बडे बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने जमाने में तो शादी ब्याह तिलक सगाई यानी आदमी का भविष्य,इहलोक और परलोक सब कुछ नाई यानी हज्जाम के हाथ मे होता था।कुछ विद्वान बताते हैं कि एक नाई ने तो नकटा पंथ नाम से एक लोकप्रिय पंथ भी चलाया था।यह तो आप जानते ही हैं कि इस पंथ के अनुयायी हर जाति, धर्म ,प्रांत मे पाये जाते हैं।दरअसल ये लोग थोडे पुरातनपंथी होते हैं।वरना आज के धार्मिक लोग इतने शर्मदार कब से हो गये कि झूठे ही सही भगवान के अस्तित्व को मान लें ये तो खुदको ही भगवान मानते हैं।वेसे भी सारी मर्यादा,शर्म आदि असमर्थों के लिए होती है।संसद और विधानसभाओं मे बैठने वाले समर्थ लोगो के लिए थोडे ही।अब हिंदी मराठी के नाम पर थप्पड चले या जूते क्या बिगडना है, राज ठाकरों का।होसकता अगली बार सी एम ही बन जाये।वैसे भी हिंदी वालों के साथ ऐसा होना ही चाहिए हिंदी का कवि लेखक जितना लिजलिजा है आडंबरी है वैसे मे हिंदी मे शपथ लेने वाले को तो गोली मार दी जानी चाहिए थी।साहित्य के नाम पर अश्लिलता,कविता के नाम घटिया तुकबंदी जिस भाषा मे करने वालो पुरस्कार और मोटे लिफाफे मिलते हो उस भाषा मे शपथ लेने का अपराध करने वाले के लिए न्युनतम सजा ?
चलिए ये तो थी हज्जाम और हजामत की बात पर भाई इन दिनो मेररे और मेरे बास के बीच कौन किसकी हजामत बना दे इस की होड लगी है कार्यालय मे कोई सुविधा नही कैफे रोज जाना संभव नहीम सो रगुलरली नहि आ पाता फिर भी कोशिश करुंगा कि हाजिरी लगाता रहूं।
आपका ही
अरविंद पथिक

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