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आज विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है

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आज विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है। हम में से कितनों को याद है।सावरकर का महत्व केवल इसलिये नही है कि उन्होने हिंदू महा सभा की स्थापना की या कालापानी की सजा काटी अपितु मदनलाल धींगरा , मैडम कामा , चंपक रमन पिल्लई या यो कहें उस दिनों विदेश में रह कर क्रांति  की अलख जगाने वालों में प्रथम पंक्ति में उनका नाम आता है।वीर सावरकर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वालों को तो शायद ज्ञात भी न होगा कि १८५७ की क्रांति को अंग्रेजों ने तो सिपाही विद्रोह कहा था वे सावरकर ही थे जिन्होने २३ वर्ष की अवस्था मे विदेश में रहते हुये अल्प साधनों से १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  पुस्तक लिखकर मौलवी अहमदउल्ला शाह को उस संग्राम का सबसे बडा नायक सिद्ध किया।साहित्यकार , इतिहासकार , दार्शनिक , चिंतक आदि के उनके व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि उनके हर पक्ष पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है।आज़ाद भारत ने उनके इस योगदान का सम्मान करते हुये उन्हे गांधी की हत्या के बाद जेल में डालकर दिया।वे वीर सावरकर ही थे जिन्होने सुभाष बाबू को विदेश जाकर सशस्त्र क्रांति करने का सुझाव दिया था।जीवन के अंतिम दिनों मे जब जवाहरलाल नेहर

सत्य को कहने और सुनने का साहस किसी में नहीं

अशोक ने जब कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तो उसके उत्तराधिकारियों ने अहिंसा को एक नीति के रूप में स्वीकार कर लिया जिसकी परिणिति देश पर विदेशी आक्रमणों के रूप में हुई।अशोक की दसवी पीढी में दशरथ नाम का राजा हुआ जो हर समय भोग विलास में लिप्त रहता था।बैक्ट्रिया के शासक डेमेट्रियस के आक्रमण की खबर सुनकर भी जब दशरथ ने सुरक्षा के उपाय नहीं किये तो सेनापति पुष्यमित्र शुंग के नेत्रत्व में सेना ने विद्रोह कर दशरथ की हत्या कर दी और पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मण वंश की स्थापना की।इस समय अयोध्या बौद्ध धर्म के सबसे बडे केंद्र के रूप में विकसित हो चुका था।बौद्ध मठ षडयंत्र और अनाचार के केंद्र थे।डेमेट्रियस को आमंत्रित करने वालों में बौद्ध भिक्षुओं की संलिप्तता की पुष्टि होते ही पुष्यमित्र शुंग का क्रोध बौद्ध मठों पर टूटा।अहिंसा की आड में कायरता और अनाचार के नये प्रतिमान अगर बौद्ध मठों ने गढे थे तो सनात धर्म की स्थापना और देश बचाने की धुन में पुष्यमित्र शुंग ने ऐसा हिंसा का नर्तन किया कि एक बार तो बौद्ध धर्म का नामलेवा भी उत्तर भारत में न बचा। उन दिनों बौद्ध धर्म को राजसत्ता का सहारा अशोक

सीमा पर आग बरसती है मैं गीत नहीं लिख पाता हूं

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मित्रों सत्ता हमेशा कविता की विरोधी होती है।ये सुनी सुनाई बात नही भोगी हुई बात है।अभी २-३ दिन पहले हिप्पोक्रेसी की चर्चा करते करते कवियों को भी लपेट लिया तो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से तरह तरह के कमेंट्स आये ।कुछ ने कहा आप भी वही हैं ----------।ऐसे लोगों का सोचना भी ठीक है क्योंकि सत्य का इतना दुरूपयोग हुआ है कि अब सब कुछ झूठ ही नज़र आता है कोई स्वयं से जुडी घटना का ज़िक्र करो भडास या पब्लिसिटी स्टंट से ज़यादा तबज़्ज़ो नही मिलती।फिर सोचता हूं कि समाज से सर्टीफिकेट पाना तो उद्देश्य है नहीं जो सच माने उनका धन्यवाद ना माने उनकी मर्जी जो गरियाये उनको सद्बुद्धि की कामना। इतनी लंबी चौडी भूमिका इसलिये क्योंकि आज जो कविता आपसे शेयर करने का मन है उसकी कीमत मैने चुकाई है और कुछ दिनो बाद उसे शेयर करते मुझे हिचक होगी।पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की बसयात्रा और करगिल युद्ध , उसके बाद लिखी गई ये कविता पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के विरूद्ध ना होकर सत्ता के चरित्र के विरूद्ध थी इसलिये दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के बाद भी हाशिये पर हूं , हानि लाभ की चर्चा ना करके कविता दे रहा

बिस्मिल की मां'---

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मित्रों  आज मातृदिवस है देश के तमाम महान देशभक्तों की तरह ही पं० रामप्रसाद बिस्मिल की मां ने भी बिस्मिल जी के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी ।बिस्मिल जी ने अपनी आत्मकथा में बडी श्रद्धा और भावुकता से मां को याद किया है।बिस्मिल जी के जीवन पर आधारित महाकाव्य ' बिस्मिल चरित ' में मैने प्रयास किया है कि उस महान मां के चरित्र पर कुछ रोशनी डाल सकूं अपने इस प्रयास में मैं कितना सफल हो सका हूं आप की प्रतिक्रियाओं से ही जान सकूंगा।प्रस्तुत है बिस्मिल चरित में अंकित ' बिस्मिल की मां '--- मकतब में , स्कूल में शिक्षा शिखर चढे थे आक्सफोर्ड या केंब्रिज में वे नहीं पढे थे अपनी धरती , अपनी संस्कृति के गौरव थे भारत की ग्रामीण चेतना के सौरभ थे बडे-बडे संकट आये पर , वे ना भूले वचन निभाने की धुन में रहते थे फूले ज्यों जीजाबाई ने शिवाजी का निर्माण किया था मूलमती माता ने उनको सहज गढा था पिता सख्त अनुशासन प्रिय थे , सदा क्रुद्ध दिखते थे उनके सामने रामप्रसाद जी कुछ ना कुछ लिखते थे लेकिन मां का आंचल उनको शीतल कर देता था नवसाहस

yuva mhotsav mein-baraiely

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