वैसे तुनकमिज़ाज़ बहुत था पर 'यारों का यार' था












गज़ल

आंख जिसे खोजा करती है वह तो कभी ना आयेगा
मगर मेरे हर एक लफ्ज़ में वह    रोयेगा-    गायेगा 

घडी की सुइयों जैसी सांसें ना जाने कब थम जायें?
साज रखे रह जायेंगे सब, गीत ना कोई गायेगा

उनको शायद बहुत बरस तक खबर भी ना होने पाये
बंजारा अब लौट के उनकी गली कभी ना आयेगा

हमने कसम उठा ली हम अब याद तुझे ना आयेंगे
तू भी कह दे तेरा सपना हमको नहीं सतायेगा

तुम खूंटे की गाय नही हो ना ही मदर टेरेसा हो
हम पर कितना ज़ुल्म हुआ है तुम्हे समझ कब आयेगा ?

तुम पर गुस्सा करता हूं ,तो खुद ही घायल होता हूं
गुस्सा है बचपन का साथी , साथ ही मेरे जायेगा

वैसे तुनकमिज़ाज़ बहुत था पर 'यारों का यार' था
ज़िक्र चला तो कुछ ऐसा ही 'पथिक' बताया जायेगा।

                       ------------------------अरविंद पथिक

टिप्पणियाँ

Mridula Ujjwal ने कहा…
तुम पर गुस्सा करता हूं ,तो खुद ही घायल होता हूं

bahut sahi...pyaar mein aisa hi hota hai....

naaz

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