दीप पर्व का आगमन आसन्न है -------------


दीप पर्व का आगमन आसन्न है पर कोई उल्लास नही है,उत्साह नही है।परिदृश्य ही ऐसा है।भ्रष्टाचार विरोधी बयार अपनी लय खो चुकी है।सत्ता ने बेशर्मी के लबादे तले अपने स्याह दागो को ढक लिया है और प्रतिपक्ष जिस सिद्धांत और आदर्श के घोडे पर सवार हो सत्तारूढ हुआ था उन्ही से गिरकर मेरूदंड गंवा पक्षाघात का शिकार हो चुका है।
मेरे जैसा आम नागरिक किंकर्तव्यविमूढ और ठगा सा हतप्रभ अंधी, सुरंग में घुट-घुट कर मरने की आशंका से बदहवास हो रहा है।राम को कोसना गालियां देना समीक्षा करना इतना आसान पहले कभी ना था। वैल्यू से भी ज़्यादा ताकतवर न्यूसेंस वैल्यू हो गयी है। कवीन्द्र रवीन्द्र को दोयम दर्जे का बताने वाले,राम को बुरा पति और लक्ष्मण को और भी बुरा कहने वाले भी पहले इतने बेलगाम नही थे।नारी को शहरी -ग्रामीण,आकर्षक-अनाकर्षक,दुर्घटना और बरवादी का ज़िम्मेदार इस तरह तो पहले कभी किसी राजनेता ने नही कहा था।जैसे पहले पेट्रोल पर ५ पैसे की वृद्धि पर हाय-तोबा हो जाती थी पर अब ५ रूपये पर भी रस्मी आह तक नहीं होती वैसे ही स्वामियों और वकीलों के भेष में ही रावण सीता हरण करते रहें पर हम  सूर्पणखाओं के नाक-कान काटने के औचित्य और अनौचित्य पर ही बहस करते रहेंगे।कोई वज़ह नही दिखती कि इस दिवाली पर हमारे पास खुश होने की हां काली कमाई वालों के पास साहब को मिठाई पहुंचाने और नज़दीकियां बढाने का अच्छा मौका है।फिर भी रस्मन कह देता हूं---


बहुत ज़ल्दी ये कुहासा भी हटेगा मान्यवर.

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