फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख

बिस्मिल जी के बलिदान दिवस की पूर्व संध्या
 और अदम गोंडवी का जाना
यानी
घटाटोप अंधेरे के बीच दीपक का बुझ जाना
ईमानदारी,खुद्दारी के लिये
हमारे पास ज़ियादा से ज़ियादा है
एक थकी हुई आह
और इस बहाने भी
अपना सिर्फ अपना नाम चमकाना?
कौन कहता है
हमें नहीं आती मार्केटिंग
नहीं टिक पायेंगे हम वालमार्ट जैसे संस्थानों के

अरे आने तो दीजिये
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश
हम वालमार्ट को बडी खामोशी से डकार जायेंगे
आप हमारी क्षमताओं को कम आंकते हैं
हमारे नाम से मनमोहन और अन्ना दोनों कांपते हैं
फटा तिरंगा लहराकर भी हम अपना रेट दस से लाख
कर सकते हैं
तो लोकपाल बनने के बाद
हमारे जाल में कवि सम्मेलनीय संयोजक ही नहीं
टाटा और बिडला भी फंस संकते हैं
----------अरविंद पथिक

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