मे अपनी बहादुरी के लिये उन लोगों का प्रमाण पत्र नही चाहिये जो किरण बेदी और कनिमोझी को एक ही तराजू में तौलते हैं।"

शाहजहांपुर से कल वापस आया हूं।कुछ निज़ी कारणों तो कुछ नैतिक-सामाजिक कारणों से मेरा शाहजहांपुर जाना आवश्यक हो गया था।यों भी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाना तो बनता है।पर सबसे ज़रूरी कारण था 'काकोरी शहीद ठाकुर रोशन सिंह' के वंशजों पर हुये अत्याचार के विरूद्ध मीडिया और बुद्धिजीवियों द्वारा चलायी गयी मुहिम का असर देखना और अपने मित्रों की कोशिशों की सफलता को हम इस तथ्य से आंक सकते हैं कि इंदु सिंह जोकिठाकुर रोशन सिंह की प्रपौत्री है ,उसे प्रशासन ने सुरक्षा मुहैया करा दी है।दो कांस्टेबल अब २४ घंटे इंदु की सुरक्षा में मुस्तैद है।इदु के एकाउंट में कुछ धन भी जमा हुआ है जिससे उसकी तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है।
विधायक राममूर्ति वर्मा ने भी मीडिया के मित्रों से कहा है कि ज़ुल्म करने वालों से उनका कोई वास्ता नहीं।एस पी डा०अशोक राघव ने इस ज़ुल्म के विरूद्द आवाज उठाने वाले पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को आश्वस्त किया है कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करायी जायेगी।
इस सारे घटना क्रम को आप मीडिया और विशेषकर सोशल मीडिया की जीत मान सकते हैं।बहुत सारे ऐसे लोगों ने आग्रह पूर्वक स्वयं को गुमनाम रखते हुये अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जो इसे अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी मानकर चला रहे थे।कनाडा और अमेरिका तक से एस पी को फोन कर एक्शन के लिये कहने वाले ज़िम्मेदार भारतीयों की पर्याप्त संख्या इस मुहिम से जुडी थी।मै अपने उन तमाम मित्रों को जिनसे मैं परिचित हूं और जिनसे परिचित नही भी हूं ह्रदय की गहराइयों से आभार प्रकट करता हूं।मैं एस पी अशोक राघव के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं जिन्होने शासन के तमाम राजनैतिक दबावों को दरकिनार कर पीडिता को सुरक्षा मुहैया करायी।
मित्रों इस प्रकरण में तमाम मित्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उल्लेखनीय भागीदारी की जिनमे जगेंद्र सिंह,सिराज़ फैसल खान ,नागेश पांडे'संजय",अमित त्यागी,पं० सुरेश नीरव,प्रियकर वाज़पेयी जैसे अनेक विचारवान नागरिकों ने अपने-अपने ढंग से योगदान दिया।परंतु कुछ उत्साही मित्रों ने असंयत भाषा और विचारों से इस मुहिम की राह में जाने-अनजाने कांटे भी बिछाये।पुलिस प्रशासन को गालियां लिखकर हम अपनी बहादुरी नही कमजोरी को ही रेखांकित करते हैं।आक्रोश को व्यक्त करने के और भी बहुत सारे तरीके होते हैं पर अशिष्ट-असंसदीय भाषा का समर्थन किसी भी तर्क से नही किया जा सकता।
मित्रों अभी हमने केवल एक चरण में विजय पायी अगले चरण में संघर्ष और मुश्किल हो सकता है अतः आपसे प्रार्थना है कि ऐसा कोई बयान ना दें जिससे लगे हम अपरिपक्व,प्रचार प्रिय और ज़ल्द बाज लोग हैं ।हमे अपनी बहादुरी के लिये उन लोगों का प्रमाण पत्र नही चाहिये जो किरण बेदी और कनिमोझी को एक ही तराजू में तौलते हैं।
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