नेताजी सुभाषचंद्र बोस की नज़रबंदी से फरारी की रोमांचक अंतर्कथा




मित्रों कल २३ जनवरी है नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म दिवस।तमाम गांधीवादी आंदोलनों और क्रांतिकारी बलिदानों के पश्चात नौसेनिक विद्रोह ही वह अंतिम प्रहार था जिसने अंग्रेजों को बोरिया-बिस्तर समेटने के लिये बाध्य किया।नेताजी कलकत्ता के अपने मकान से फरार होकर विदेश पहुंच जाना कोई परीकथा नहीं अपितु उनकी संगठन क्षमता और दृढ निश्चय का प्रतीक था जिसने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया।उनके जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर इतिहास की गर्द को झाडने का मेरा यह तुच्छ प्रयास एक विनम्र श्रद्धांजली है-----नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बहुआयामी व्यक्तित्व का सर्वाधिक रोमांवकारी पक्ष है उनका रहस्यमय ढंग से एक देश से दूसरे देश में पहुंच जाना।चाहें वह कलकत्ता में नज़रबंदी से फरार होकर ज़र्मनी पहुंचना हो या फिर द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के बीच ज़र्मनी से ज़ापान पहुंचना।आइये आज उनके कलकत्ता से ज़र्नी पहुंचने के रहस्य से पर्दा उठाते हैं------
नेताज़ी 'हालवेल मान्यूमेंट' तोडने के आरोप में अपने ही घर में नज़रबंद थे,उनके  मनो-मस्तिष्क पर डा०चंपक रमन पिल्लई और विनायक दामोदर सावरकर विचार छाये हुये चंपक रमन पिल्लई जहां उन्हें विदेशी सरकारों के सहयोग से सशस्त्र संगटन खडा करने की प्रेरणा देते थे वही सावरकर के शब्द   "--भारत में रहकर तुम अपनी ऊर्जा और समय नष्ट कर रहे हो  मौका लगते ही खिसक लो।"उन्हें शीघ्रतिशीघ्र विदेश जाने के लिये प्रेरित कर रहे थे।११बार जेल यात्रा करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि गांधीजी के तरीके अंग्रेजों को कोई खास परेशानी में नहीं डाल पा रहे ।अतःवे विदेश निकल जाने की अपनियोजना पर कार्य करने लगे।अपनी सुविचारित योजना के कारण ही उन्होनें लोगों से मिलना जुलना एकदम बंद कर दिया । वे महसूस कर रहे थे कि शीघ्र ही द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो जायेगा।विश्वयुद्ध की परिस्थितियों का भारत के हित में उपयोग करने हेतु भी नेताजी का विदेश जाना
आवश्यक था।अतः उन्होने फारवर्ड ब्लाक के 'उत्तर-पश्चिम'सीमा प्रांत के नेताअकबर शाह को कलकत्ता बुलाया।ऊनसे विचार-विमर्श कर उन्हें अपनी फरारी की तैयारियों हेतु आवश्यक निर्देश दिये।अफगानिस्तान पहुंचाने के लिये गाइड के बारे में सोचते हुये अकबरशाह जिस नाम पर जाकर निर्णय कर सके वह था 'कीरत किसान पार्टी'के युवा कार्यकर्ता 'भगतराम'
अकबरशाह शीघ्र ही भगतराम से उनके गांव गल्ला ढेर में जाकर मिले।इस महान काम के लिये स्वयं को चुने जाने का समाचार                     पाकर भगतराम फूले ना समाये।भगतराम की स्वीकृति मिलते ही अकबरशाह ने नेताजी को योजना बन जाने की सूचना दी।नेताजी ने सारी योजना पर गंभीरता से विचार कर १६-१७ जनवरी १९४१ की रात फरार होने का निश्चय किया।
योजनानुसार अपने भतीजे शिशिर बोस के साथ नेताजी  धनबाद (बिहार) पहुंचे।१७जनवरी १९४१ का दिन धनवाद में गुजारकरउन्होंने मौलवी का वेश बनाया।और रात में पैदल ही गोमों स्टेशन की ओर चल पडे।उनके पीछे कार में उनके भतीजे शिशिर बोस भी चल रहे थे।कुछ दूर चलकर नेताजी कार में बैठ गये।कार मेंउनका दूसरा  भतीजा और उसकी पत्नी भी थे।उस भतीजे ने ही गोमो स्टेशन से प्रथम श्रेणी का एक टिकट खरीदा और महान सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस एक अंतहीन यात्रा पर निकल पडे।एक ऐसी यात्रा जिसने भारतीय इतिहास की दशा और दिशा बदल डाली।१९ जनवरी १९४१ की शाम नेताजी पेशावर पहुंचे।ताज होटल तक नेताजी के आगे पीछे चलते हुये अकबरशाह और भगतराम साथ गये।अकबरशाह ने अपने मित्र अब्दुल मज़ीद खां द्वारा नेताजी कोहोटल मे   संदेश भिजवाया कि उन्हें सुबह होते ही उन्हें दूसरे मुकाम पर पहुंच जाना है।इधर भगतराम नेताजी के लिये पठानी सूट एवं अन्य कपडों का प्रबंध करने में लगे थे।यहां नेताजी ने अपना नया नामकरण किया-------'ज़ियाउद्दीन खां'

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