.फिर भी आप आशावादी हाँ तो मै आपको प्रणाम करता हूँ. .


वर्ष २०११ जाने को है ,उथल-पुथल और हताशा के आलम में छोड़कर आप शायद आशावादी हो पर दिवास्वपन से जितनी जल्दी बहर आ जाये अच्चा रहता है .आखिर अन्ना आन्दोलन बिना किसी निर्णायक मुकाम तक पहुचे मरने को है .सरकार या जिसे हम सत्ता कहते है ने अपना चरित्र दिखा ही दिया पहले रामदेव पर लाठियां बरसा कर और फिर अन्ना को दिसंबर की सर्दी में भूखा मरने के लिए छोड़कर .आन्दोलन में शामिल लोग भी दूध के धुले नहीं  पर आदमी कही दुसरे देश से तो लाये नहीं जायेंगे .महँ लोकतंत्र के महान पहरेदारो का चरित्र भी किसी से छुपा नहीं है.कुला मिलकर २०११ हमे महगाई भ्रष्टाचार और बेशर्मी की उस अंधी सुरंग में छोड़कर जा रहा है जिसका कोई अंत नही .फिर भी आप आशावादी हाँ तो मै आपको प्रणाम करता हूँ.
.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान

विभाजन और साम्प्रदायिकता के स्रोत: सर सैय्यद अहमद खान

मंगल पांडे का बलिदान दिवस