रबड की रीढ वाले लोग
मित्रों ३-४ दिन पूर्व श्री मदनलाल वर्मा क्रांत जी ने मुझे २९ जनवरी को आयोजित होने वाले कवि-सम्मेलन में काव्यपाठ का आमंत्रण दिया।आज जब मैने क्रांत जी से पूंछा नोएडा में कहां पहुंचना है तो उन्होनें बताया कि मेरे कुछ भूमिगत मित्रों ने उन्हें मेरे दिल्ली से बाहर होने की सूचना देकर स्वयं को उस कार्यक्रम में सम्मिलित करा लिया है पहले थोडा झटका लगा फिर खुशी भी हुई कि मेरा नाम कवि-सम्मेलन की लिस्ट से कटवाने के लिये भाई लोग षडयंत्र करके मेरी शख्सियत को रेखांकित तो कर ही रहे हैं।मैं उन सब का आभार व्यक्त करता हूं और अपने काव्यसंग्रह 'अक्षांश अनुभूतियों के' से एक रचना उन्हें समर्पित कर रहा हूं---
रबड की रीढ वाले लोग
बढते जा रहे हैं
स्वाभिमानी सहमे हैं
घबरा रहे हैं
बज रहा जो योग्यता का ढोल
उसकी पोल में क्या है?
समझते है
आकाश का ठेका बाज़ों ने लिया है
परिंदो को कहां उडना है
वे बतला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
तुम्हारी चाल कैसी ?
ढाल कैसी ढंग कैसा?
तुम्हारे रूप यौवन पर फबेगा रंग कैसा?
ना जिनके मूल्य कोई वे हमें सिखला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
गीत गायें या लतीफे हम सुनायें
फैसला यह मूर्ख औ ढोंगी करेंगे
ओजधर्मीं स्वर सहम कर मौन होंगे
मंच पर नर्तन मनोरोगी करेंगे
काले मेघ काव्याकाश पर मंडरा रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग
बढते जा रहे हैं
स्वाभिमानी सहमे हैं
घबरा रहे हैं
बज रहा जो योग्यता का ढोल
उसकी पोल में क्या है?
समझते है
आकाश का ठेका बाज़ों ने लिया है
परिंदो को कहां उडना है
वे बतला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
तुम्हारी चाल कैसी ?
ढाल कैसी ढंग कैसा?
तुम्हारे रूप यौवन पर फबेगा रंग कैसा?
ना जिनके मूल्य कोई वे हमें सिखला रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
गीत गायें या लतीफे हम सुनायें
फैसला यह मूर्ख औ ढोंगी करेंगे
ओजधर्मीं स्वर सहम कर मौन होंगे
मंच पर नर्तन मनोरोगी करेंगे
काले मेघ काव्याकाश पर मंडरा रहे हैं
रबड की रीढ वाले लोग बढते जा रहे हैं
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