मैं चाहता हूं कि इस विषय पर बहस हो और हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।


कल रात लगभग ९ बजे फेसबुक पर आया और आते ही पहली मुठभेड शैलेश पाराशर द्वारा शेयर किये एक चित्र से हुई जिस पर में एक लडका शिवलिंग के ऊपर पैर रखकर खडा है।इस चित्र के नीचे एक टिप्पणी भी थी जो शेयर करने वाले ने की थी।मैने शैलेश से आग्रह किया कि इस चित्र को शेयर करने के बजाये डिलीट कर दें।कुछ ना कर पाने की स्थित में मैने अपने उन मित्रों को जो हमेशा ईंट का ज़बाव पत्थर से देने को आतुर रहते हैं संपर्क किया और खुद भी वही चित्र जिसे शैलेश मेरे कहने से हटा चुके थे ढूंढने में लग गया।सौरभ द्विवेदी और शिवम शुक्ला निरंतर चित्र मांग रहे थे और ज़ल्दी ही वह चित्र भेजने वाले की कई आई०डी० और बहुत से इसे शेयर करने वालों के प्रोफाइल मिल चुके थे।शिवम ने सभी राष्ट्रीय चैनल्स तक को सूचना दी और ज़बाव पाया कि ये कोई न्यूज नही है।
अब मैं एक अंधी सुरंग में था कि क्या किया जाय?इस देश के फेसबुक यूजर्स का कितने पर्शैंट सनातन धर्मी है मुझे नहीं पता पर यह संख्या समूची संख्या के ५० प्रतिशत से अधीक तो होगी?कोई रास्ता समझ ना आने पर मैने अपने सिद्धांतों के विरूद्ध जाकर उस बदतमीज लडके मेसेज बाक्स को गालियों से भर देने को कहा।कमेंट्स में गालियां देने से मैंने फिर भी परहेज़ किया पर मेरे आक्रोशित मित्रों ने वो भी खूब किया और किये जा रहे हैं
अब कुछ प्रश्न उन मित्रों से जो फेसबुक पर केवल टाइम काटने नहीं आते---
१-मैने जो किया मैं स्वयं भी उसे सही नहीं मानता पर क्या कोई और रास्ता है ऐसी बातों से बचने का ?
२-मेरे अल्पसंख्यक मित्र माफ करें कोई मुस्लिम,कोई ईसाई ,कोई जैन इसकी निंदा तक करने सामने क्यों नहीं आया?अगर ईसा या हज़रत मुहम्मद के बारे में कोई चित्र या टिप्पणी होती तब भी आप चुप रहते।मुझे या मेरे आराध्य को कोई अपमानित कर रहा है और आपको कोई मतलब नहीं--?कल ये स्थिति आप के साथ भी आ सकती है तब आप अल्पसंख्यक होने की दुहाई मत देना।जब ऐसी उदासीनता समाज के अन्य वर्गों द्वारा दिखाई जाती है तो फिर मेरे जैसे व्यक्ति के लिये सेक्यूलेरिज्म को जस्टीफाई करना बहुत मुश्किल हो जाता है?यही स्थितियां प्रज्ञासिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित को जन्म देती हैं।
३-मीडिया की सोशल रिस्पानसबिलिटी को हम गुवाहटी वाले मामले में देख चुके हैं और इस मामले में ये कोई न्यूज नहीं है--क्या मीडिया के लिये कोई घटना तभी न्यूज होती है जब दंगों मे लोग मारे जा चुके हों--राजनीतिक और सिने जगत की छोटी सी छोटी बात न्यूज है पर लाखों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुचाता ये चित्र न्यज नहीं?
४-ऐसे चित्र को शेयर करना कहां तक ठीक है?

मैं चाहता हूं कि इस विषय पर बहस हो और हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।

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