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मोड को पकडे खडा हूं

चला जाऊंगा, मैं कोई और राह पकडकर यही सोचा होगा तुमने मोड पर मुझसे बिछुडकर किंतु़‌ ‌ मैं तो मोड को ही पकडकर अब तक खडा हूं सिर्फ,इतनी आस में शायद कभी तुम मुड के आओ देखकर के मोड खाली सडक खाली तुम कहीं फिर मुड न जाओ तुम वहीं फिर मुड न जाओ मैं सडक पकडे खडा हूं यह सडक का मोड मुझको प्राण से ज्यादा सगा है यों बरसों-बरस इसने मुझको सताया है ठगा है किंतु़,साक्छी हैं गगन-धरती-दस दिशाएं भले कितनी ही रही हों कठिन दुष्कर प्रतीक्षाएं मोड पर से उचकते -झांकते अब तक नही है आंख झपकी ना ही टपकी-डबडबाई क्योंकि है विश्वास लौटोगे यहीं से और पाओगे मुझे यों राह तकते तो तुम भी तो उछल जाओगे खुशी से तुम्हे देने को तनिक सी खुशी मील के पत्थर सा सडक जकडे खडा हूं तुम जहां से मुड गये थे आज भी उस मोड को पकडे खडा हूं । ------अरविंद पथिक

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

आप सब को विदित ही है कि १९दिसंबर पं०रामप्रसाद बिस्मिल का बलिदान दिवस है और सिर्फ बिस्मिल जी कट ही क्यों काकोरी कांड के लिए शहादत देने वाले ठाकुर रोशनसिंह और राजेंद्र लाहिरी का भी।बिस्मिल जी की कई कविताएं- गज़ले लेकर कई बार आपके आ चुका हूं,आज श्रद्धांजलि स्वरुप बिस्मिल चरित जोकि वस्तुतः उस महापुरुष को प्रणाम करने के लिए ही लिखा गया था ,से बिस्मिल जी कि अतिम रात्रि की मनोदशा को व्यक्त करती कुछ पंक्तियां प्रस्तुत कर रहा हूं------ प्रिवी कौंसिल में भी आखिर खारिज हुए सभी प्रस्ताव प्रांत-गवर्नर विलियम मौरिस देता नही किसी को भाव दौरा ज़ज़ ने कहा था- कैदी,लिखकर पश्चाताप करें महामहिम फांसी की सज़ा को,हो सकता है माफ करें फांसी के अभियुक्तों ने, पुनः प्रार्थना भिजवायी लेकिन,फांसी के टलने की,युक्ति नही थी बन पायी फैज़ाबाद अशफाक पठाये ,रोशन भेजे इलहाबाद सबके अधरों पर नारे थे, क्रांति रहेगी ज़िंदाबाद शासन की,समाज की,न्याय की खूब परीच्छा ले ली थी सारे जीवन संघर्षों की आग राम ने झेली थी बिना स्वार्थ प्राणों को देश पे,न्योछावर कैसे कर कर दें? साधनहीन-युवक जन में हम शौर्य-तेज कैसे भर दे?