बिस्मिल की मां'---



चित्र:बिस्मिल की माँ1225.gif




मित्रों  आज मातृदिवस है देश के तमाम महान देशभक्तों की तरह ही पं० रामप्रसाद बिस्मिल की मां ने भी बिस्मिल जी के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी ।बिस्मिल जी ने अपनी आत्मकथा में बडी श्रद्धा और भावुकता से मां को याद किया है।बिस्मिल जी के जीवन पर आधारित महाकाव्य 'बिस्मिल चरित 'में मैने प्रयास किया है कि उस महान मां के चरित्र पर कुछ रोशनी डाल सकूं अपने इस प्रयास में मैं कितना सफल हो सका हूं आप की प्रतिक्रियाओं से ही जान सकूंगा।प्रस्तुत है बिस्मिल चरित में अंकित 'बिस्मिल की मां'---


मकतब में,स्कूल में शिक्षा शिखर चढे थे
आक्सफोर्ड या केंब्रिज में वे नहीं पढे थे
अपनी धरती,अपनी संस्कृति के गौरव थे
भारत की ग्रामीण चेतना के सौरभ थे
बडे-बडे संकट आये पर ,वे ना भूले
वचन निभाने की धुन में रहते थे फूले
ज्यों जीजाबाई ने शिवाजी का निर्माण किया था
मूलमती माता ने उनको सहज गढा था
पिता सख्त अनुशासन प्रिय थे,सदा क्रुद्ध दिखते थे
उनके सामने रामप्रसाद जी कुछ ना कुछ लिखते थे
लेकिन मां का आंचल उनको शीतल कर देता था
नवसाहस ,नूतन उमंग,रग रग में भर देता था
"राम कृष्ण से बनो,मत डरो नियति के वारों से
कालचक्र थम जाता है , वीरों की हुंकारों से
देश हमारा शोषित है ,जकडा है ,जटिल गुलामीं में
तुमको भरनी है नयी ज्योति ,भारत की भ्रमित जवानी में
मैं तो बस तेरी माता हूं ,हम सब की मां भारत मां है
देख रही है तुम्हें आज, नव-आशा से भारत मां है
बेटा जैसे भी संभव हो तुम भारत मां का   दुख हरना
दोनों का क्लेश शमन करना पथ पर चलते तुम मत डरना"ः
बचपन में ऐसी शिक्षा दे बालक को बिस्मिल बना दिया
अंगरेजी-शासन को जिसने ,सूखे पत्ते सा हिला दिया
वह कैसी सिंहनी महिला थी?यों समझ नहीं हम पायेंगे
उसके धीरज की शौर्य कथा हम सुनेंगे तो गुन गायेंगे
फांसी से चंद मिनट पहले बिस्मिल से मिलने मां आयी
सम्मुख अपने जब मां देखी बिस्मिल की आंख छलक आयी
मां कडकी --"क्या तू कायर है?या मरने से डर लगता है?
क्रांति कर्म में रत है तू,    कहकरके सबको ठगता है ?
जब यों ही अश्रु बहाने थे ,तो संसारी बनकर रहता
देख तेरी कायरता यों , मेरा विश्वास नहीं ढहता। "
बिस्मिल बोले थे-"प्राणों का बिलकुल भी मोह नहीं मुझको
कुछ देर में फांसी चढना है इसका कोई छोह नही मुझको
भारतमाता के चरणों में चढने की बेला    आयी है
बरसों से प्रतीक्षित भावों के कढने की बेला आयी है
ये आंसू नहीं हैं कमजोरी ,इनमें है छिपी कराह नहीं
इन नश्वर प्राणों की मुझको,है किंचित भी परवाह नहीं
लेकिन मां तेरे चरणों में  अब कभी बैठ ना पाऊंगा
स्वर्ग भले ही मिल जाये पर तेरी गोद ना पाऊंगा
भारतमाता की चिंता में,निज माता को भूला ही रहा
देश भक्ति की धुन में मैं,मन ही मन ,फूला ही रहा
तेरी सेवा का अवसर मां ,इस जनम में ना मिल पायेगा
जननी अब अगले जीवन में यह कर्ज़ तेरा चुक पायेगा
सिर पर लेकर के कलर्ज चला,यह आंख इसलिये ही नम है
माता को सुख मैं दे न सका ,निश्चय ही मुझको यह गम है
माता ने स्वस्ति की मुद्रा में ,दायां कर अपना उठा दिया
शिव वर्मा को संकेतों से ,फिर पास में अपने बुला लिया
"जो कहना है ,इससे कहो, पार्टी का एक सिपाही है
तेरे बाद ,तेरे पथ पर,     चलने वाला एक राही है"
आंखों में दृढता लिये हुये माता  उस रोज चली आयी
ममता-कोमलता परे हटा,वह दुर्गा बनकर थी छायी

ऐसी दृढता की प्रतिमा का बेटा ही बिस्मिल बनता है
इतिहास जिसके संकेतों से मुडता है,फिर से बनता है
                                    -----'बिस्मिल चरित' से

टिप्पणियाँ

Smart Indian ने कहा…
पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और उनकी माता से संबन्धित इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और आभार!

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