यों तो बिना वज़ह ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
यों तो बिना वज़ह ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
यों तो बिना वज़ह
ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
महानगर के
छल-छंदों से तन-मन त्रस्त रहे
संघर्षों के ढेर
से हमने सुख के पल बीने
किंतु,किन्हीं हंसते
नैनों से स्वप्न नहीं छीने
यों तो हम मधुमासी
रातों में संत्रस्त रहे
माना बिना वज़ह ही
सारे दिन हम व्यस्त रहे
चाटुकारिता के
कांधे चढ बौने ऐंठ गये
लेकिन ऐेसा नहीं
कि कुंठित हो हम बैठ गये
शनैःशनैः ही सही
मगर हम गति अभ्यस्त रहे
यों तो बिना वज़ह
ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
अगर सामने पड ही
गये तो झुक-झुक नमन किये
ऐसे मित्रों ने ही
अक्सर भीषण ज़खम दिये
हंसकर दर्द सहे
सहकर हम खुद में मस्त रहे
यों तो बिना वज़ह
ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
औरों को क्या कहें? तुम्हारे लिये भी
हम बोझा
मन में जगह नहीं
दी लेकिन अखबारों में खोजा
सच तो यह है तुम
भी हमको करते पस्त रहे
महानगर के
छल-छंदों से तन-मन त्रस्त रहे
जीवन जैसा मिला
हमें ,हमने हंसकर
स्वीकारा
कई खोखले वट
वृक्षों को हमने दिया सहारा
ज्यों ही मौका लगा
उन्होने कर में शस्त्र गहे
महानगर के
छल-छंदों से तन-मन त्रस्त रहे
यों तो बिना वज़ह
ही सारे दिन हम व्यस्त रहे
महानगर के
छल-छंदों से तन-मन त्रस्त रहे
- -----------------अरविंद पथिक
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