सुभाष की अफगानिस्तान और ज़र्मनी में गतिविधियां; ----यों हुआ आज़ाद हिंद फौज़ का गठन

सुभाष को यूरोप प्रवास के समय रूस जाने की अनुमति नही मिली।दिसंबर १९४१ में दूसरे विश्वयुद्द में जापान भी शामिल हो गया।१४ पंजाब रेज़ीमेंट के जनरल मोहनसिंह अपने साथियों के साथ जंगली क्षेत्र में लगभग २४ घंटे तक पानी में घिरे रहे।जापानी हवाई जहाज पर्चे गिरा रहे थेः"एशिया-एशिया वासियों के लिऐ,गोरे राक्षसों को पूर्व से लात मारकर भगाओ।""भारत ,भारतीयों के लिए।"जनरल मोहनसिंह ने लिखा ,'इससे हमारी देशभक्ति की भावना जग गई।मुझे लगा कि वे हमारी भावनाओं को ही अभिव्यक्ति दे रहे हैं।ब्रिटेन ने युद्ध के बाद भारत को आज़ादी देने का  थोथा वायदा भी नहीं किया।सौ बरसों से भारतीय सैनिक भाडे के सैनिकों का रोल अदा कर रहे थे।"
ऐसी परिस्थिति में जनरल मोहनसिंह ने मलाया की लडाई में बिखरे हुए भारतीय सैनिकों को संगठित करके राष्ट्रीय सेना बनाने का संकल्प लिया।उन्हें उनके साथी अकरम दस सैनिकों के साथ मिले।असैनिक प्रवासी भारतीयों ने भी उनके विचारों का समर्थन किया ।मोहनसिंह ने सौदागर दीन नामक प्रवासी भारतीय ज़ापानी सेना के मुख्यालय में संदेश भिज़वाकर कहा कि वे ब्रिटेन से युद्ध करके भारत को आज़ाद कराना चाहते हैं।केवल एक शर्त है कि उनके साथ जो ब्रिटिश कर्नल है उसे ना मारा जाय।शुरू मे मोहनसिंह ने अपने साथ के ५० सैनिकों को जिनमें कर्नल एल०यू०फित्ज़पैट्रिक भी थे,भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन के लिए सहमत कर ल

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