धनुर्वाण या वेणु लो श्याम रूप के संग मुझ पर चढने से रहा राम दूसरा रंग गीत कविता कुछ भी लिख लूं,मन तो बिस्मिल चर्चा मे ही रमता है।तो आज से बिस्मिल चरित की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करने का शुभारंभ करता हूं पित्र भूमि वह वीर प्रसविनी धरती है,कण कण मे शौर्य समाया है चंबल के खडे उठानों ने , वीरों को सदा लुभाया है विद्रोह वहां के कण कण मे , अन्याय नही वे सहते हैं लडते हैं अत्याचारो से , खुद को वे बागी कहते हैं ग्वालियर राज्य की वह धरती अन्याय नही सह पाती है अपने बीहडों- कछारों मे, बेटों को सहज छिपाती है है इसी भूमि पर तंवरघार, जो बिस्मिल की है,पित्रभूमि मिट्टी का कण कण पावन है,ये दिव्य भूमि ये पुण्यभूमि इसके निवासियों के किस्से अलबेले हैं ,मस्ताने हैं द्रढनिश्चय के ,निश्छल मन के , जग मे मशहुर फसानें हैं। है सत्ता की परवाह नही, शासन का रौब न सहते हैं ये हैं मनमौजी लोग सदा , अपनी ही रौ मे बहते है निज गाथा मे बिस्मिल जी ने किस्से बतलाये हैं अनेक इनकी मस्ती बतलाने को ,कहता हूं मैं भी आज एक तंवरघार के लोगों ने सोचा-----कुछ अद्भ...