धनुर्वाण या वेणु लो श्याम रूप के संग
मुझ पर चढने से रहा राम दूसरा रंग
गीत कविता कुछ भी लिख लूं,मन तो बिस्मिल चर्चा मे ही रमता है।तो आज से बिस्मिल चरित की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करने का शुभारंभ करता हूं
पित्र भूमि
वह वीर प्रसविनी धरती है,कण कण मे शौर्य समाया है
चंबल के खडे उठानों ने , वीरों को सदा लुभाया है
विद्रोह वहां के कण कण मे , अन्याय नही वे सहते हैं
लडते हैं अत्याचारो से , खुद को वे बागी कहते हैं
ग्वालियर राज्य की वह धरती अन्याय नही सह पाती है
अपने बीहडों- कछारों मे, बेटों को सहज छिपाती है
है इसी भूमि पर तंवरघार, जो बिस्मिल की है,पित्रभूमि
मिट्टी का कण कण पावन है,ये दिव्य भूमि ये पुण्यभूमि
इसके निवासियों के किस्से अलबेले हैं ,मस्ताने हैं
द्रढनिश्चय के ,निश्छल मन के , जग मे मशहुर फसानें हैं।
है सत्ता की परवाह नही, शासन का रौब न सहते हैं
ये हैं मनमौजी लोग सदा , अपनी ही रौ मे बहते है
निज गाथा मे बिस्मिल जी ने किस्से बतलाये हैं अनेक
इनकी मस्ती बतलाने को ,कहता हूं मैं भी आज एक
तंवरघार के लोगों ने सोचा-----कुछ अद्भुत किया जाय
एकरस जीवन को किसी तरह,फिर से मधुरस किया जाय
बन गयी योजना तुरत फुरत ,थे ऊंट उठाये राजा के
थी खुली चुनौती सत्ता को ,सब होश उडाए राजा के
राजा ने आदेश दिया------- तोपों से गांव उडा दीजै,
शासन का दर्प बचाने को जो भी हो उचित सभी कीजै
शासन ने आंख दिखायी तो, बीहड मे सारे चले गये
भयभीत नहीं हैं रंच मात्र कहकर वे प्यारे चले गये
दरबार लगा फिर राजा का , निर्णय पर पुनः विचार हुआ
तंवरघार के वीरों के, साहस का जय जयकार हुआ
ऊंट उठाये किस कारण? आखिर हमको बतलाओ तो?
क्यों चौर्यकर्म को विवश हुए?इसका कुछ पता लगाओ तो?
बीहड मे दूत गये भेजे, वीरों ने कारण बतलाया
राजा ने माफ किया ऊनको ,विश्वास प्रजा का फिर पाया
उत्तर था--चोर न डाकू हम ,बस जीवन का रस लेते हैं
शासन- सत्ता इतराती है, तो खुली चुनौती देते हैं
ऐसी विद्रोही धरती पर नारायण लाल का जन्म हुआ
भाभी के दुर्व्यवहारों से जब भावुक हिय उनका भग्न हुआ
पत्नी- पुत्रों के साथ -साथ, तज निकले अपनी मात्रभुमि
संयुक्त प्रांत शाहजहांपुर, बन गयी थी उनकी कर्मभूमि
(बिस्मिल चरित से)
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