ये कैसी आज़ादी आयी?


ये कैसी आज़ादी आयी?


ये कैसी आज़ादी आयी?
ये कैसी आज़ादी पायी?
इस आज़ादी की खातिर ही
भगतसिंह ने प्राण दिये थे?
और ढींगरा ने लंदन जा -
छीन वायली के प्राण लिये थे
इस आज़ादी की खातिर ही
बिस्मिल थे फांसी पर झूले
कहते हैं बहुतों के घर  में
महीनों नही जले थे चूल्हे
'काला-पानी' से कितने ही
लाल लौटकर घर ना आये
जिनके बलिदानों के किस्से
हमने बरसों बरस हैं गाये
लंबी है फेहरिस्त गिनाते
भर आता आंखों में पानी
धन्य-धन्य थे वीर धन्य थी
उन वीरों की अमर ज़वानी
लेकिन ,इस जनतंत्र ने कैसा
आज़ादी का चित्र कर दिया?
आते ही इस आज़ादी ने-
भारत को दो फाड कर दिया
और आज तो पूरा भारत
टुकडों में बंटता जाता है
चुपके-चुपके भारत मां का
अंग -अंग कटता जाता है
इतने नपुंसक और नाकारों
का भारत पर राज हो गया
इतना तलक बता ना पाये
आखिर कहां सुभाष खो गया?
सत्ता की हर एक कुर्सी पर
बगुले औ सियार बैठे हैं
रीढहीन,लिज़लिज़े,निकम्मे
कायर और गंवार बैठे हैं
कहीं कभी भी किसी मोड पर
अबला की अस्मत लुट जाती
जिनपे हिफाज़त का ज़िम्मा है
उनसे रपट तक लिखी ना जाती
मस्ज़िद टूटे भले फ्रांस में ---
होते हैं,     भारत में दंगे
ईश्वर की खातिर लड जाते
 भारत के ये   भूखे नंगे
आखिर कैसी आज़ादी है
घायल सडकों पर मर जाते
आफिस जाने की ज़ल्दी है
नज़र फिरा आगे बढ जाते
प्यारे भगत बताओ तुम ही
इस कारण ही प्राण दिये थे?
और कहो आज़ाद किसलिये
अपने ढंग से आप जिये थे?
कह जाती आतंकी तुमको
ओछी राजनीति की रानी
भारत की सारी जनता ही
मुझको लगने लगी जनानी
नहीं सिर्फ कहने -सुनने,
मित्र नहीं अब काम चलेगा
आखिर सच्ची आज़ादी का
सपना कब तक और जलेगा?
कब तक भगत,लाहिरी,शेखर
बिस्मिल रहें भीचकर मुट्ठी
कस करो प्रहार कि गुम हो
भ्रष्ट तंत्र की सिट्टी-पिट्टी
छोडो-छोडो मुरली मोहन
पांचजन्य उद्घोष कीजिये
अपरिहार्य है परिवर्तन यह
शीघ्र व्यवस्था बदल दीजिये
गलित-दलित ये तंत्र साथ में
लेकर के आज़ादी आयी
ये कैसी आज़ादी पायी?
ये कैसी आज़ादी आयी?
 ------ अरविंद पथिक

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