदा सी या तो कभी सुर्ख गुलाब सी लगती थीं और मेरा मनो-मस्तिष्क तुम्हारे शब्दों की गंध से सुवासित होता रच लेता था नये-नये तर्क,दर्शन चिंतन और काव्य जो कभी हारने नहीं देते थे मुझे परंतु तुम्हारे'उनसे' जीत पाने की तो कोई संभावना नहीं दिखाई देती है मुझको क्योंकि 'उनसे' बातचीत करते मन में कैक्टस उग आयेंगे वज़ह ? तो मुझे भी नहीं मालूम शायद प्रेम हो इसकी वज़ह जो फूल से नाज़ुक और शूल से तीक्ष्ण होता है। ---------अरविंद पथिक 9910416496

.फिर भी आप आशावादी हाँ तो मै आपको प्रणाम करता हूँ. .

चित्र
वर्ष २०११ जाने को है ,उथल-पुथल और हताशा के आलम में छोड़कर आप शायद आशावादी हो पर दिवास्वपन से जितनी जल्दी बहर आ जाये अच्चा रहता है .आखिर अन्ना आन्दोलन बिना किसी निर्णायक मुकाम तक पहुचे मरने को है .सरकार या जिसे हम सत्ता कहते है ने अपना चरित्र दिखा ही दिया पहले रामदेव पर लाठियां बरसा कर और फिर अन्ना को दिसंबर की सर्दी में भूखा मरने के लिए छोड़कर .आन्दोलन में शामिल लोग भी दूध के धुले नहीं  पर आदमी कही दुसरे देश से तो लाये नहीं जायेंगे .महँ लोकतंत्र के महान पहरेदारो का चरित्र भी किसी से छुपा नहीं है.कुला मिलकर २०११ हमे महगाई भ्रष्टाचार और बेशर्मी की उस अंधी सुरंग में छोड़कर जा रहा है जिसका कोई अंत नही .फिर भी आप आशावादी हाँ तो मै आपको प्रणाम करता हूँ. .

arvind pathik-reciting his poem

arvind pathik -reciting his poem

अरविंद पथिक: suresh neerav reciting his poem

अरविंद पथिक: suresh neerav reciting his poem : कल २५ दिसंबर को पायेदार गज़लकार राजेश शुक्ल 'बच्चन' के आवास पर एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।इस अवसर पर काव्य रस और सोमरस की वर्ष...

suresh neerav reciting his poem

कल २५ दिसंबर को पायेदार गज़लकार राजेश शुक्ल 'बच्चन' के आवास पर एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।इस अवसर पर काव्य रस और सोमरस की वर्षा के साथ पं०सुरेश नीरव ने बेहद खुबसूरत गज़लें और कवितायें पढीं।गज़लकार राजेश शुक्ल बच्चन ने भी गज़लें पढीं।कार्यक्रम की अध्यक्षता पं० सुरेश नीरव ने और संचालन अरविंद पथिक अर्थात मैने किया-----

मैं कौन हूं?

आप पूंछते हैं  मैं कौन हूं? आप को कैसे बताऊं ? कैसे समझाऊं  कि कौन हूं मैं  क्योंकि जो मैं हूं उसे आप पहचान नहीं सकते  और जिसे आप पहचान सकते हैं  वह मैं बन नहीं सकता पर इतना तय है  कि मैं किसी पालिटिकल पार्टी का भोंपू नहीं हूं नारी देह का नग्न भोंडा प्रदर्शन करता फिल्मी इश्तहार नहीं हूं, सनसनीखेज़ खबरों का सांध्य अखबार नहीं हूं मै तो कोई स्वामी महंत या दैवी-पैरोकार भी नहीं हूं फिर भी मैं हूं अपनी संस्कृति को तिल-तिलकर नष्ट होते देखती नम आंख हूं मैं गांधी,सुभाष और भगतसिंह के सपनों की राख हूं हमेशा से एक बवाल हूं दुखियों की आह हूं लाचारों के लिए राह हूं मगर आप मुझे अब भी नही पहचान पायेंगे क्योंकि,आपकी आंखों पर तो भौतिकता का परदा पडा है जो दीवार बनकर हमारी और आपकी जान-पहचान के बीच खडा है इसलिए,आप दिन के उजाले मे भी मुझे पहचान नहीं पायेंगे आप तो सिर्फ मोटे बैंक बैलेंस और झंडे-बत्ती वाले विशिष्ट लोगों को जानते हैं आप आदमी को कहां पहचानते हैं आप मुझे नहीं जानते? यह आपका और इस देश का दुर्भाग्य है क्योंकि मैं तो अंधेरे मे भी चमकने वाला रवि हूं अरे,मैं सदियों से कुंभकर्णी-नींद मे सोये हुए इस

दो मुक्तक

चित्र
व्यर्थ के काम ही ज़िंदगी हो गयी दर्द के नाम ही ज़िंदगी हो गयी नाम जबसे  स्वयम को दिया है ट्रेन;बस,ट्राम ही ज़िदगी हो गयी हर चेहरे के पीछे हमने एक नया चेहरा देखा हमने यहां अमीना के संग बूढे का सेहरा देखा इस दुनिया की एक खासियत यारों हमने खोज़ ही ली जो जितने ऊंचे बैठा है वह उतना बहरा देखा 

फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख

बिस्मिल जी के बलिदान दिवस की पूर्व संध्या  और अदम गोंडवी का जाना यानी घटाटोप अंधेरे के बीच दीपक का बुझ जाना ईमानदारी,खुद्दारी के लिये हमारे पास ज़ियादा से ज़ियादा है एक थकी हुई आह और इस बहाने भी अपना सिर्फ अपना नाम चमकाना? कौन कहता है हमें नहीं आती मार्केटिंग नहीं टिक पायेंगे हम वालमार्ट जैसे संस्थानों के अरे आने तो दीजिये खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश हम वालमार्ट को बडी खामोशी से डकार जायेंगे आप हमारी क्षमताओं को कम आंकते हैं हमारे नाम से मनमोहन और अन्ना दोनों कांपते हैं फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख कर सकते हैं तो लोकपाल बनने के बाद हमारे जाल में कवि सम्मेलनीय संयोजक ही नहीं टाटा और बिडला भी फंस संकते हैं ----------अरविंद पथिक

काव्य संध्या का आयोजन

चित्र
काकोरी के अमर शहीदों की पुण्यस्मृति मे १७दिसंबर को अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेल ,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने एक काव्य संध्या का आयोजन दिवाकर पब्लिक स्कूल गाज़ियाबाद में किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डा० कुंअर बेचैन व संचालन पं० सुरेश नीरव ने किया। इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले साहित्यकारों कवियों में अरूण सागर,घनश्याम वसिष्ठ,कृष्णकांत मधुर,मृगेंद्र मकबूल,भगवानसिंह हंस,पियनसिंह,रजनीकांत राजू,प्रमुख थे।मुकेश परमार और जयवीर सिंह मलिक तथा संयोजक गजेसिंह त्यागी समेत कुल मिलाकर २० कवियों ने अपने श्रद्धासुमन पं०रामप्रसाद बिस्मिल और उनकी हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सिपाहियों को अर्पित किये।अरविंद पथिक अर्थात इस नाचीज ने भी बिस्मिल जी के जीवन पर आधारित महाकाव्य 'बिस्मिल चरित' के एए पद्यांश का पाठ कर टूटे-फूटे शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की।

आज १६ दिसंबर है क्या खास है आज,कुछ याद आया? नही,१६ दिसंबर १९७१ को आज के ही दिन हमने नया इतिहास रचकर दुनिया के नक्शे पर एक नये देश का निर्माण किया था जिसे हम बांग्लादेश कहते हैं।१९७१ के वीरों के लिये हमने आखिर क्या किया? हम तो संसद को अपनी जान देकर बचाने वालों के लिये भी कुछ कर नहीं पाये।

आज १६ दिसंबर है क्या खास है आज,कुछ याद आया? नही,१६ दिसंबर १९७१ को आज के ही दिन हमने नया इतिहास रचकर दुनिया के नक्शे पर एक नये देश का निर्माण किया था जिसे हम बांग्लादेश कहते हैं।१९७१ के वीरों के लिये हमने आखिर क्या किया?  हम तो संसद को अपनी जान देकर बचाने वालों के लिये भी कुछ कर नहीं पाये। कुछ वर्ष पूर्व तक दिल्ली में गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन की तरह ही हिंदी अकादमी १६ दिसंबर को विजय दिवस कवि सममेलन का आयोजन करती थी।परंतु जनार्दन द्विवेदी के हिंदी अकादमि का उपाध्यक्ष बनते ही सर्वप्रथम वह कार्यक्रम बंद किया गया। शायद यह सोचकर कि राष्ट्रवादी सोच वाले सभी व्यक्ति बी०जे०पी० के कार्यकर्ता होते हैं ऐसा करते समय वे यह भूल गये कि १९७१ की विजय का श्रेय इंदिरा  गांदी को है ना कि बी०जे०पी० को।कांग्रेस के इन अति बुद्धिमान नेताओं को ईश्वर यह सदबुद्धि न जाने कब देगा कि सरदार पटेल,सुभाषचंद्र बोस और समस्त क्रांतिकारी व्यक्ति्व जो किसी ना किसी रूप मे आज़ादी से पूर्व कांग्रेस से संबद्ध थे आज उनकी मेहरबानी से बी०जे०पी० की झोली में जा चुके है।इन नेताओं के कारण ही देशभक्त कवि,पत्रकारऔर वे सभी स्वतंत्रचेत्ता

इन तीन घटनाओं को यहां याद दिलाने का मकसद

चित्र
मैं बिस्मिल जी की गिरफ्तारी के बाद का किस्सा बताना चाहूगा।गिरफतारी के तुरंत बाद बिस्मिल जी को थाने लाया गया ।उस समय थाने के हेड मुहरिर् अमर शहीद रोशनसिह के फूफा थे ।उन्होने बिस्मिल जी को पास पडी कुर्सी पर बिठा लिया ।इस बीच बिस्मिल जी ने लघुशंका की इच्छा जाहिर की तो एक सिपाही उन्हें टायलेट जोकि थाने के दूसरे छोर पर था । सिपाही बाहर ही खडा हो गया।यहां थाने चारदिवारी चार फीट से ज्यादा ऊंची न थी ।वे चाहते तो बडे आराम से चारदिवारी फांदकर भाग सकते क्योंकि तब तक तो उन्हें हथकडी भी नहीं लगी थी।पर सिर्फ ,यह सोचकर कि बेचारे सिपाही और हेडमुहर्रिर की नौकरी चली जायेगी वे भागे नहीं। दूसरी घटना उन दिनों की है जब लोअर कोर्ट सजा सुना चुका था और सेशन मे केस चल रहा था लखनऊ जेल के जेलर ने बिस्मिल जी के आचरं से प्रभावित होकर उन्हें जेल कहीं भी घूमने फिरने की आजादी दे रखी थी ।वे चाहते तो बडे आराम से जेल से भाग सकते पर यह सोचकर कि इससे जेलर महोदय का विश्वास टूट जायेगा और बुढापा खराब हो जायेगा ।एक घटना दूसरे क्रांतिकारियों के बारे में भी बताता हूं।सांडर्स को गोली मारे के बाद जब सारे क्रांतिकारी इकठ्टा हुए

क्रांतिकारियों के बलिदान को रेखांकित करने का एक विनम्र प्रयास

चित्र
मित्रों पं० रामप्रसाद बिस्मिल को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये 'बिस्मिलचरित' के चतुर्थ सर्ग मे मैने काकोरी एक्शन के बाद की परिस्थितियों का वर्णन कर क्रांतिकारियों के बलिदान को रेखांकित करने का एक विनम्र प्रयास किया है अपनी कोशिश मे  कितना सफल हो सका हूं बताइयेगा अवश्य--- "उस सत्ता को जिसका सूरज सदा चमकता रहता था जिसके क्रोध कीर्ति का डंका जग में बजता रहता था ऊसकी यशोपताका को था ,पलक झपकते गिरा दिया 'काकोरी' के घटनाक्रम ने अंग्रेजों को हिला दिया खबर छपी सारी दुनिया के परचों में अखबारों में सन्नाटा छा गया,विश्व की अंगरेजी सरकारों में सत्ता का आतंक घटा,टूटा था गोरों का दंभ लेकिन तय था सर्प शीघ्र ही मारेगा कस कर के दंश    पग-पग पर जासूस लगे थे,वातावरण था,भयकारी काकोरी के बाद का हर पल ,अंगरेजों पर था भारी हुईं बैठकें लंदन में भी ,और हुईं दिल्ली में भी वायसराय के गुप्त रूम मे,हुईं असेंबली में भी "जाग उठा भारत तो हमको ,जाना ही पड जायेगा तेईस करोड ने फूंक लगायी तो लंदन उड जायेगा अगर खजाना लुट जाने का ,क्रम चालू हो जायेगा कुछ ही दिनों में निश्चय हीफि

पं०जगतनारायण 'मुल्ला' पं० मोतीलाल नेहरू के सगे साले अर्थात पं०जवाहरलाल नेहरू के सगे मामा थे।

चित्र
मित्रों कल मैनें अपनी पोस्ट में बिस्मिल जी की आत्मकथा से कुछ पंक्तियां उदधृत की थीं।उन पंक्तियों मे अमर शहीद ने पं० जगतनारायण तक नमस्ते पहुंचानेका जो संदेश भिजवाया है उसकी पृष्ठभूमि जाने बिना नमस्ते का निहितार्थ समझ नही पायेंगे अतः कुछ तथ्य आपकी जानकारी में लाने का प्रयास कर रहा हूं---- १-   पं०जगतनारायण 'मुल्ला' पं० मोतीलाल नेहरू के सगे साले अर्थात पं०जवाहरलाल नेहरू के सगे मामा थे। २-बिस्मिल जी का केस लडने के लिये स्वयं पं० मोतीलाल नेहरू ने जगतनारायण से आग्रह किया था पर जगतनारायण ने सरकार की ओर से ही केस लडा। ३-पं० जगतनारायण का तर्क था कि सरकारी वकील रहते हुये वे क्रांतिकारियों का ज़्यादा भला कर पायेंगे। ४-पं० जगतनारायण को प्रति पेशी ५००रूपये(वर्ष १९२५ में) दिये गये। ५-पं० जगतनारायण के सुपुत्र तेजनारायण ने भगतसिंह के विरूद्द सरकारी की पैरवी की। ६-जगतनारायण शायर थे।मुल्ला उनका तखल्लुस था। देश की आज़ादी के बाद उर्दू साहित्य में योगदान अथवा------के लिये उन्हे साहित्यअकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।     सवाल किसी व्यक्ति या परिवार की निष्ठा या सोच का नहीं

दिसंबर माह और बिस्मिल जी की याद

चित्र
मित्रों दिसंबर का महीना आते ही जहां एक ओर काकोरी कांड के अमर शहीदों की के बलिदान याद आने लगते हैं वहीं दूसरी ओर अपनी नालायकी पर ग्लानि भी होती है।महानगरीय जीवन की जोड-तोड में जहां जीवनयापन हेतु ही हर कोई हर कोई घटिया से घटिया समझौते को विवश है वहां देश पर सबकुछ न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों के लिये एक अदद स्तरीय कार्यक्रम ना कर पाना यों कोई ताज़्ज़ुब की बात नहीं।यों भी हमने अपने  मित्र से जो संभवतः कांग्रेस के पोस्टर में ही लिपटकर पैदा हुए थे  अपनी व्यथा बांटी तो उन्होने ने हमारी सोच पर तरस खाते हुये कहा कि पं० रामप्रसाद बिस्मिल न तो राहुल गांधी हैं और नही देखने आने वाले हैं कि उनकी स्मृति में आपने क्या किया ? कुल मिलाकर इन मरे हुओं पर समय और धन खर्चना मूर्खता और बरवादी के सिवा कुछ नहीं---- मैं उन्हे बस देखता रहा।घर आकर बिस्मिल जी की आत्म कथा के पन्ने पलटने लगा तो फांसी से कुछ दिन पूर्व का बिस्मिल जी की लिखी पंक्तियों को पढकर हिल गया।वे पंक्तियां जस की तस आप की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं-----------"-------------उदयकाल के सूर्य का सौंदर्य डूबते हुये की छटा कभी नहीं पा

जय लोक मंगल: दिसंबर माह और बिस्मिल जी की याद

जय लोक मंगल: दिसंबर माह और बिस्मिल जी की याद : मित्रों दिसंबर का महीना आते ही जहां एक ओर काकोरी कांड के अमर शहीदों की के बलिदान याद ...

हर समय यदि हम तुम्हारे पास ही बैठे रहेंगे

चित्र
                                        हर समय यदि हम तुम्हारे      पास ही बैठे रहेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? दो - चार दिन में ही हमारी हो चलेगी जगहंसाई फिर कहोगे बात क्यों पहले नहीं हमने    बताई ? नज़रें चुराकर सारे जग के व्यंग्य वाणों को सहेंगे ग्यात है , ये मान - धन यों ही सहज    मिलता नहीं है बिना उद्यम के कभी   तिनका तलक हिलता नहीं है अपने पथ मे तो सदा कंटक रहे ,  कंटक रहेंगे हर समय यदि हम तुम्हारे      पास ही बैठे रहेंगे प्राण़़ तुमसे दूर       जाना हमें भी रूचता नहीं है मिलन के ये पल गंवाना तनिक भी जंचता नहीं है पर , घनेरी -      केश राशी      के तले बैठे रहेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? यों तो हमने इस जगत की कभी परवा नहीं की किस तरह से जियें , बतलाने की अनुमति नहीं दी पर , तुम्हारी नज़र नीची देख हम रह ना सकेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? एडजस्ट करना , सेट करना हमको कभी आया   नहीं हम वहीं निश्चल रहे , मन ने कहा जिसको सही और तुम मनमीत को गुडबाय हम कह ना सकेंगे

हर समय यदि हम तुम्हारे पास ही बैठे रहेंगे

चित्र
हर समय यदि हम तुम्हारे      पास ही बैठे रहेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? दो - चार दिन में ही हमारी हो चलेगी जगहंसाई फिर कहोगे बात क्यों पहले नहीं हमने    बताई ? नज़रें चुराकर सारे जग के व्यंग्य वाणों को सहेंगे ग्यात है , ये मान - धन यों ही सहज    मिलता नहीं है बिना उद्यम के कभी   तिनका तलक हिलता नहीं है अपने पथ मे तो सदा कंटक रहे ,  कंटक रहेंगे हर समय यदि हम तुम्हारे      पास ही बैठे रहेंगे प्राण़़ तुमसे दूर       जाना हमें भी रूचता नहीं है मिलन के ये पल गंवाना तनिक भी जंचता नहीं है पर , घनेरी -      केश राशी      के तले बैठे रहेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? यों तो हमने इस जगत की कभी परवा नहीं की किस तरह से जियें , बतलाने की अनुमति नहीं दी पर , तुम्हारी नज़र नीची देख हम रह ना सकेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ? एडजस्ट करना , सेट करना हमको कभी आया   नहीं हम वहीं निश्चल रहे , मन ने कहा जिसको सही और तुम मनमीत को गुडबाय हम कह ना सकेंगे सोंच लो ये दुनियावाले क्या न फिर हमको कहेंगे ?