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पीली दाल

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   होगा कभी दाल रोटी आम आदमी का भोजन पर जिस तरह से इस बार दाल ने भाव खाया है   बेचारे  चिकन की तो मानों इज्ज़त ही कुछ नहीं रही .दिल्ली की कई सरका रें प्याज के आंसुओं में बह गयीं पर दाल ने तो मानों प्याज के छिलके ही उतार कर रख दिए .साबिर मियां  मिल गये कल बाज़ार में हमे देखते ही चुटकी लेने लगे –“--और कहो पंडत जी –कैसी कट रही है , आप तो दाल भात उड़ाते हो रोज तभी दिन पर दिन फूल कर  कुप्पा हुए जा रहे हो .” हम कभी किसी का उधार नहीं  रखते सो   – तुर्की बतुर्की जबाव दिया – “ मियां हम तो दाल का पानी पीकर भी फलने - फूलने की कुव्वत रखते हैं  तुम रोज मुर्गे की टांग निचोड़ कर भी सुक्खू मियां के नवासे  क्यों नजर आते हो जनाब  ? ”    साबिर तो मानो आज अगला पिछला हिसाब पूरा करने का   मूड बनाकर आये थे – बोले –“  पंडत  जी हम तो आजकल रोज मटन और चिकन उड़ा रहे हैं . १५० रूपये किलो मुर्गा खाके सेहत बनाना अक्लमंदी है या २०० रूपये किलो की दाल खाकर सा री रात बदबू फैलाना , सच पूछो तो   हम तो इस नई सरकार के शुक्रगुज़ार हैं . पिछले २ महीनों से