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जून, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

tungnath ki yatra

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पंडित सुरेश नीरव के साथ  अरविन्द पथिक  पीयूष चतुर्वेदी और पंडित सुरेश नीरव के साथ  अरविन्द पथिक                                                     पीयूष चतुर्वेदी  और  पंडित  सुरेश नीरव के साथ  अरविन्द पथिक                                          हिमालय                                                                                 नीरज नैथानी की पुस्तक का लोकार्पण                                                   प्रक्रति की गोद गोद में 

दरअसल हम घोर हिप्पोक्रेट हैं

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"तमाम नारीवादी आंदोलनों के बाबज़ूद आज भी नारी के बारे में समाज के एक बडे वर्ग की सोच देह के स्तर से आगे नहीं बढी है ।तथाकथित प्रगतिशील और बुद्धिजीवी ,साहित्यकार और समाजसेवी भी किसी शोषिता और वंचिता की सहायता करते समय न्याय -अन्याय की बात परे रखकर सबसे पहले विचार यह करते हैं कि वह नारी कहीं समाज को पथभ्रष्ट तो नहीं कर रही।ये कैसी विडंबना है कि महानगरों की तथाकथित सभ्य सोसाइटी में 'देह' जहां कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है वहीं छोटे शहरों-कसबों में किसी महिला के प्रति हुये अन्याय का समर्थन ना करने के लिये हमारे तमाम कर्णधार जिसमे नेता,समाजसेवी,पत्रकार,कवि,लेखक याने समाज के नीति निर्धारक सारे तत्व शामिल हैं।" मेरा यह कथन किसी भावुकता या सतही सोच का नतीज़ा नही अपितु अभी हाल की घटनाओं से हुई गहन वैचारिक मुठभेड का नतीजा है। दरअसल हम घोर हिप्पोक्रेट हैं।

मे अपनी बहादुरी के लिये उन लोगों का प्रमाण पत्र नही चाहिये जो किरण बेदी और कनिमोझी को एक ही तराजू में तौलते हैं।"

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शाहजहांपुर से कल वापस आया हूं।कुछ निज़ी कारणों तो कुछ नैतिक-सामाजिक कारणों से मेरा शाहजहांपुर जाना आवश्यक हो गया था।यों भी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाना तो बनता है।पर सबसे ज़रूरी कारण था 'काकोरी शहीद ठाकुर रोशन सिंह' के वंशजों पर हुये अत्याचार के विरूद्ध मीडिया और बुद्धिजीवियों द्वारा चलायी गयी मुहिम का असर देखना और अपने मित्रों की कोशिशों की सफलता को हम इस तथ्य से आंक सकते हैं कि इंदु सिंह जोकि ठाकुर रोशन सिंह की प्रपौत्री है ,उसे प्रशासन ने सुरक्षा मुहैया करा दी है।दो कांस्टेबल अब २४ घंटे इंदु की सुरक्षा में मुस्तैद है।इदु के एकाउंट में कुछ धन भी जमा हुआ है जिससे उसकी तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है। विधायक राममूर्ति वर्मा ने भी मीडिया के मित्रों से कहा है कि ज़ुल्म करने वालों से उनका कोई वास्ता नहीं।एस पी डा०अशोक राघव ने इस ज़ुल्म के विरूद्द आवाज उठाने वाले पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को आश्वस्त किया है कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करायी जायेगी। इस सारे घटना क्रम को आप मीडिया और विशेषकर सोशल मीडिया की जीत मान सकते हैं।बहुत सारे ऐसे लोगों ने आग्रह पूर्वक स्

'दामोदर दास चतुर्वेदी अलंकरण २०१२'से अलंकृत किया गया

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१६ जून शनिवार , भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद  के आज़ाद भवन स्थित ' सभागार में सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति ' ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोज किया।कार्यक्रम का प्रथम सत्र अपराह्न ३ बजे प्रारंभ हुआ।किशोर श्रीवास्तव की कार्टून प्रदर्शनी के अनावरण के साथ इस सत्र का शुभारंभ हुआ।तत्पश्चात विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिनिधियों का  संस्था के अध्यक्ष पं० सुरेश नीरव ने माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया ।परिचय के पश्चात संस्था की गतिविधियों और भावी योजनाओं के बारे में   सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की महासचिव डा० मधुचतुर्वेदी ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसके पश्चात विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिभागियों ने अपने विचार प्रस्तुत किये और देश की समस्त भाषाओं के विकास  पर बल देते हुये अनुवाद की प्रक्रिया को गति देने का प्रस्ताव पारित किया गया।राष्ट्र की एकता और अखंडता को भाषाओं के माध्यम से मज़बूत करने के लिये हर संभव प्रयास करने का प्रस्ताव पारित किया गया। तत्पश्चात अध्यक्ष पं० सुरेश नीरव ने अपने उद्बोधन में संस्था के समक्ष चुनौतियों और भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर संस्थ

'सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति' का वार्षिक अधिवेशन एवं पं० दामोदरदास चतुर्वेदी स्मृति सम्मान - २०१२ 'संपन्न

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१६ जून शनिवार , भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद  के आज़ाद भवन स्थित ' सभागार में सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति ' ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोज किया।कार्यक्रम का प्रथम सत्र अपराह्न ३ बजे प्रारंभ हुआ।किशोर श्रीवास्तव की कार्टून प्रदर्शनी के अनावरण के साथ इस सत्र का शुभारंभ हुआ।तत्पश्चात विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिनिधियों का  संस्था के अध्यक्ष पं० सुरेश नीरव ने माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया ।परिचय के पश्चात संस्था की गतिविधियों और भावी योजनाओं के बारे में   सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की महासचिव डा० मधुचतुर्वेदी ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसके पश्चात विभिन्न प्रांतों से आये प्रतिभागियों ने अपने विचार प्रस्तुत किये और देश की समस्त भाषाओं के विकास  पर बल देते हुये अनुवाद की प्रक्रिया को गति देने का प्रस्ताव पारित किया गया।राष्ट्र की एकता और अखंडता को भाषाओं के माध्यम से मज़बूत करने के लिये हर संभव प्रयास करने का प्रस्ताव पारित किया गया। तत्पश्चात अध्यक्ष पं० सुरेश नीरव ने अपने उद्बोधन में संस्था के समक्ष चुनौतियों और भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर संस्थ

जो समाज के लिये भीख मांगकर विश्वविद्यालय बना देते हैं

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दोस्तों अमरशहीद रोशनसिंह के वंशजों के उत्पीडन के समाचार को लेकर अपने तमाम मित्रों को मैने तमाम तरह से कोंचा है।इस क्रम में कुछ अपनों पर अनजाने में ही आघात हो गये उन सबसे मुझे सिर्फ इतना कहना है कि विषय ना तो व्यक्तिगत अहं का है और ना नीचा दिखाने का।स्वयं को देशभक्तों का प्रवक्ता बताने का तो बिलकुल भी नहीं।हम सबको सिर्फ इसलिये कोशिश करनी है कि कहीं कल को हम स्वयं को ज़बाव देने से लाचार ना हो जायें।   मेरे अभिन्न नागेश पांडे ने आज अजय गुप्त और जगेंद्र सिंह से मिलकर कुछ रणनीति बनायी है शाहजहांपुर के ज़मीर को जगाने की जो कोशिश सिराज़ फैसल खान और जगेंद्र सिंह ने शुरू की थी उसमें कल से श्रीकांत सिंह और अजय गुप्त अन्य लोगों को भी जोडने में सफल होंगे ऐसा मेरा विश्वास है। मित्रों कानूनी कार्यवाही अपनी ज़गह है पर पीडित परिवार जिसके बच्चों पर पहनने को कपडे तक नहीं है की मदद करने के लिये मैने अपनी तरफ से एक छोटी सी राशि देने का अधिकार भाई नागेश पांडे को दे दिया है । मैने नागेश से अपने स्तर पर भी कुछ सहयोग जुटाने का अनुरोध किया है और वे कर रहे हैं । कई मित्र जो ईमानदारी से कुछ करना चाहते

अमर शहीद की प्रपौत्री पर लांछन लगाने का खीचा जा रहा है खाका

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शाहजहांपुर। शाहजहांपुर में जितने बिकाऊ और दलाल  पत्रकार हैं, शायद कहीं नहीं होंगे। बीस अखबारों की एजेंसी लेकर खुद को पत्रकार कहने वाले यह अंगूठाटेक दिनभर अफसरों और नेताओं के तलबे चाटते रहते हैं। पत्रकारों की यही प्रजाति अब अमर शहीद रोशन सिंह की प्रपौत्री इंदू के विरोध में खड़ी हो सकती है। सूत्र बताते हैं कि विधायक व दबंगों ने इन दलालों को चारा डाल दिया है। पैसा खर्च किया है कि पत्रकारों को बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस कराई जाए। उसमें इंदू के चरित्र पर कीचड़ उछालने की योजना है। इस सारी योजना के पीछे वह लोग भी हैं, जिन्हें इस बात का डर सता रहा है कि मामला उछलने और इंदू के पक्ष मंे समर्थन जुटने पर वह संपत्ति में से अपना हक मांग सकती है। खास बात यह है कि इनमें से तमाम वह पत्रकार हैं जो 19 दिसंबर को शहीद दिवस पर शहीदों के नाम पर चंदा मांग-मांग कर अपनी जेबें भरते हैं। इंदू के खिलाफ प्रेसवार्ता के लिए लखनऊ से प्रकाशित एक अखबार के पत्रकार को ठेका दिया गया है। जिन दबंगों ने इंदू के साथ वारदात की थी, अब उन्हें लगता है कि मीडिया को गुमराह करके ही बचा जा सकता है। फिलहाल दलाल पत्रकार क्या कदम उठाते है

याद रहे आज बिस्मिल जयंती है पर बधाई नहीं दूंगा-------।

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दोस्तों कई दिन से सोचे बैठा था कि ११ जून को बिस्मिल जयंती पर उस महान क्रांतिकारी के विषय में अच्छा सा लेख लिखूंगा।पर आज फेसबुक खोलते ही शाहजहांपुर समाचार द्वारा प्रेषित समाचार में अमर शहीद रोशनसिंह के विपन्न परिवारी जनों(झोपडी तक जला दी गई) पर हुये अत्याचार का चित्र सहित विवरण देखकर मन पहले क्षुब्ध और बाद में अपनी लाचारी पर खिन्न और शर्मिंदा हो उठा।'शाहजहांपुर समाचार'के संपादक जगेंद्र सिंह से बात की तो पता चला कि उनके अलावा किसी अन्य पत्रकार ने इस समाचार में कोई रूचि नही दिखाई।राशिद हुसेन राही और संजीव गुप्ता को मैसेज किया उन्होनें भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही की।इसी बीच मेरी पोस्ट पर श्रीकांत मिश्र कांत जी ने मेसेज किया कि कुछ करना चाहिये पर क्या ? फिर जगेंद्र सिंह से बात की शाहजहांपुर के एस०पी०,डी०एम० के नंबर लिये उदयप्रताप सिंह और अखिलेश यादव को मैसेज किया पर जब वहां के सपा विधायक राममूर्ति वर्मा ही उन गुंडों के साथ घूम रहे हैं --------------।अपने कुछ निज़ी मित्रों पत्रकारों से कहा या मानो गिडगिडाया आप कुछ करो--।पर स्वयं से एक सवाल बार-बार कर रहा हूं कि मैं और मेरे जै

अमर शहीद रोशनसिंह की विधवा प्र पो त्री इंदु सिंह जिनकी झोपडी तक सपा के गुंडों ने जला दी

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 अमर शहीद रोशनसिंह की विधवा प्र पो त्री    इंदु सिंह जिनकी झोपडी तक सपा के गुंडों ने जला दी 

उनको प्रणाम

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उनको प्रणाम जो बन उल्का टूटे कायर अंग्रेजों पर उनको प्रणाम जो लेट गये भालों पर तीखे  नेजों पर उनको प्रणाम जिनके डर से थर-थर-थर कांप उठा लंदन उनको प्रणाम जिनके भय से कर उठे फिरंगी थे क्रंदन उनको प्रणाम जो गहन तिमिर में जले स्वयं बनकर मशाल उनको प्रणाम जिनके गुस्से से सिहर उठा था महाकाल हाथों में शीश लिये अपने,वे चढे वतन के चरणों पर दुश्मन पर ऐसे झपटे वे ज्यों सिंह झपटता हिरणों पर उनको प्रणाम अर्पित करते तन-मन रोमांचित होता है जडता कपूर सी उड जाती स्फुरण बाहु में होता है अनगिनत दृश्य,अनगिनत चित्र,अनगिनत कथायें जाग रहीं वह देखो वीरों से डरकर अंग्रेजी फौजें भाग रहीं बैरकपुर से  मेरठ  तक    मंगल पांडे हुंकार उठे गुस्से से लाल रूद्र  मानो तप बिसरा कर जाग उठे जागे नाना तात्या जागे जागी भारत की तरूणाई जागा है बूढा शहंशाह ,   जागी रानी लक्ष्मीबाई जागा है अवध ,रूहेलखंड दिल्ली भी जागी है भाई थके-सुप्त-आहत भारत में फिर से नई ऊर्जा आई बेगम हज़रत गुस्से को     सह सकी नहीं रेज़ीडेंसी फोर्टविलियम में छटपटा रहे वह देखो हिज़ एक्सीलेंसी वो भाग रहा है मेटकाफ बुरका ओढे औरत बनकर पूरा भारत है जाग उ
मित्रों प्रथम स्वातंत्रय समर-१८५७ में देश पर मिटने वाले सेनानायकों में राजा और नबाब तो शामिल थे ही मंगल पांडे और अहमदउल्लाशाह जैसे साधारण जन भी शामिल थे।भारतमाता के ये बेटे अपने त्याग -तप से बलिदान उन हज़ारों राजाओं नबावों से श्रेष्ठ बन गये जो या तो अंग्रेजों की गोद में बैट गये या ऊंट की करवट का इंतज़ार करने मे लगे रहे।इन्ही महान सपूतों में से एक था मौलवी अहमदउल्लाशाह।मौलवी अहमदउल्लाशाह के बारे में विलियम रसल ने लिखा है कि यदि मुझे इस युद्ध के तीन नायक चुनने हों तो मैं लक्ष्मीबाई,तात्या टोपे और मौलवी अममदउल्लाशाह को चुनूंगा।उसमें भी किसी एक का चुनाव करना हो तो मौलवी अहमदउल्लाशाह को चुनूंगा क्यों कि ना तो वह राज परिवार से आया था और ना ही उसकी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा।वह महान सेनानायक अपने ही एक मूर्ख देशवासी के हाथों ना मारा गया होता तो  भारत में ब्रिटिश इतिहास कुछ और भी हो सकता थाभारतमाता के उस महान सपूत को समर्पित मेरी ये कविता मेरे आगामी काव्यसंग्रह"अग्निशर' में शामिल है। आज़ादी की खातिर जिसने कुर्बां कर दी जान भी आज कहानी सुना रहा हूं ऐसे वीर महान की लंदन तक ख

हिंदू :जाति धर्म- आदि से अंबेडकर तक

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  जाति और धर्म बेहद संवेदनशील और असतित्व से जुडे मुद्दे हैं।वर्तमान आरक्षण और सांप्रदायिकता से लेकर लोकतंत्र और समूची राजनैतिक सत्ता चाहे -अनचाहे धर्म और जाति से संचालित हैं ।निजी रुप मे हमे नास्तिक और जाति विहीन होने की आज़ादी हो सकती है पर समूह के रूप में हम जाति और धरम से कम से कम भारत देश मे किनारा नहीं कर सकते अतः यह बहुत ज़रूरी है कि हम जाति और धर्म के उद्भव और v प्रासंगिकता के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दें। भारत जिसे हम सुविधानुसार या कालक्रम में आर्यावर्त , जंबूद्वीप , भारतवर्ष , हिंदुस्तान या इंडिया जो भी कहते हैं या कहते रहे हैं , में धर्म आज की बंधी बंधाई परिभाषा जिसमें एक ईश्वर , एक प्रवर्तक , एक पुस्तक या एक विचार के रूप में रहा ना ही उसका कोई एक नाम भी नही रहा पर मोटे तौर पर उसे सनातन धर्म कहा गया।सनातन धर्म जाति का उल्लेख कहीं नहीं है।वहां वर्ण है-ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र।वर्ण कोई अपरिवरतनीय व्यवस्था नही है।विश्वामित्र से लेकर कई पाश्चात्य मनीषियों को रिषि स्वीकारा गया है। राजर्षि , महर्षि ब्रहम्रषि , जैसे उद्बोधन भी यह सिद्ध करते हैं कि एक व