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फिर भी मैं हूं

मै तो कोई स्वामी महंत या दैवी-पैरोकार भी नहीं हूं फिर भी मैं हूं अपनी संस्कृति को तिल-तिलकर नष्ट होते देखती नम आंख हूं मैं गांधी,सुभाष और भगतसिंह के सपनों की राख हूं हमेशा से एक बवाल हूं दुखियों की आह हूं लाचारों के लिए राह हूं मगर आप मुझे अब भी नही पहचान पायेंगे क्योंकि,आपकी आंखों पर तो भौतिकता का परदा पडा है जो दीवार बनकर हमारी और आपकी जान-पहचान के बीच खडा है इसलिए,आप दिन के उजाले मे भी मुझे पहचान नहीं पायेंगे आप तो सिर्फ मोटे बैंक बैलेंस और झंडे-बत्ती वाले विशिष्ट लोगों को जानते हैं आप आदमी को कहां पहचानते हैं आप मुझे नहीं जानते? यह आपका और इस देश का दुर्भाग्य है क्योंकि मैं तो अंधेरे मे भी चमकने वाला रवि हूं अरे,मैं सदियों से कुंभकर्णी-नींद मे सोये हुए इस देश को झकझोर कर जगाने कि अनथक कोशिश करता हुआ कवि हूं। अरविंद पथिक ९९१०४१६४९६

अभिव्यक्ति

मित्रों चूंकि कविता ही मेरी अभिव्यक्ति का स्वाभाविक माध्यम है अतः देश से अपनी बात को कुछ पंक्तियों के माध्यम से रख रहा हूं ।यदि आपको ऐसा लगे कि जो कुछ मै कह रहा हूं वही आप भी कहना चाहते हैं तो बतायें अवश्य---------- लालकिला संसद स्वाभिमान पर हमले को अपमानित करने वाले हर एक ज़ुमले को सह लेते हैं चुपचाप विवशता क्या है? इन बमों ,आयुधों ,अस्त्रों की आवश्यकता क्या है? भरे हैं शस्त्रागार,देश अपमानित है? भारत का साहस-शौर्य हुआ क्यों शापित है? अरविंद पथिक

राजीव गांधी को लल्लू प्रधानमंत्री कहने वाले अशोक चक्रधर हिंदी अकादमी की गरिमा बढाने के बाद भारतीय सांस्क्रतिक संबंध परिषद को कौन सी अमूल्य सलाहें दे र

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कल शाम नीरवजी के साथ बैठा था।स्वाभाविक था कि देश दुनिया लोकमंगल ,व्यवस्था,राजनीति सभी को जी भरकर कोसा।सिवाय कोसने के कलम के मज़दूर कर भी क्या सकते हैं।रात मे लगभग ११ बजे लौटने के बाद भी नीद नही आयी बाबज़ूद इसके कि सस्ती सी शराब के पांच- या छः पैग उतार आया था।नीद ना आने की वज़ह कोई क्रांतिकारी योजना असफल हो जाना नही था अपितु असहायता-निराशा का शायद वही भाव घर कर जाना था जिसने बिस्मिल जी से लिखवाया कि अभी देश क्रांति के लिए तैयार नहीं हमें गांधीजी के रास्ते पर चलकर पहले देशवाशियों को तैयार करना होगा।देश ने शायद बिस्मिल जी को बुला दिया पर उनकेइस संदेश को गांठ बांध लिया। पर आज २०११ मे अब देश क्या करे जब गांधी के रास्ते पर चलने वालों को रात मे दौडा-दौडा कर मारा जाने लगा है। इस घटना से पुर्व अपने मित्रों द्वारा राजनीति और व्यवस्था कोकोसे जाने पर मैं बडे फख्र से कहता था कुछ भी हो हमारे यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी है ,लोकतंत्र है।मैं किसी पत्रिका मे ना छपने वाला स्वयंभु लेखक,सरकारी स्कूल काअदना सा अध्यापक बडे से बडे माफिया,पत्रकार नेता को सरेआम उसकी औकात बताने मे नहीं हिचकता था। पर आज बिस्मिल जी के १