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जुलाई, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हम तो मर जाते तुम्हारी एक ही मुस्कान से

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कई दिन से निराशा-हताशा की बाते लिखकर थकने लगा हूँ ,तो लीजिये खालिस अरविन्द पथिक स्टाइल  की ताज़ा तरीन गज़ल ------------   लौट कर आया   है जब से यार इंगलिश्तान से हो गये उस रोज से हम   फालतू सामान से पोस्ट सेटिंग झाडू , बरतन , बेलनों का कत्ल नाहक ही किया हम तो मर जाते तुम्हारी एक ही मुस्कान से हो गये हैं हुस्न वाले भी सयाने आजकल अब नहीं पटता है कोई रूप के गुणगान से इन तरक्की के दिनों कुछ भी आसां ना रहा हो गया है सबसे मुश्किल जीना अब सम्मान से यों पथिक भी ठीक ही है ज्वाय को , इंज्वाय को मगर शादी तो करेंगे लल्लू से धनवान से

सौ करोड भारत की जनता कहती है

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जिस दिन फारुक अब्दुल्ला ने ये बयान दिया था की अफज़ल फँसी देने से घाटी के हालत बिगड़ सकते हैं ये कविता लिखी गयी .अरुंधती राय जैसी महिलाये जिस तरह जंतर -मंतर  पर चिल्ल पो करती रहती हैं उसकी अनुगूंज भी इस कविता में मिलेंगी -- आज स्वर्ग मे तडपे होंगे फिर शेखर , अशफाक झुकाये शीश मौन बैठे होंगे बिस्मिल जी ने क्या क्या न आज सोचा होगा ? लहरी , रोशन ने कैसे-कैसे सवाल पूंछे होंगे ? क्यों चूमा फांसी का फंदा हमने असैंबली मे बम नाहक ही फोडे थे गुस्से में मुठ्ठियां भींच कह रहे , भगत ऐसी आज़ादी के लिए प्राण ना छोडे थे , संसद पर हमला करने वालों को फांसी देने मे इतनी घबराहट क्यों ? क्यों राजनीति के गलियारे हैं डरे हुए घाटी मे बिला वजह इतनी चिल्लाहट क्यों ? क्या चंद वेश्या जंतर -मंतर पर चीख पुकार मचा कर धमका जायेंगी? क्या ओछी-राजनीति के हाथों अपमानित हो रूहें अमर शहीदों की फिर अश्रु बहायंगी? संसद की खातिर प्राण गवाने वालों ने हतप्रभ हो जब धरती पर झांका होगा सोचा होगा बेकार ही प्राण गंवाये थे हम भावुक थे , मन कच्चा था जैसे पाखंडी , मक्का
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कवि सम्मेलन के मंचों पर अक्सर मैं समस्त कलमकारों(लेखकों,कवियों,पत्रकारों,मसिजीवियों)को एक मुक्तक समर्पित करता हूं,आज इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को भी कलमकार मानते हुये ये मुक्तक दे रहा हूं-- सिर्फ नेता ही नहीं कुछ और भी मक्कार हैं जो कलम को बेंचते हैं ,वे भी तो मक्कार हैं पूरी पीढी है नपुंसक रक्त में गर्मी नहीं इसलिये करगिल यहां औ यहां कंधार हैं

हर परिवर्तन कीमत मांगता है,जितना बडा परिवर्तन उतनी बडी कीमत

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मुंबई के बाद दिल्ली में भी 'अन्ना टीम'का फ्लाप शो जारी है।क्या आपने गंभीरता से सोचा है क्यों?क्या देश की जनता ने कांग्रेस के कुशासन को स्वीकार कर लिया।क्या सारा मीडिया बिक गया?क्या मुद्दे अप्रसांगिक हो गये?यदि ये प्रश्न आप मुझसे पूंछेंगे तो मैं कहूंगा नही।ऐसा कुछ भी नही है।जहां तक मैं समझता हूं तो मुझे लगता है कि इस आंदोलन को चलाने वालों से कुछ भयंकर भूले हुई हैं जिनकी वज़ह से एक बडे वर्ग का मोह भंग हुआ है। दरअसल क्रांति और आंदोलन में एक बुनियादी फर्क है।क्रांति आमूल-चूल परिवर्तन करती है।क्रांति सृजन से पहले बहुत कुछ नष्ट करती है ।प्राणों की आहुति लेती है।गेहूं के साथ घुनों को भी पीसती है।कुल मिलाकर क्रांति मूल्य मांगती है।इसके विपरीत आंदोलन कुछ ले दे के आगे बढने का रास्ता है।विश्व में गांधी से बडा आंदोलनकारी दूसरा नहीं हुआ।आप गांधी के सारे आंदोलनो को देखिये बिना ये आंकलन किये गांधी के आंदोलनों के स्थगन के कारणओ के पीछे।आप पायेंगे जब भी आंदोलन चरम पर पहुंचा गांधी ने कुछ ना कुछ ले कर समझौता कर लिया।आफ सहमत हों या ना हों आंदोलनों की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि आप कब औ

ज़िंदगी तुझसे भी रिश्ता बिगड सकता है

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ज़िंदगी तुझसे भी रिश्ता बिगड सकता है दिल परेशां है दिमाग से झगड सकता है वक्त के लेखे कौन पढ सकता है ? लूला ऐवरेस्ट पे भी चढ सकता है दौरे -ए-गर्दिश में ईमान की बात न कर उसूल वाले तू ज़मीं में भी गड सकता है उन्हें यकीं ही नहीं कि  उनके सिवा किताबे-इल्म कोई और भी पढ सकता है जिनके नश्तर सहे उफ तलक न आयी लब पे आज उनको मेरा गुलाब भी गड सकता है ज़बीं पे ' पथिक ' की बल दिखाई देते हैं कोई पर्वत जड से उखड सकता है

लिखना मेरा काम है सोचना पढने वालो का

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कई दिन से सोच रहा था कि इस विषय पर लिखूं ना लिखूं पर आज ये सोचकर लिखना मेरा काम है सोचना पढने वालो का , लिखने का फैसला किया-- इन दिनो मीडिया के सभी माध्यमों में और सोशल मीडिया में कुछ ज़्यादा ही फतवाबाज़ी की बाढ आयी हुई है और शायद यह फतवाबाज़ी ही इस माध्यम को गंभीरता से ना लेने को मज़बूर करती है।सरसरी तौर पर देखे तो यहां देशभक्त , समाज सुधारक आदर्शवादी , क्रांतिकारी साहित्यकार , इफरात में और कुछ श्लील अश्लील चर्चा करते लोग मिल जायेंगे।इस मीडिया में आजकल सोनिया , नेहरू , मनमोहन , दिग्विजय को इतनी गालियां मिल रही हैं कि उन्हें चर्चा में बने रहने को विज्ञापनों पर चवन्नी खर्च करने की ज़रूरत नहीं। एक बडा काम और हो रहा है इस गाली देने वाली ज़मात में शामिल हो जाइये और महान क्रांतिकारी का तमगा पा जाइये।देशभक्ति नापने का एक ही पैमाना।आपने ज़रा इनकी बात काटी और आप कांग्रेसी कुत्ते और सेक्यूलर और हिंदुओं के पतन के ज़िम्मेदार हो गये।सुभाष , आज़ाद और भगतसिंह की भक्त यह पीढी भगतसिंह का हत्यारा गांधी को तो आज़ाद का हत्यारा नेहरू को समझती है और अपने अधकचरे और पुर्वाग्रह से प्रेरित ज्ञान के सह

पं० रामप्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आज़ाद को क्विक सिल्वर कह कर बुलाते थे।

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आज अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती है।कक्षा ८ में पढा गया मातृभूमि के लिये खंडकाव्य मेरी प्रिय पुस्तकों मे आज भी शामिल है।वर्ष २००६ में पं०रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन पर आधारित मेरे प्रबंध काव्य ' बिस्मिल चरित ' को लिखते समय मेरे अवचेतन में कही ' मातृभूमि के लिये ' की अनुगूंज थी ' बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि पं० रामप्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आज़ाद को क्विक सिल्वर कह कर बुलाते थे।।बिस्मिल चरित ' में चंद्रशेखर आज़ाद को भी मैने ' एक्शन ' की योजना में चर्चा करते चित्रित किया है।आज आज़ाद को श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट कर रहा हूं------  द्वारिकापुर की घटना ने , क्रांति -कर्म दुर्घटना ने घाव किये मन पर भारी , पर , बिस्मिल थे आभारी छूट गये थे कलुषित कर्म किंतु हवा थी बेहद गर्म साधन कहां से लायेंगे दल को कैसे चलायेंगे ? आया तभी उन्हें संदेश ' साथी बन सकता है विदेश ' ज़र्मन -पिस्तौलेम-बंदूक और बमों के कुछ संदूक ले जहाज है रस्ते में मिल सकते हैं सस्ते में कुछ दंद करो या फंद मुद्रा का पर करो प्रबंध पाना खेप

मैं चाहता हूं कि इस विषय पर बहस हो और हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।

कल रात लगभग ९ बजे फेसबुक पर आया और आते ही पहली मुठभेड शैलेश पाराशर द्वारा शेयर किये एक चित्र से हुई जिस पर में एक लडका शिवलिंग के ऊपर पैर रखकर खडा है।इस चित्र के नीचे एक टिप्पणी भी थी जो शेयर करने वाले ने की थी।मैने शैलेश से आग्रह किया कि इस चित्र को शेयर करने के बजाये डिलीट कर दें।कुछ ना कर पाने की स्थित में मैने अपने उन मित्रों को जो हमेशा ईंट का ज़बाव पत्थर से देने को आतुर रहते हैं संपर्क किया और खुद भी वही चित्र जिसे शैलेश मेरे कहने से हटा चुके थे ढूंढने में लग गया।सौरभ द्विवेदी और शिवम शुक्ला निरंतर चित्र मांग रहे थे और ज़ल्दी ही वह चित्र भेजने वाले की कई आई०डी० और बहुत से इसे शेयर करने वालों के प्रोफाइल मिल चुके थे।शिवम ने सभी राष्ट्रीय चैनल्स तक को सूचना दी और ज़बाव पाया कि ये कोई न्यूज नही है। अब मैं एक अंधी सुरंग में था कि क्या किया जाय?इस देश के फेसबुक यूजर्स का कितने पर्शैंट सनातन धर्मी है मुझे नहीं पता पर यह संख्या समूची संख्या के ५० प्रतिशत से अधीक तो होगी?कोई रास्ता समझ ना आने पर मैने अपने सिद्धांतों के विरूद्ध जाकर उस बदतमीज लडके मेसेज बाक्स को गालियों से भर देने को क

वैसे तुनकमिज़ाज़ बहुत था पर 'यारों का यार' था

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गज़ल आंख जिसे खोजा करती है वह तो कभी ना आयेगा मगर मेरे हर एक लफ्ज़ में वह     रोयेगा-     गायेगा  घडी की सुइयों जैसी सांसें ना जाने कब थम जायें ? साज रखे रह जायेंगे सब , गीत ना कोई गायेगा उनको शायद बहुत बरस तक खबर भी ना होने पाये बंजारा अब लौट के उनकी गली कभी ना आयेगा हमने कसम उठा ली हम अब याद तुझे ना आयेंगे तू भी कह दे तेरा सपना हमको नहीं सतायेगा तुम खूंटे की गाय नही हो ,   ना ही मदर टेरेसा हो हम पर कितना ज़ुल्म हुआ है तुम्हे समझ कब आयेगा ? तुम पर गुस्सा करता हूं  , तो खुद ही घायल होता हूं गुस्सा है बचपन का साथी , साथ ही मेरे जायेगा वैसे तुनकमिज़ाज़ बहुत था पर ' यारों का यार ' था ज़िक्र चला तो कुछ ऐसा ही ' पथिक ' बताया जायेगा।                        ------------------------ अरविंद पथिक

वह ईश्वर भी निकृष्ट है जो मनुष्य को मान ना देता हो

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धर्म अधर्म , नास्तिक-आस्तिक , आस्था -अनास्था आदि विषयों से मानव शायद तभी से टकराता रहा है जबसे उसने सामूहिक रूप से रहना शुरू किया।समाजशास्त्री और धर्माचार्यों ने बहुत विचार किया है इस पर।प्रकृति के विकराल , अद्भुत और अपराजेय शक्ति के  पीछे कोई न कोई सत्ता तो ज़रूर है , कोई तो है जो मेरी मदद करेगा इस अपराजेय सत्ता को पराजित करने में।शायद उसी सत्ता को मनुष्य ने ईश्वर नाम दिया और फिर वह ईश्वर मनुष्य से बडा और बडा होता चला गया।सनातन धर्म में तो ' यत धारयति स धर्मो"अर्थात धर्म जीवन शैली है ईश्वर को पाने की सीढी नही।धर्म जो जीवन जीने का ढंग था वह धीरे-धीरे जीवन पर छाता गया , जीवन को ही चलाने लगा धर्म मुख्य हो गया जीवन गौड।धर्म के लिये हजारों जीवनों की बलि चढाई जाने लगी।ये तो हुआ धर्म और आस्था के साथ और नास्तिक जिन्होने अपने को किसी सहारे से दूर रखा था जो सब कुछ स्वतः और प्राकृतिक ढंग से हुआ मानते थे वे कभी मार्क्स और माओ तो कभी भगतसिंह में सहारा ढूढने लगे।ये तो इतिहास के विद्यार्थी ही बता पायेंगे कि मारकाट आस्तिकों ने ज़्यादा मचायी या नास्तिकों ने।मजे की बात यह है कि दोनो ने ये क

अपनी भरी तिज़ोरी ढंग से ,बजा देश का बाजा

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अपनी भरी तिज़ोरी ढंग से , बजा देश का बाजा अमर रहेगी कीर्ति तुम्हारी घोटालों के राजा ए जी ओ जी गाने वाले जान गये हैं टू जी दिखने में छोटे लगते हो पर हो सबसे मूंजी बना के मानोगे भारत को निश्चय ही तुम गाज़ा अमर रहेगी कीर्ति तुम्हारी घोटालों के राजा बेशरमी में भी निकले तुम आखिर सब के राजा अपनी भरी तिज़ोरी ढंग से , बजा देश का बाजा राजा से राजा भैय्या तक ' जन्मभूमि '  के बंदी कलमाडी , कनिमोझी आदि हैं यहां भी तो प्रतिद्वंदी इससे पहले छीने कोई खा जा और पचा जा अमर रहेगी कीर्ति तुम्हारी घोटालों के राजा मनमोहन जी चंवर डुलायें सोनिया जी समझाये करूनानिधि गुमान कर रहे ऐसा साथी पाये जेठमलानी बुला रहे हैं पास हमारे आजा अमर रहेगी कीर्ति तुम्हारी घोटालों के राजा रामदेव या सुब्रमण्यम से स्वामी कर लेंगे कागज़ का इस्तीफा ले लो नोट नहीं हम देंगे ' अम्मा ' जी की गोद पुकारे आजा प्यारे राजा अपनी भरी तिज़ोरी ढंग से , बजा देश का बाजा सच पूछो तो नेताओं की बुद्धि गयी है   मारी मन ही मन में सी बी आई कब की तुमसे हारी वह बेचारी तो चेरी ह

'क्रिसमस ट्री'समझते हैं अब तो लोग बच्चों को

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ना जाने क्या बनाने में लगे हैं लोग बच्चों को ? ना जाने क्यों सताने में लगे हैं लोग बच्चों को ? बच्चों में बच्चों सा रहा कुछ भी नहीं बाकी नुमाइश सा सजाने में लगे हैं लोग बच्चों को नही हैं मानते वे फर्क कुछ यीशू में बच्चों में सलीबों पर चढाने में लगे हैं लोग बच्चों को ' राइम ' रटना ही काफी नहीं दौरे तरक्की में सभी कुछ तो रटाने में लगे हैं लोग बच्चों को ' घर में हैं नहीं पापा '- कह दो जाके अंकल से कैसे झूठ बोलें वे सिखाते लोग बच्चों को किताबों का नहीं है ख्वाहिशों का बोझ बस्ते में ' क्रिसमस ट्री ' समझते हैं अब तो लोग बच्चों को ये अंधी दौड है इससे ' पथिक ' जी दूर ही रहिये बूढा करके मानेंगे अब तो लोग बच्चों को --------------------- अरविंद पथिक      

सृजन पथ: देशभक्ति के यक्ष प्रश्न

सृजन पथ: देशभक्ति के यक्ष प्रश्न : देशभक्ति के यक्ष प्रश्न आज भारत देश अतिवाद के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसका खामियाजा उसे निकट भविष्य में भुगतना होगा।आधुनिक तकनीक और व...

देशभक्ति के यक्ष प्रश्न

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देशभक्ति के यक्ष प्रश्न आज भारत देश अतिवाद के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसका खामियाजा उसे निकट भविष्य में भुगतना होगा।आधुनिक तकनीक और विज्ञान इस अतिवाद को दूर करने के नहीं अपितु बढाने के साधन सिद्ध हुये हैं।सोशल मीडिया भी इस कट्टरता और अतिवाद को बढा ही रहा है।कट्टरता को किसी संप्रदाय विशेष से ना जोडते हुये मैं कह सकता हूं कि सभी संप्रदाय इसका उपयोग अपनी क्षमता भर कर रहे हैं। अभी दो तीन दिन पहले मेरे एक मित्र ने भारतमाता की तस्वीर फेसबुक पर लगाई ।कुछ देर बाद एक मदांध मुसलमान ने बडी अश्लील भाषा में कमेंट किया।हमारा मित्र उग्र राष्ट्रवादी है उसने मुझे लिंक भेजकर ज़बाव देने को कहा।मैं जब उस बदतमीज , देशद्रोही की वाल पर पहुंचा तो वहां तीन अर्धनग्न स्त्रियों पर सीता , पार्वती और दुर्गा लिखा था।उसकी बदतमीजी का विरोध करने वालों का स्वर ऐसा था जैसे प्रार्थना कर रहे हों।मैने शालीनता को परे रख उसकी मां बहनों को याद करते हुये बताया कि जिन पवित्र नामों के साथ तू ये बदतमीजी कर रहा है वह तेरे बाप-दादाओं की भी पूज्य हैं , मां है।तेरे धर्म ने तुझे ऐसे ही मां का सम्मान करना सिखाया है।अन्य कई मित्