भारतमाता की पीडा ही निज शब्दों में कहता हूं


जिसमें सारा देश धधकता उसमें मैं भी जलता हूं
भारतमाता की पीडा ही निज शब्दों में कहता हूं

पच्चीस करोड मुसलमान गद्दार नहीं हो सकता है
हर एक पगडी वाला तो सरदार नहीं हो सकता है
लेकिन सौ करोड हिंदू की हत्या की जो बात करे
अपनी ज़हरीली ज़ुबान से रोज नये आघात करे
उसका भारत की धरती पर कोई काम नही होगा
किसी ओवेसी या इमाम का नामो निशान नही होगा
जब तक ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा हम सब नहीं उठायेंगे
वीर जवानों की लाशें ही हम तोहफे में पायेंगे

गोरी और गज़नवी को जो अपने पुरखे कहते हों
जिनकी दुआओं में भारत के दुश्मन हरदम रहते हों
वो भारत के गद्दारों की नाज़ायज़ औलाद है
ऐसे कायर सत्ता वाली गलियों में आबाद हैंं
कुछ घंटों में पूरा इंडिया गेट ज़ाम कर देती थीं
ज़ंतर-मंतर को संसद को हल्ले से भर देती थीं
हरदम शोर मचाने  वाली वे आवाज़ें मौन हैं
आखिर इम चेहरों के पीछे वाले चेहरे कौन हैं?
जब तक उन चेहरों के ऊपर कालिख नहीं लगायेंगे
वीर जवानों की लाशें ही हम तोहफे में पायेंगे

जिसमें सारा देश धधकता उसमें मैं भी जलता हूं
भारतमाता की पीडा ही निज शब्दों में कहता हूं

जब तक अफज़ल जेल में बैठा मुर्ग-मुसल्लम खाता है
जब तक दुश्मन आंख दिखाता ,हंसता है ,गुर्राता है
जब तक बिस्मिल -शेखर की मातायें भूखी सोती हैं
जब तक अमर शहीदों की विधवायें तनहा रोती हैं
जब तक क्रिकेट मैच खेलने लगते हमें ज़रूरी हैं
जब तक मुल्ला और मुलायम दिल्ली की मज़बूरी हैं
अमन -चैन की बसों में भरकर तब तक करगिल आयेंगे
वीर ज़वानों की लाशें ही हम तोहफे में पायेंगे

जिसमें सारा देश धधकता उसमें मैं भी जलता हूं
भारतमाता की पीडा ही निज शब्दों में कहता हूं

गोदामों के भीतर जब तक अग्नि-पृथ्वी सडती हैं
सेनायें संकोच छोडकर नहीं पाक पर चढती हैं
घूंट खुन के फिर तो हमको बार-बार पीने होंगे
दुश्मन की संगीने तलवारें होंगी अपने बस सीने होगे
अगर इंदिरा और सोनिया में फर्क नही कर पाओगे
शीश कटाकर पायी धरती फिर से यहां गंवाओगे
दो के बदले दो हज़ार की गरदन हम ना काटेंगे
जब तक पाकिस्तान सैकडों टुकडों में ना बांटेंगे
सिरविहीन शव सरहद के उस पार से फिर-फिर आयेंगे
वीर जवाने की लाशे ही हम तोहफे में पायेंगे।

टिप्पणियाँ



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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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जिसमें सारा देश धधकता उसमें मैं भी जलता हूं
भारतमाता की पीडा ही निज शब्दों में कहता हूं

पच्चीस करोड मुसलमान गद्दार नहीं हो सकता है
हर एक पगडी वाला तो सरदार नहीं हो सकता है
लेकिन सौ करोड हिंदू की हत्या की जो बात करे
अपनी ज़हरीली ज़ुबान से रोज नये आघात करे
उसका भारत की धरती पर कोई काम नही होगा
किसी ओवेसी या इमाम का नामो निशान नही होगा
जब तक ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा हम सब नहीं उठायेंगे
वीर जवानों की लाशें ही हम तोहफे में पायेंगे

वाह ! शब्द-शब्द ओजपूर्ण !

आदरणीय अरविंद कुमार जी
जिस भावना ,जिस जज़्बे की आज देश को ज़रूरत है ,
उसकी सशक्त अभिव्यक्ति हुई है आपकी इस ओजस्वी-तेजस्वी रचना में ।

समय मिलने पर आपकी अन्य राष्ट्रवादी रचनाएं पढ़ने-सुनने की इच्छा रहेगी ...


हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
राजेन्द्र स्वर्णकार
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