आज १८५७ की क्रांति का उद्घोष और प्रथम बलिदान देने वाले अमर शहीद मंगल पांडे का बलिदान दिवस है।आज की राजनीतिक सामाजिक परिस्थीतियां भी कुछ ज्यादा भिन्न नहीं हैं ।कुछ अर्थों में ज्यादा विषम ही हैं ।मैं कोरा आशावादी नहीं हूं।उस महान बलिदानी को एक कविता समर्पित करता हूं।यह कविता ही मेरा मूल स्वर है ------- पतवारों का तूफानों से समझौता है जयचंदों ने गोरी को भेजा न्योता है सारे रक्षक मस्त पडे बेसुध सोये हैं कर्णधार सब सुरा सुंदरी में खोये हैं कलमकार सत्ता के चारण बन ऐंठे हैं लोकतंत्र की शाखाओं पर उल्लू बैठे हैं केवल क्रिकेट ही है कहानी घर-घर की कुंठित-अवसादित है जवानी हर घर की देशभक्ति की बातें फिल्मी माल हुईं प्रतिभा हीन नग्नतायें वाचाल हुईं भारत का अस्तित्व मिटा जाता है इंडिया-शाइनिंग करता मुस्काता है आज नहीं गांधी , न जवाहरलाल यहां खोये प्यारे बाल-पाल औ लाल कहां नहीं गर्जना करते , प्यारे नेताजी करते हैं नेतृत्व फिल्म अभिनेता जी रोज आंकडे हमे बताये जाते हैं सेंसेक्सी कुछ ग्राफ दिखाये जाते हैं बतलाते हैं अंतरिक्ष...
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