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ramprasad bismil

V पं० रामप्रसाद बिस्मिल की दो गज़लें काकोरी कांड में गिरफ्तारी और फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पं०रामप्रसाद बिस्मिल एक बार जेल से फरार होकर अंग्रेज सरकार को हतप्रभ कर देना चाहते थे।चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह ने उन्हे छुडाने की कई बार योजना बनाई पर वे सफल ना हो सके अतः उन्हें प्रेरित करने के लिए एक गज़ल साथियों तक भिजवाई ।अंग्रेज सरकार ने भी इसे साधारण इश्के-मिजाज़ी की गज़ल समझकर जाने दिया। १ मिट गया जब मिटने फिर सलाम आया तो क्या? दिल की बरवादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या? काश अपनी ज़िंदगी मे हम वो मंज़र देखते, यूं सरे-तुरबत कोई महशर खिराम आया तो क्या? मिट गयीं जब सब उम्मीदें,मिठ गये जब सब ख्याल उस घडी गर नामावर लेकर पैगाम आया तो क्या ? ऐ, दिल-ए-नाकाम मिट जा तू भी कू-ए-यार मे फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या? आखिरे शब दीद के काबिल थी बिस्मिल की तडप सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए -बाम लाया तो क्या ? इसी मूड की उनकी एक गज़ल और मिलती हैः--- २ यह चारागर उल्फत गाफिल नज़र आता है, बीमार का बच जाना मुश्कि