ज़िन्ना की मज़ार पर जाकर के जो शीश झुकाते हैं

ज़िन्ना की मज़ार पर जाकर के जो शीश झुकाते हैं
जन्मभूमि को आज बाबरी कहते नहीं लजाते हैं
कल तक वे ही घूम रहे थे रथ लेकर भारत भर मे
मुंह मे राम, बगल मे कुर्सी,तेज छुरी उनके कर मे
ज़िन्ना अगर इतना सेक्युलर था,सिंध छोडकर मत आते
सुन्नत कराकर,दाढी रखकर पाक मे ही तुम बस जाते
हतप्रभ स्वर्ग में होंगे मुखर्जी,हेडगेवार रोये होंगे
गोलवलकर जी आत्मलीन से चिंतन में खोये होंगे
लेकिन इस अंधी सुरंग का छोर नहीं मिल पायेगा
तुम से बडे तुम्हारे नेता बस मे कारगिल लाये थे
और दूसरे आतंकी को स्वयं छोडकर आये थे
आर-पार की करते-करते तार-तार हो जाते हो
कुछ दिन भाषण बाज़ी करके मुह ढककर सो जाते हो
कहते अमन चैन की नई सुबह हम लायेंगे
वार्ता की हम मेज शीघ्र ही फिर से यहां सजायेंगे
तो, कौआ चला हंस की चाल को अपनी चाल भी भूल गया
या फिरा रंगा सियार अंततः अपनी जाति कबूल गया
जनता विश्वास जला है अब यह तुम्हे जलायेगा
दगा राम के साथ किया है राम ही तुम्हे बचायेगा
मर्यादा पुरुषोत्तम का तुम लेकर के थे नाम चले
मंडल -मंदिर की ज्वाला में जनता के विश्वास जले
रिश्वत लेता चेहरा तुमने जबसे हमे दिखाया है
लोकतंत्र को सारे जग में तुमने बहुत लजया है
लालकिला हो या संसद हो,स्वाभिमान पर हमला था
भुला दिया सत्ता की खातिर ,जो अपमानी ज़ुमला था
अगर देश के और राम के भक्त यही कहलायेंगे
बिस्मिल ,रोशन ,भगत लाहिरी, कभी नहीं फिर आयेंगे
भारत भर का भाल सदा के लिए यहां झुक जायेगा
दगा राम के साथ किया है,राम ही तुम्हे बचायेगा।

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