आज़मगढ की क्रांति के नायक सूबेदार भोला उपाध्याय और भोंदू सिंह
आज़मगढ की क्रांति के नायक सूबेदार भोला उपाध्याय और भोंदू
सिंह
पुरूष स्वर-
१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जहां एक
ओर देशी राजाओं और नबावों ने असाधारण साहस और वीरता वहीं आम जनता भी इस युद्ध में
प्राण-पण से जूझ रही थी।
स्त्री स्वर-
अंग्रेज़ी फौज के
देशी सिपाहियों का योगदान तो इस युद्ध
में इतना था कि कई इतिहासकारों ने तो इस युद्ध को सिपाही विद्रोह का ही नाम दे
दिया।
पुरूष स्वर-
इन योद्धाओं में
मंगल पांडे,बख्त खां,ईश्वरी पांडे जैसे चर्चित नाम शामिल थे तो बहुत
सारे ऐसे नाम भी थे जिन्होने बिना अधिक चर्चा में आये इस यज्ञ में स्वाहा हो जाने
में ही अपने जीवन को धन्य माना.
स्त्री
स्वर-
आज़ादी की लडाई के
एक ऐसे ही सिपाही का नाम था भोला उपाध्याय। सूबेदार भोला उपाध्याय १७वीं नेटिव
इन्फैंट्री में सूबेदार थे।क्रांति के उन उथल पुथल भरे दिनों में सूबेदार भोला
उपाध्याय ने जिस चतुराई और साहस का परिचय दिया,वह अदि्व्तीय है।
पुरूष स्वर ----
जब सारे देश की
सैनिक छावनियों से चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग न करने की खबरें आ रहीं थीं। सूबेदार
भोला उपाध्याय ने अपनी छावनी में कैसा बढिया नाटक रचाया।आइये उनकी और कैप्टन सलकट
की बातचीत सुने----
भोला उपाध्याय
(पुरूष स्वर) –
सर ,मैं सिपाही भोला
उपाध्याय कुछ अर्ज़ करना चाहता हूं।
टुम
क्या कहना चाहटा है,भोला उपाध्याय।ऐनीथिंग सीरियस?क्या
टुम चर्बी वाला कारटूस यूज़ नही करेगा?
भोला
उपाध्याय (पुरूष स्वर)—
नहीं,सर मैं
तो सबके सामने ये कारतूस इस्तेमाल कर उदाहरण पेश करना चाहता हूं।
कैप्टन
सलकट(पुरूष स्वर)---
नहीं
सर, मैं तो अपने साथियों के सामने नज़ीर पेश करना चाहता हूं। मैं उन्हें बताना चाहता
हूं कि जब मेरे जैसे उच्च जाति के ब्राह्मण को ये कारतूस चलाने में कोई आपत्ति
नहीं है तो किसी को भी आपत्ति नहीं होनी
चाहिए।
कैप्टन
सलकट(पुरूष स्वर)----
वेरी गुड,टुम सच्चा सिपाही हैय।टुमे कारटूस
चलाने की इज़ाज़त हैय।
भोला
उपाध्याय (पुरूष स्वर)-- शुक्रिया ,सर।
(बंदूक से गोली चलने की आवाज़)
कैप्टन
सलकट(पुरूष स्वर)---- वेरी- वेरी गुड भोला उपाध्याय,हम टुमारा
प्रमोशन करवायेगा।कमांडर इन चीफ को बतायेगा कि टुम जैसा वफादार सिपाही हमारी फौज़
में हैय।
(पृष्ठभूमि में सिपाहियों के बूटों की आवाज़)
स्त्री
स्वर—
इस
घटना के तुरंत बाद कैप्टन सलकट ने भोला उपाध्याय के प्रमोशन की चिट्ठी कमांडर -इन
चीफ
को भेज़
दी और ज़ल्दी ही भोला उपाध्याय को सेकेंड सूबेदार बना दिया गया।
पुरूष
स्वर—
इन
दिनों वहां सूबेदार के पद पर भोंदू सिंह काम कर रहा था।अंग्रेज अफसर उस पर बहुत
विश्वास करते थे।भोला उपाध्याय को इस तरह सूबेदार बनाने से कहीं भोंदू सिंह नाराज़ ना हो जाये इस बात को ध्यान में रखते हुए।कैप्टन सलकट ने भोंदूसिंह
को सूबेदार मेज़र के पद पर प्रमोशन कराने का आश्वासन दिया।
स्त्री
स्वर—
अंग्रेज अफसर इस
समय तक यह नहीं समझ पाये थे कि सभी भारतीय सैनिक वे चाहें जिस पद या जाति के हों
अंग्रेज़ों को सारे भारत से उखाड फेकने की कसम खा चुके हैं।यदि वे सूबेदार भोंदू
सिंह और सेकेंड सूबेदार भोला उपाध्याय की बातचीत सुन पाते तो ऐसा कभी नहीं करते।
भोंदू सिंह
(पुरूष स्वर-)--
भैया भोला
उपाध्याय जी आपने इन अंग्रेजों को खूब बनाया।ये अपने समान चालाक किसी को समझते ही
नहीं।अब तो ज़ल्दी से आज़ादी का बिगुल बजा दो।
भोला
उपाध्याय(पुरूष स्वर)-----
अधिक उतावली ठीक
नहीं होती भाई भोंदू सिंह ।समय आने पर ही
हमला किया जायेगा।पर भैया आप तो इन अंग्रेजों के बीच में ही पले-बढे फिर आपको इनसे
इतनी नफरत क्यों?
भोंदू सिंह
(पुरूष स्वर-)—
ठीक कहते हो,भैया ।मैं इनके
बीच ही रहा ।पिताजी भी फौज में थे रेज़ीमेंट ही मेरा घर रही है भैया।वैसे तो
फर्रुखावाद जिले में हमारा गांव है।हमने सारी ज़िंदगी इन गोरों की वफादारी में काटी
पर ये ससुरे आज भी हमारा विश्वास नहीं करते।
भोला
उपाध्याय(पुरूष स्वर)-----
ठीक कहते हो
भोंदू भैया ,देखो हमने इनका विश्वास जीतने के लिए अपने को धरम भ्रष्ट तक
कर लिया।फिर भी ये हम पर लगातार नज़र रख रहे हैं।
भोंदू सिंह
(पुरूष स्वर-)--
अब तुम्हें क्या
बतायें भोला भैया,सिविल वर्क कराने के लिए जो कमेटी बनी थी मैं उसका इंचार्ज़
था।पूरी निष्ठा,मेहनत और इमानदारी से काम करने का क्या फल दिया इन गोरों ने?कितना बेइज़्ज़त
करके मुझसे वह काम वापस लिया था?
इन्होनें मेरी
बेइज़्ज़ती नहीं की भोला भैया। इन्होने एक सच्चे हिंदुस्तानी सिपाही की वफादारी की बेइज़्ज़ती
की है।कसम खाओ भोला भैया कि हम इन गोरों को अपने देश से मार भगायेंगे।
ज़रूर---ज़रूर
आज हम कसम खाते हैं कि जब तक इन गोरों को अपने देश से मार ना भगायेंगे चैन से नहीं
बैठेंगे।
(संगीत---------------------------------गीत)
पुरूष स्वर--आज़मगढ
में गदर की खबर देते हुए मेमो नंबर १३३ में एफ०एम)बर्गस कमांडिग आफीसर १७वीं नैटिव
इन्फैंटरी जे०एच०चैंबरलिन असिस्टेंट गवर्नर जनरल आफ इंडिया को लेटर नंबर६१७ के
ज़बाव में लिखा---
स्त्री
स्वर---
भोंदू
सिंह जोकि जाति का अहीर है और उसका असली
भोंदूराम है उसका पिता १७वीं इन्फैंट्री में देशी अफसर था।उसके पिता की सेवाओं में
ध्यान में रखते हुए ही उसे कंपनी सरकार की सेवा में रखा गया हैI
पुरूष स्वर---
इस
पत्र से स्पष्ट है कि भोंदूसिंह अंग्रेज़ अफसरों का कितना विश्वासपात्र
था।भोंदूसिंह के बारे में एफ०एम०बर्गस ने
अंग्रेज़ अफसरों को जो जानकारी भेज़ी उसके बाद भोंदूसिंह पर शक करने की कोई
वज़ह नहीं थी।एफ०एम०बर्गस ने लिखा था------
स्त्री स्वर--------"मैं भोंदूसिंह को १८२५ से जानता
हूं।रेज़ीमेंट ही उसका घर थी।उन दिनों वह केवल एक सिपाही था।मुझे उसकी तलवारबाज़ी आज भी याद है ताज़िए
के दौरान वह और दूसरा सिपाही शेख दलाल एक दूसरे को कडी टक्कर देते थे-----।"
(संगीत द्वारा
तलवारबाज़ी की आवाज़)
भोंदूसिंह(पुरूष स्वर--१)-----चलो शेख आज हो जाये मुकाबला।
शेख दलाल(पुरूष स्वर--२)---- रहने दे भोंदू सिंह शेख दलाल की तलवार का वार
पूरी रेज़ीमेंट में कोई नहीं झेल सकता।
भोंदूसिंह(पुरूष स्वर--१)-----फिर देर किस बात की शेख आ जा मैदान में।
शेख दलाल(पुरूष स्वर--२)---- मैं कहता हूं मान जा भोंदूसिंह।
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