सत्य को कहने और सुनने का साहस किसी में नहीं
अशोक ने जब कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तो उसके उत्तराधिकारियों ने अहिंसा को एक नीति के रूप में स्वीकार कर लिया जिसकी परिणिति देश पर विदेशी आक्रमणों के रूप में हुई।अशोक की दसवी पीढी में दशरथ नाम का राजा हुआ जो हर समय भोग विलास में लिप्त रहता था।बैक्ट्रिया के शासक डेमेट्रियस के आक्रमण की खबर सुनकर भी जब दशरथ ने सुरक्षा के उपाय नहीं किये तो सेनापति पुष्यमित्र शुंग के नेत्रत्व में सेना ने विद्रोह कर दशरथ की हत्या कर दी और पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मण वंश की स्थापना की।इस समय अयोध्या बौद्ध धर्म के सबसे बडे केंद्र के रूप में विकसित हो चुका था।बौद्ध मठ षडयंत्र और अनाचार के केंद्र थे।डेमेट्रियस को आमंत्रित करने वालों में बौद्ध भिक्षुओं की संलिप्तता की पुष्टि होते ही पुष्यमित्र शुंग का क्रोध बौद्ध मठों पर टूटा।अहिंसा की आड में कायरता और अनाचार के नये प्रतिमान अगर बौद्ध मठों ने गढे थे तो सनात धर्म की स्थापना और देश बचाने की धुन में पुष्यमित्र शुंग ने ऐसा हिंसा का नर्तन किया कि एक बार तो बौद्ध धर्म का नामलेवा भी उत्तर भारत में न बचा।
उन दिनों बौद्ध धर्म को राजसत्ता का सहारा अशोक के रूप मेम मिला तो वर्तमान में अंबेडकर के रूप में भारतीय समाज मे,कायरता का तत्व भरने के लिये यदि बुद्ध ज़िम्मेदार हैं तो आरक्षन के द्वारा दीनता को बढावा देने वाले अंबेडकर हैं ।अफसोस इस बात का है कि इस सत्य को कहने और सुनने का साहस किसी में नहीं।
उन दिनों बौद्ध धर्म को राजसत्ता का सहारा अशोक के रूप मेम मिला तो वर्तमान में अंबेडकर के रूप में भारतीय समाज मे,कायरता का तत्व भरने के लिये यदि बुद्ध ज़िम्मेदार हैं तो आरक्षन के द्वारा दीनता को बढावा देने वाले अंबेडकर हैं ।अफसोस इस बात का है कि इस सत्य को कहने और सुनने का साहस किसी में नहीं।
टिप्पणियाँ
बल्कि इसे तभी मानना जब ये उपदेश तुम्हारे बुद्धि की कसौटी पे खरा उतर जाये और अगर निकट भविष्य में तुम्हे ऐसा लगे की इनमे परिवर्तन की आवश्यकता है तो तत्काल इसे बदलने की कोशिश करना,बुद्ध ने कभी जाती,लिंग या धर्म की नहीं सोची,उन्होंने हमेशा सत्य की परवाह की…तो फिर क्या कारण थे की भारत से ज्यादा बोद्ध धर्म को मानने वाले भारत से बाहर चीन जापान कोरिया आदि देशो में है, आखिर बोद्ध धर्म के भारत से मिटने का क्या कारण थे जबकि एक समय इसे जबरजस्त समर्थन प्राप्त था,आइये ज़रा इसपे चर्चा करते है,बोद्ध धर्म की शुरुवात इसा के 563 वर्ष पहले मानी जाती है इस धर्म का उदय वैदिक धर्म के घोर बड़ते कर्मकांडो,यज्ञ हेतु पशुबलि,लम्बे विधि विधानों की वजह से हुई जिससे जनता त्रस्त आ चुकी थी तब जाकर लोग इस धर्म के प्रति आकर्षित हुए,कुछ सालो में इस धर्म ने भारत में ऐसी जगह बनायीं की अशोक जैसा प्रतापी सम्राट भी अपने चरम शिखर पे पहुचने के बावजूद भी इस धर्म को अपनाता है,बुद्ध लगभग पुरे भारत के ह्रदय में समां चुके थे परन्तु आज भारत वो गायब ही दीखते है सामान्य तौर पे इतिहासकार यही मानते है की मुगलों के आक्रमण के कारण इस धर्म का पतन हुआ पर मुगलों ने तो पुरे भारत पे आकरमण किया था फिर सिर्फ बोद्ध धर्म को छति क्यों पहुची,इससे वैदिक धर्म क्यों नहीं प्रभावित हुआ? ये सवाल बहुत ही अहम है कि पुष्यमित्र शुंग, जो बृहद्रथ मौर्य की सेना का सेनापति था, ने सेना का निरीक्षण करते वक्त बृहद्रथ मौर्य को मार दिया था और सत्ता पर अधिकार कर बैठा था मौर्य साम्राज्य के अन्तिम शासक वृहद्रथ की हत्या करके १८४ई.पू. में पुष्यमित्र ने मौर्य साम्राज्य के राज्य पर अधिकार कर लिया । जिस नये राजवंश की स्थापना की उसे पूरे देश में शुंग राजवंश के नाम से जाना जाता है। शुंग ब्राह्मण थे। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के फ़लस्वरुप अशोक द्वारा यज्ञों पर रोक लगा दिये जाने के बाद उन्होंने पुरोहित का कर्म त्यागकर सैनिक वृति को अपना लिया था। पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य शासक वृहद्रथ का प्रधान सेनापति था। पुष्यमित्र शुंग के पश्चात इस वंश में नौ शासक और हुए जिनके नाम थे -अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ,वसुमित्र ,भद्रक,तीन अज्ञात शासक ,भागवत और देवभूति। एक दिन सेना का निरिक्षण करते समय वृह्द्र्थ की धोखे से हत्या कर दी। यह भी कहा जाता है की वैदिक अनुयाइयों ने ही मुगलों से समझौता किया और उन्हें भारत पे आक्रमण करने और विजय हासिल करने में सहायता की ताकि बोद्ध धर्म का पतन हो सके