छायावादी या उन्मादी नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
छायावादी या
उन्मादी नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
मेरी तरह
मेरे अक्षर भी जैसे हैं वैसे ही दिखे हैं
छप जाऊं स्वर्णिम पृष्ठों में
या शिखरों से गाया जाऊं
पद्म श्री कहलाने वालों की
पंगत में पाया जाऊं
विस्तृत-जीवन नभ
में ऐसे यश के बादल नहीं दिखे हैं
छायावादी या उन्मादी
नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
दिल्ली की सडकों सा जीवन
दूषित और ज़ाम रहता है
यदा-कदा होता विशिष्ट यह
वैसे तो ये आम रहता है
चकमा देकर आगे
निकलने वाले पैंतर नहीं सिखे हैं
छायावादी या उन्मादी
नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
सोचा चाहा कोशिश भी की
महानगर पर रास न आया
क्या ना पा सकता था? लेकिन
इन हाथों में कुछ ना आया
किंचित है अफसोस ,मगर संतोष भी है,हम नहीं बिके हैं
मेरी तरह
मेरे अक्षर भी जैसे हैं वैसे ही दिखे हैं
देने वालों को क्यों कोसूं ?
मै ही शायद पात्र नहीं था
जिसको स्वर्ण पदक बंटने थे
उस कक्षा का छात्र नहीं था
सबको थी आपत्ति कि
उत्तर शीश झुकाकर नहीं लिखे हैं
मेरी तरह
मेरे अक्षर भी जैसे हैं वैसे ही दिखे हैं
ऐसी मंशा नहीं दर्प से
सबको खारिज करता जाऊं
लेकिन कोई तो प्रतिमा हो
जिसके आगे शीश झुकाऊं
'अहो स्वरूपं,अहो सौम्यं' शोर मचाते झुंड
दिखे हैं
छायावादी या
उन्मादी नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
टिप्पणियाँ
ऐसी मंशा नहीं दर्प से
सबको खारिज करता जाऊं
लेकिन कोई तो प्रतिमा हो
जिसके आगे शीश झुकाऊं
'अहो स्वरूपं,अहो सौम्यं' शोर मचाते झुंड दिखे हैं
छायावादी या उन्मादी नाप-तोल कर नहीं लिखे हैं
.. बहुत सुन्दर ..
किन्तु जमी हुयी और यहां वहां तैरती काई से सम्पूर्ण सम्पूर्ण सरोवर तलैया बन चुका है .. अच्छा अंकन है .. विद्रोही स्वर में भावपूर्ण अभिव्यक्ति - बधाई अरविन्द जी ..!