बेंचता हूं पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
बेंचता हूं
पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
ज़िंदगी अपनी
हुई है बटर -बर्गर चीज़
मै नहीं
मक्खन लगाता बेंचता हूं
कौन है जिसको
नहीं मैं खैंचता हूं?
दोस्त-दुश्मन,गैर-अपने,उठते
अक्सर खीझ
बेंचता हूं
पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
सुना था कुछ
साल पहले ,बेचते थे 'अश्क'
फिर नहीं
क्यों करूं मैं पेशे पे अपने रश्क
'स्टार'
खुद
को बेचने जाते हैं 'ओवरसीज'
बेंचता हूं
पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
मंच पर घूमा-
फिरा ,देखा-सुना,जाना
चाहा खुद को
बेंच दूं पर ,मन नहीं माना
चुटकुले
उपहास करते ,रहता मुट्ठी मीज
बेंचता हूं
पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
शब्द से ही
झूठ का चलता है कारबार
शब्द बनकर रह
गये हैं झूठ का हथियार
सोंचिये
क्यों अग्निधर्मा स्वर रहे हैं छीज
बेंचता हूं
पाव-भाजी पेस्ट्री पैटीज़
--------------- अरविंद पथिक
arvind61972@gmail.com
9910416496
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर।
डॉ. ओम वर्मा