उन्हें भय सता रहा है कि हिंदी की बात करने पर कहीम वे बंवई के कवि सम्मेलनों से वंचित ना हो जायें।कहीं

सचमुच बहुत आहत महसूस कर रहा हूं ।लग रहा हे जेसे किसी ने सरे बाजार मेरे ही गाल पर चांटा मार दिया हो।मातृभाषा के नाम पर इस्लाम जैसा कट्टर धर्म बौना साबित होता है और बांग्लादेश बन जाता है।बिहार के गांव मे जाति और धर्म के नाम पर एक दूसरे का खून तक कर देने को आमादा व्यक्ति दिल्ली आकर सगे भाई से बढकर हो जाता है फिर क्या वजह है कि जब हिंदी मे शपथ लेने पर इतना बडा हमगामा हो गया हो और हमारे तथाकथित इटलेक्चुअल्स कानों मे तेल डाले बैठे हैं।शायद उन्हें भय सता रहा है कि हिंदी की बात करने पर कहीम वे बंवई के कवि सम्मेलनों से वंचित ना हो जायें।कहीं किसी मे विदुषक का रोल उनसे ना छिन ना जाये।राजनीति कि मजबूरी तो समझ मे आती है पर हमारी हिंदी अकादमी,साहित्य अकादमी तमाम हिंदी संस्थानो के कर्ता धर्ता क्या राजठाकरे से अपनी मां की जय करवा चुके हैं।गाजियाबाद में एक स्वाभिमान कवि सम्मेलन हो रहा है जिसका संचालन वही प्रवीण शुक्ल कर रहे हैं जो पिछले दिनों वसुंधरा मे एक फ्राड पत्रकार और राजनेता रूपचौधरी के चरणों मे पडे हुए थे इन महाशय और इनके गैंग के किसी सदस्य ने भी राष्ठृभाषा के अपमान पर एक वकतव्य तक देने की जरूरत नही समझी ।नीरवजी ने तो इसे ११अक्टुबर को फोन लगाकर पुरूष वेश्या कह दिया था पर राष्टरीय स्वाभिमान के आयोजनों का ठेका अगर इस तरह के लिजलिजे लोगो को मिलता रहेगा तो हिंदी और हिंदीवालो को पिटने से कोई बचा नही सकता ।इन सबके बीच मै दैनिक हिंदुस्तान के गतिशील संपादक शशिशेखर और उन जैसे पत्रकारों ,मकबूल जी जैसे संवेदनशील हिंदीसेवियों को बधाई भी देना चाहूंगा कि भविष्य के राजर्ष पुरुषोत्तम दास टंडन वे ही बनेगे पिछले तीस वर्ष से टेढी अंगुली के कारण कविता नही लिख पाये विकलामग गोविंद व्यास नहीं।विपिन जी से छमा सहित कि अभी मैं कविता और गज़ल के लिए प्रकृतिस्थ नही हो पाया हूं ।जल्दी ही उनकी सेवा मे हाजिर होने का प्रयास करूंगा।

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