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आज विजयादशमी यानी दशहरा है।सनातन धर्म के चार महापर्वों में से एक।साहस,शौर्य और न्याय की जीत का पर्व।मर्यादा और आर्य संस्कृति के जयघोष का पर्व तो सर्वप्रथम तो आप सभी को इस महापर्व की अनेकानेक शुभ कामनायें।मित्रों वर्तमान में भी आसुरी शक्तियां जो रूप बदलकर मारीचि और सुबाहू से लेकर मेघनाद जैसे महाबली तक की शक्लबदलकर  मौज़ूद है।रावन जैसी विद्वता ,तप और अहंकार से उन्मत्त सत्ता शिखर तथा बालि जैसा परक्रमी परंतु चरित्रहीन चरित्र पग पग पर आसुरी अट्टहास करते विचरण कर रहे हैं।ऐसे में सत्य राम की तरह साधनहीन ,वनवासित उत्पीडित उपेक्षित है।बिना निश्छल प्रेम और समर्पण के हनुमान और सुग्रीव के सहयोग के अन्याय द्वारा संचित स्वर्ण लंका को ध्वस्त कर पाना मर्यादा पुरूषोत्तम के लिये भी संभव नही है।लंका ध्वंस को साधन-संपन्न सेनाये नहीं गिरि-कंदराओं का आत्मबल और समर्पण चाहिये।एकांत साधना कर रहे महर्षिओं का आशीष चाहिये।एक बार इंद्र को विश्वास हो जाये तो स्वर्ग के साधन तो स्वयं ही उपलब्ध हो जायेंगे।ये विश्वास जगेगा तप से,त्याग से परंतु जो दूसरे के मान-सम्मान और अधिकार का हरण करता हो ,जो रिश्तों की गरिमा और पव