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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

--शर्म आती है कि उस शहर में हैं हम---------------------------------।

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मित्रों एक तरफ संसद में बलात्कार विरोधी बिल पास हो रहा है तो दूसरी ओर देश में ऐसी शर्मनाक घटनाओं की बाढ आयी हुई है।अभी मुश्किल से २ महीने गुजरे हैं 'दामिनी कांड'को कि अनगिनत घटनाओं के बीच बिल्कुल वैसी ही घटना चंडीगढ में हो गयी।राजधानी समेत देश के अधिकांश महानगरों में ,सरकारी कार्यालयों में जिस तरह से छेडछाड ,बलात्कार और शोषण की ये घटना हो रही हैं उससे तो लगता नही कि नये पुराने किसी भी कानून का खौफ इस पाशविक सोच के राक्षसों में है।कई बार तो ये लगता है कि कहीं राजधानी में हुये 'दामिनी कांड' के प्रतिकार में जो गुस्सा लोगों में दिखा कहीं वह भी प्रायोजित तो नहीं था वरना निंदनीय घटनाओं की इन बौछारों के बीच नारी संगठनों ,मानवाधिकार और महिला अधिकारों की दुहाई देने वाले मीडिया संगठनों की आवाज नक्कार खाने की तूती से ज़्यादा नहीं साबित हो रही।कोई जन सैलाब नहीं उमड रहा।लोकसभा में हमारे सांसदों की संख्या और बहस का स्तर भी बताता है कि कितने संज़ीदा हैं हम इस मामले में।अभी पिछले दिनों आकाशवाणी में हुये ऐसे ही घटनाक्रम पर जिस तरह से लीपापोती की गयी और सोशल मीडिया ने कोल्ड रिस्पांस द

।ईश्वर करे मेरा आकलन गलत निकले।

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मित्रों मुझे कई बार शक होता है कि इस देश का मुसलमान स्वयं को इनसान मानता भी है या नही।कल मेरे एक मित्र जो बडे पायेदार शायर और बेहतरीन इनसान हैम और जिनकी मैं बडी इज़्ज़त करता हूं एकाएक कह उठे भाई मुसलमान होने की वज़ह से ही लोग मुझे कवि सम्मेलनों में नहीं बुलाते जबकि मैं उर्दू से बेहतर कविता हिंदी में करता हूं।उनकी यह बात सुनकर मुझे झटका लगा ।मैं सोचता रहा बशीर बद्र,मुनव्वर राना,राहत इंदौरी ,वसीम बरेलवी समेत उर्दू के जो भी बडे शायर हैं सभी को तो हम पूरे प्यार से ,इज्जत के साथ सुनते हैं और सराहते है ,शोहरत और धन से नवाज़ते हैं ।इनकी शायरी के लिये वाह-वाह करते कभी ये खयाल नही आता कि ये हिंदू की शायरी है या मुसलमान की ।कभी किसी मुनव्वर राना और गोपालदास नीरज की कविता सुनते हुये तारीफ का पैमाना उनका मज़हब नही होता या फिर ये बात आयी कहां से।मैं खंडवा के अपने मित्र आलोक सेठी को जानता हूं जो मुनव्वर राना के बडे फैन हैं और ना जाने कितनी बार उन्हें बुला चुके हैं ।ऐसे ही गाज़ियाबाद के हमारे एक मित्र संयोजक थे जिनके लिये कवि-सम्मेलन-मुशायरे का मतलब ही बशीर बदर का काव्यपाठ होता है।ऐसे में जब कोई श

अधिकांश मूर्ख और घमंडी अधिकारी स्वयं को आज भी किसी खुदा से कम नही समझते हैं।

मित्रों पिछले कुछ दिनों से महिलाये और उसमें भी विशेष रुप से दिल्ली की महिलाओं ने शोषण उत्पीडन का जो दौरदेखा है उसके समापन की कोई संभावना दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड रही।१६ दिसंबर की शर्मनाक घटना के बाद जिस तरह से नारी उत्पीडन की घटनायें सामने आयीं उसमें नया प्रकरण आकाशवाणी दिल्ली का है।आकाशवाणी एफ एम चैनल के एक प्रस्तोता के साथ पिछले दिनों उसके एक सहकर्मी ने दुरएव्यवहार किया और जब उस महिला ने अपने 'बास' से एस घटना की शिकायत की तो उन्होने कहा--"इसमें बुरा मानने जैसी क्या बात है? आगे बढने के लिये तो ये सब करना ही पडता है।मेरी पत्नी तो कहती है कि 'हग' करने तक तो कुछ भी आपत्तिजनक नहीं होता।" पीडिता ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से भी कर दी है और एक उच्चस्तरीय कमेटी इस घटना की जांच के लिये गठित की जा चुकी है पर ये श्रीमान जी इस सबसे बेपरवाह कल भी आफिस टाइम में 'इंडिया इंटरनेशनल' में एक कार्यक्रम में विराजमान थे।उनके आश्वस्त और बेपरवाह होने का कारण भी है क्योंकि उनके फेवरिट १२ साहित्यकारों का वरद हस्त जो उन पर है। भ्रष्टाचार,कदाचार और अनाचार का गढ ब चुके आ