महानगर के छलछंदों से तनमन त्रस्त रहे

महानगर के छलछंदों से तनमन त्रस्त रहे
यों तो बिना वजह ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
औरों को क्या कहें तुम्हारे लिए भी हम बोझा
मन मे जगह नही दी लेकिन अखवारों मे खोजा
सच तो यह तुम भी हमको करते पस्त रहे

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