संदेश

जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

gazal

चित्र
मां ,बेटी, बहू ये बनकर उम्र भर पिसती रहीं फर्ज़ के कोल्हू में केवल लडकियां पिरती रहीं नेक था,मासूम था,सचमुच ही था बेहद ज़हीन बे बजह उसको सदा यूँ झिडकियां मिलती रहीं इक झलक दिखला के जाने फिर कहां वो खो गया? किंतु पहरो मेरे दिल की खिडकियां हिलती रहीं मक्खी -मच्छर और भुनगे शोर में मशगूल थे जाल खामोशी से अपना मकडियां बुनती रहीं कनखियों से देख कर ही आंख उसने फेर ली मेरे मन के आसमां पर बदलियां घिरती रहीं