।ईश्वर करे मेरा आकलन गलत निकले।

मित्रों मुझे कई बार शक होता है कि इस देश का मुसलमान स्वयं को इनसान मानता भी है या नही।कल मेरे एक मित्र जो बडे पायेदार शायर और बेहतरीन इनसान हैम और जिनकी मैं बडी इज़्ज़त करता हूं एकाएक कह उठे भाई मुसलमान होने की वज़ह से ही लोग मुझे कवि सम्मेलनों में नहीं बुलाते जबकि मैं उर्दू से बेहतर कविता हिंदी में करता हूं।उनकी यह बात सुनकर मुझे झटका लगा ।मैं सोचता रहा बशीर बद्र,मुनव्वर राना,राहत इंदौरी ,वसीम बरेलवी समेत उर्दू के जो भी बडे शायर हैं सभी को तो हम पूरे प्यार से ,इज्जत के साथ सुनते हैं और सराहते है ,शोहरत और धन से नवाज़ते हैं ।इनकी शायरी के लिये वाह-वाह करते कभी ये खयाल नही आता कि ये हिंदू की शायरी है या मुसलमान की ।कभी किसी मुनव्वर राना और गोपालदास नीरज की कविता सुनते हुये तारीफ का पैमाना उनका मज़हब नही होता या फिर ये बात आयी कहां से।मैं खंडवा के अपने मित्र आलोक सेठी को जानता हूं जो मुनव्वर राना के बडे फैन हैं और ना जाने कितनी बार उन्हें बुला चुके हैं ।ऐसे ही गाज़ियाबाद के हमारे एक मित्र संयोजक थे जिनके लिये कवि-सम्मेलन-मुशायरे का मतलब ही बशीर बदर का काव्यपाठ होता है।ऐसे में जब कोई शायर यह कहता है कि हिंदी मंचों पर उसे इसलिये नही बुलाया जाता क्योंकिवह मुसलमान है तो तकलीफ से ज़्यादा तरस आता है।हमारे एक मित्र अक्सर कहते हैं कि मुसलमान तो इस देश में पैदायशी वी आई पी है । वह स्वयं को इनसान समझता ही कहां है? वह तो हर पोलिटिकल पार्टी के लिये सत्ता की सीढी है।मैने अपने मित्र की बातों का कभी समर्थन कभी नही किया पर शहीद ज़िया-उल -हक की पत्नी परवीन को दिये मुआवज़े और सीमा पर शहीद (सिर कटे सैनिकों) के साथ हुये व्यवहार के फर्क का विरोध भी जब कोई मुसलमान नही करता और इस फर्क को रेखांकित करने वाले हर व्यक्ति को 'सांप्रदायिक' या आर० एस०एस० का ऐजेंट कह दिया जाता है तो मुझे अपने मित्र की बात पर यकीन होने लगता है कि इस देश में मुसलमान पैदायशी वी वी आई पी है।मेरे बहुत से मुसलमान मित्र देश के विभाजन को  मेरी तरह ही त्रसदी मानते हैं क्योंकि देश ना बंटा होता तो दिल्ली-मुंबई की तरह ही कराची और लाहौर भी उनके होते और गंगा जमुना की तरह रावी और सतलुज भी अखंड हिंदुस्तान में प्रवाहित हो रही होती पर ज़िन्ना के पाक-स्थान में मुसलमान कितने खुश हैं यह मुसलमान भी बेहतर जानते हैं ---।फिर भी मेरे भाइयों ऐसी सोच ही अगर तुम्हारी है तो इस देश नही विश्व और मानवता कुंडली में एक हिटलर और होना तय है---पहले से ज़्यादा खौफनाक और विनाश कारी ---
।ईश्वर करे मेरा आकलन गलत निकले।

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दुर्भाग्य वश सही है आपका आँकलन ! और हो सकता है वो आपके शायर मित्र इस श्रेणी में न आते हों, इसलिए 'नाच न जाने, आँगन टेढ़ा ...... "

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