गद्दी पर बैठेगा किसान


गद्दी पर बैठेगा किसान
भूखे भारत को अन्न नहीं
तुमने गौरव-सम्मान दिया
निज तन-मन-धन जीवन सारा
भारतमाता पर वार दिया
हरित-क्रांति के योद्धा तुम
तुम ही हो सच्चे सेनानी
तूफान भंवर आये लाखो
किंचित भी हार नहीं मानी
दुनिया के नक्शे पर भारत
तेरे  बल से हुंकार रहा
मंदी महंगाई उथल-पुथल
तेरे दम से ही संभाल रहा
संकट सीमाओं पर आये
नेत्रों को क्रुद्ध कराल किया
समरांगण में कितनी ही बार
दुश्मन हत किया हलाल किया
धन-मान-कीर्ति से परे रहे
भारत भर को उपहार दिये
है किसे ग्यात हे कृषक देव
तुमने कितने उपवास किये
शिखरों ,शीशों पर चढने से
बेहतर बुनियाद में गड जाना
चपचाप मौन खामोशी से
सूली पर हंसकर चढ जाना
केवल जीने का नहीं अपितु
मरने का ढंग सिखाया है
निस्पृह निर्मोही कर्मवीर
तू सचमुच मां का जाया है
ऐसे बेटो संतानों से हीं

भारतमाता का मान रहा
तेरी प्रतिभायें क्षमतायेंअब
सकल विश्व है जान रहा
आगे आओ नेतृत्व करो
दो दिशा देश को कृषक देव
सिंहासन आज पवित्र करो
गद्दी पर बैठो कृषक देव
सारा भारत हरषायेगा जब
गद्दी पर बैठेगा किसान
सारा भारत हर्षित होगा 
गद्दी पर बैठेगा किसान
नववर्ष नये संवत्सर में
अनुपम विशिष्ट पहचान बने
कृषकों के हाथों मे कमान

देकर के देश महान बने

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