जब भी गले मिलते हैं खंजर भोंक देता है,
लाहौर वाली बस को करगिल रोक देता है,
हम भाई समझते हैं, तू दुश्मन समझता है
हमारी नेकनीयती को तू उलझन समझता है,
अगर लडने की हसरत है तो लड ले सामनेआकर
कुछ ना पा सकेगा पीठ पर यो जोर आजमाकर
तेरे पाले हुए कुत्ते ,ये अलकायदा-लश्कर
पागल हो चुके हैं अब झिझोडेंगे तुझे कसकर
पापोंका घडा तेरे यकायक फूट जायेगा
हमारे देखते ही देखते तू टूट जायेगा------
अरविंद पथिक
९९१०४१६४९६

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान

विभाजन और साम्प्रदायिकता के स्रोत: सर सैय्यद अहमद खान

मंगल पांडे का बलिदान दिवस