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अगस्त, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आपके बच्चों को पालती आपकी पत्नी,आपके हाथ में पानी का गिलास थमाती बेटी आप के इंतजार में टकटकी लगाये राह तकती मां और विश्वास के साथ अपना सब कुच समर्पित प्रेयसी क्या आपसे थोडा और संवेदनशील और सह्रदय होने की भी अपेक्षा ना रखे।

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तमाम नारी विमर्श के ,महिला आयोग  और नारीवादी संगठनों के हो हल्ले के बावज़ूद नारी के विरूद्ध होने वाले अपराधों में -अत्याचारों में निरंतर वृद्धि हो रही है।ना तो दहेज और भ्रूण हत्या पर रोक लग सकी है और ना ही नारी अस्मिता पर हो रहे हमले थमे हैं।स्वतंत्रता की कीमत नारी ने दोहरी ज़िम्मेदारी ओढ कर चुकायी है।तमाम पूर्वाग्रहों को परे रख दें तो आज नारी ने चाहे अनचाहे अपने ऊपर इतना दबाव ले लिया है कि संपूर्ण अस्तित्व चरमरा कर ढह जाने को है ।यदि बात कार्यशील महिलाओं की की जाये तो पहले की तरह ही उसे पुरूषों से पहले उठना और बाद में सोना है।घर का खाना ,बरतन ,कपडे पहले की तरह उस की ज़िम्मेदारी हैं ।कार्यालयीन दबावों और कामों को वह बोझ जो केवल पुरूष की ज़िम्मेदारी था वह आत्मनिर्भरता के चक्कर में ओढ कर नारी चकरघिन्नी बनकर रह गयी है।ये ठीक है कि इस आत्मनिर्भरता ने उसआत्मविश्वास और संपन्न बनाया है पर उसकी कीमत नारी ने अपने स्वास्थय और शांति से चुकायी है।  पुरूष की मानसिकता भी बदली है पर सारा समाज उस तरह से नही बदला वह चाहे हापुड के निकट हुयी घटना हो या नरेंद्र मोदी का वक्तव्य ।पंचायत की नज़र में नारी

आपका व्यक्तित्व है तो सभी को आपसे खतरा है।

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कई दिन से प्रमोशन में आरक्षण को लेकर बहस चल रही है।अटार्नी जनरल ने जिस संविधान संशोधन का सुझाव दिया है उसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद १६(४) तथा ३३५ ' पर्याप्त प्रतिनिधित्व ' तथा ' प्रशासन की कार्यक्षमता बनाए रखने ' शब्द को हटाया जाना। इस संविधान संशोधन के पश्चात एक ओर तो किसी भी सीमा तक आरक्षण को बढाया जाना संभव होगा वहीं दूसरी ओर कुशल प्रशासन की ज़बावदेही समाप्त हो जायेगी।सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय ५० प्रतिशत की सीमा रेखा और क्रीमी लेयर का सिद्धांत भी समाप्त हो जायेगा। दरअसल व्यवहार में तो ये सब कुछ बहुत पहले ही समाप्त हो चुका है बस सैद्धांतिक तौर पर जो शर्म है या सुप्रीम कोर्ट की बंदिश है वह भी समाप्त करने की तैयारी है।कोयला आबंटन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के शोरगुल के बीच ध्वनिमत से इस संशोधन का पारित हो जाना तय है क्योंकि जो पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं उनका विरोध सैद्धांतिक नहीं अपितु अपने वोट बैंक को लाभ दिलवाने के लिये है ।उसका तरीका तमाम पिछडे वर्ग को आरक्षण की परिधी में लाना है। यों भी व्यवहार में उच्च पदों पर अपने वर्ग के अधीकारियों की नियुक्ति कर ए

तेरी यादें ही लफ्ज़ों में ढली हैं गज़ल हैं,गीत हैं,रूबाइयां हैं

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मेरे चेहरे पे ये जो झाइयां हैं बुरे वक्तों की परछाइयां हैं शराफत का अभिनय न करिये पता है आप बेहद काइयां हैं तेरी यादें ही लफ्ज़ों में ढली हैं गज़ल हैं , गीत हैं , रूबाइयां हैं कल तक रानियां थीं जो घरों की तुम्हारे शहर मे  वे बाइयां हैं ' पथिक ' जी गांव की हालत बुरी है बिजली है  ना अमराइयां हैं

shreekant mishra kant

chitravali

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कल का दिन काफी व्यस्त रहा

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कल का दिन काफी व्यस्त रहा।मेरे फेसबुक के आत्मीय मित्रों में से एक वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकांत मिश्र 'कांत' कल चंडीगढ से कोलकाता जाते हुये कृपा पूर्वक मेरे आवास पर पधारे या यों कहें उनके आत्मीय सम्मोहन के चलते मैं उनका अपहरण कर लाया।दोपहर के भोजन पर अपने गांव घर की स्मृतियों को ताजा करते कई मित्रों -अग्रजों से मोबाइल पर बात भी हुई जिसमें मेरे गांधी १९९० के भूले बिसरे आत्मीय शिवेंद्र मिश्र भी शामिल  हैं।श्रीकांत मिश्र 'कांत' की कवितायें दिन की उपलब्धि रहीं। दोपहर बाद मेरे दूसरे फेसबुक मित्र राहुल उपाध्याय मेरे साथ 'सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति,की के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिये मेरे आवास पर आये ।पं० सुरेश नीरव ,डा०कुंवर बेचैन,अरूण सागर,और राहुल उपाध्याय समेत नाचीज अरविंद पथिक दिल्ली और गाज़ियाबाद से इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुये ।जबकि विष्णू सक्सेना,राहुल अवस्थी आदि एक दर्जन से अधिक कवि विभिन्न शहरों से इस कवि सम्मेलन में शामिल हुये।राहुल उपाध्याय की 'मां'कविता पर कई महिलायें भावुक हो कर रो पडीं।जबकि मेरे काव्यपाठ से कई कवि भयाक्रांत

शहर शाहजहांपुर 'अयोध्या' ना बनेगा मान्यवर

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नफरतों का सिलसिला कब तक चलेगा मान्यवर ? व्यर्थ का शिकवा -गिला कब तक चलेगा मान्यवर ? किस पयम्बर ने कहा है अब बता ही दीजिये ? ज़ुल्मों-दहशत का किला कब तक चलेगा मान्यवर     ' राम ' औ ' अशफाक ' दोनो साथ रहते आये हैं शहर शाहजहांपुर ' अयोध्या ' ना बनेगा मान्यवर हर मुसलमां को दहशतगर्द कहना छोड दो गद्दार तो हिंदू के घर में भी मिलेगा मान्यवर अफज़लों को अपना कहकर कौम को गाली न दो ये तिरंगा आपके घर कब लगेगा मान्यवर   ? बस्तियां हिंदोस्तां मेंआज भी ऐसी हैं कुछ देश का झंडा जहां फिर से जलेगा मान्यवर है अंधेरा बहुत पर इतना अंधेरा भी नहीं बहुत ज़ल्दी ये कुहासा भी हटेगा मान्यवर ' पथिक ' को झंडे के नीचे लाने की ज़िद छोडिये वह अकेला ही चला है औ चलेगा मान्यवर

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह'

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१२ अगस्त को ग्वालियर के चैंबर आफ कामर्स सभागार में'सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति' ने महान स्वतंत्रता सेनानी एवं पत्रकार पं० दामोदरदास चतुर्वेदी की जयंती के उपलक्ष में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह' का आयोजन किया।इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले कवियों में मुंबई से देवमणि पांडे,लक्षमण शर्मा वाहिद,दिल्ली से पं० सुरेश नीरव,अरविंद पथिक,पी०एन० सिंह,डा०कृष्णकांत मधुर,गाज़ियावाद से अरूण सागर,रजनीकांत राजू,मुरादाबाद से डा० मधु चतुर्वेदी ,कटनी से प्रकाश प्रलय,दमोह से प्रेमलता नीलम,लखीमपुर खीरी से श्रीकांत सिंह,अरविंद कुमार,श्रीनगर से नीरज नैथानी,राकेश जुगरान,फरीदाबाद से नमिता राकेश आदि शामिल थे परंतु कार्यक्रम की उपलब्धि थे चेन्नई से आये वरिष्ठ साहित्यकार प्रो०पी बाला सुब्रमण्यम एवं पी ०चेलम्मा।कई भाषाओं के विद्वान पी ० बाला सुब्रमण्यम की संस्कृत निष्ठ हिंदी ने सभी को मोह लिया। इस अवसर पर साहित्यकारों एवं पत्रकारों को भाषा-भारती सम्मान-२०१२ से अलंकृत भी किया गया।अलंकरण पाने वाली विभूतियों में मुंबई से देवमणि पांडे,लक्षमण शर्मा वाहिद,दिल्ली से पं० सुरेश नीरव,अ
कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो ये विश्वास जगाते हैं कि अभी भी सकारात्मक सोच से समर्पित भाव से कार्य करने वाले लोगों की कमी नहीं है।किसी भी नये कवि-कलाकार के लिये आज भी टी वी स्क्रीन पर दिखना कितनी बडी बात है इसे वही समझ सकता है जो स्वयं ऐसे दौर से गुज़रा हो।वर्ष १९९४ में राजधानी दिल्ली आने के स्वाभाविक गंवई संकोच और शहरी आक्रामकता से अपरिचित मैं संयोगवश ही हिंदी अकादमी दिल्ली के कुछ सज्जन अधीकारियों के संपर्क में आया और दिल्ली के पटेल नगर में वर्ष १९९७ में पहली बार दिल्ली में मैने काव्यपाठ किया।मुझे याद है उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मीरा कुमार थीं ,जो आज लोकसभा अध्यक्ष है।जिस तरह से उस कार्यक्रम के बाद हिंदी अकादमी के अधीकारियों जिनमें श्री प्रकाश लखचौरा और अकादमी के तत्कालीन सचिव डा० रामशरण गौड ने मुझे हाथो -हाथ लिया मेरी कवितायें मगवायी और बिना किसी प्रयास के वर्ष १९९८ में मेरा पहला काव्य संग्रह "मैं अंगार लिखता हूं" प्रकाशित हुआ आज भी मुझे परी कथा सा लगता है। आज ये सब बातें आपसे शेयर करने का मन इसलिये हुआ क्योंकि कल फिर ऐसा ही अवसर से गुजरना हुआ।देश के सुदूर अंचलों से आये

देवत्व आंसुओं के मूल्य को चुकायेगा

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कृष्ण जनमाष्टमी की कोटि-कोटि शुभकामनायें।कृष्ण का बहुरंगी माखनचोर से लेकर योगेश्वर तक चरित्र और फिर महाभारत तथा अंतिम काल में यदु वंश को नष्ट होते निस्पृह भाव से देखते रहने का अंदाज़ अनुकरणीय नहीं।कृष्ण की केवल आराधना की जा सकती है ।अभीभूत हुआ जा सकता है।वे अगम्य हैं।तमाम पक्षों के बीच एक पक्ष जो कवियों , भक्तों की दृष्टि से उपेक्षित रह गया वह है।राधा के प्रति उनके अगाध प्रेम का पक्ष।उनकी वेदना का पक्ष।मैं ऐसा अनुभव करता हूं कर्तव्य बोध ने कृष्ण को कभी पलट कर अपने कैशोर्य के उस प्रेम की ओर जाने नहीं दिया या फिर लडके को बिगडता देख  ही नंद-यशोदा ने कसम देकर कहीं मथुरा तो नहीं भेजा था कि हमारे जीते जी अब तू गोकुल नहीं आयेगा--- आज २० साल पुरानी डायरी मिल गयी--१९९२ मे जब मैने गोष्ठियों में जाना शूरू कर दिया था और जीवन संक्रमण काल से गुज़र रहा था तब उपरोक्त संदर्भ में कुछ लिखने की कोशिश की थी।इन पंक्तियों में छंद और व्याकरण का दोष है पर भाव की तीव्रता को बनाये रखने के लिये जहां है जैसा है के आधार पर श्रीकृष्ण को आज जन्माष्टमी पर सौंप रहा हूं--श्रद्धालु भी प्रसाद पायें---- कृष्ण के

हिंदी कविता की वाचिक परंपरा के ध्वज वाहक बनेंगे'

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कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो ये विश्वास जगाते हैं कि अभी भी सकारात्मक सोच से समर्पित भाव से कार्य करने वाले लोगों की कमी नहीं है।किसी भी नये कवि-कलाकार के लिये आज भी टी वी स्क्रीन पर दिखना कितनी बडी बात है इसे वही समझ सकता है जो स्वयं ऐसे दौर से गुज़रा हो।वर्ष १९९४ में राजधानी दिल्ली आने के स्वाभाविक गंवई संकोच और शहरी आक्रामकता से अपरिचित मैं संयोगवश ही हिंदी अकादमी दिल्ली के कुछ सज्जन अधीकारियों के संपर्क में आया और दिल्ली के पटेल नगर में वर्ष १९९७ में पहली बार दिल्ली में मैने काव्यपाठ किया।मुझे याद है उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मीरा कुमार थीं ,जो आज लोकसभा अध्यक्ष है।जिस तरह से उस कार्यक्रम के बाद हिंदी अकादमी के अधीकारियों जिनमें श्री प्रकाश लखचौरा और अकादमी के तत्कालीन सचिव डा० रामशरण गौड ने मुझे हाथो -हाथ लिया मेरी कवितायें मगवायी और बिना किसी प्रयास के वर्ष १९९८ में मेरा पहला काव्य संग्रह "मैं अंगार लिखता हूं" प्रकाशित हुआ आज भी मुझे परी कथा सा लगता है। आज ये सब बातें आपसे शेयर करने का मन इसलिये हुआ क्योंकि कल फिर ऐसा ही अवसर से गुजरना हुआ।देश के सुदूर अंचलों से आय

आंदोलन क्रांति बनना तो दूर मज़मा बन कर रह गया

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अन्ना द्वारा आंदोलन वापस लेने से वातावरण में निराशा व्याप्त है।ये निराशा और ज्यादा सघन इसलिये है क्योंकि अन्ना ने राजनीति में आने का फैसला किया है।इस आंदोलन की रीढ वे युवा थे जो 'राजनीति को डर्टी' मानते हैं।ये युवा खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।ये वे युवा हैं जो वोट डालने नहीं जाते पर सब कुछ उलट -पलट देना चाहते हैं।इनके तन पर कपडे भले विदेशी हो पर दिल पूरी तरह से हिंदुस्तानी है। जो देश पर गर्व करता है देश के लिये सब कुछ नष्ट -भ्रष्ट कर सकता है और खुद को बलिदान भी कर सकता है।ये किसी का वोट बैंक नही है।राष्ट्रीयता की बात चलने पर स्वयं को बी जे पी के करीब पाता है पर राममंदिर के लिये जो रवैया बी जे पी ने अख्तियार किया उससे सहमत नहीं। ना तो वह आडवानी के तौर -तरीको से सहमत ।ये वर्ग मोदी के विकास और हिंदुत्व से प्रभावित है पर गुजरात दंगों से नाखुश।ये रामदेव के साथ नही जा सकता क्योंकि बौद्धिक तौर पर रामदेव उसे अपील नहीं करते ।अरविंद केज़रीवाल का 'इनकम टैक्स-कमिश्नर' पद से त्याग और आर० टी०आई० आंदोलन का संघर्ष उसे चमत्कृत करता है क्योकि काली कमाई के सुखो का उपभोग कर रहा ये वर्ग क

काश ऐसा ना होता------------------।

शुभ प्रभात,कल रक्षाबंधन पर व्यस्त रहा ।कई बरसों बाद बहन आयी तो मेरी कलाई पर भी इस बार राखी सज गई।सबके अपने संघर्ष  की आंच में हम कब मांस से पत्थर हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।देर से वापस आये घूम घाम के बहनोई साब अन्ना के अनशन स्थल पर जाने की ज़िद कर रहे थे।मेरा भी मन था पर त्योहार का दिन बहन का बार-बार भावुक हो जाना बच्चों के लिये कभी ये खरीदना कभी वो।सारा दिन इसी में निकल गया।तय किया कल कार्यालय से छुट्टी लेके पूरा दिन अन्ना के साथ -पास बैठेंगे।टी वी खोला तो सुना अन्ना कह रहे हैं अब राजनीतिक विकल्प --अनशन समाप्त कल।मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ  क्योंकि मैं कोई नये डेवलेपमेंट की अपेक्षा कर ही रहा था--।पर सीधे अनशन वापसी का निर्णय ---इसकी आशा मुझे भी नहीं थी। मेरे बहनोई साब तो अन्ना को गालियां देते हुये--सोने चले गये और मुझे देर तक नींद नहीं आयी।मेरी चिंता का विषय यह था कि अन्ना ने जिन परिस्थितियों में अनशन वापस लिया वह उनके परिपक्व आंदोलनकारी होने की पुष्टि करता है पर जिस तर से वापस लिया उसके लिये इस देश के युवा को संतुष्ट कर पायेंगे।पिछले दिनों मेरी बहुत से मित्रों से बात हुई वे बडे